रमन और सोनी की मित्रता पूरे कालिज में चर्चित थी । एक पवित्र प्रेम का अद्भुत संगम । कुछ लोगो को तो विश्वास ही नहीं होता था कि इस पाश्चात्य रंग में रंगी दुनिया में इतना निर्मल गंगाजल की तरह प्यार भी हो सकता है। दोनों ने प्रण किया कि जब तक पूरी तरह अपने आप सशक्त नहीं हो जायेगे शादी नहीं करेंगे ।
आज वह और उनके घर वाले बहुत खुश थे दोनों का प्रतियोगिता रिजल्ट आगया था । दोनों की नियुक्ति एक कालिज में लेक्चरार के लिये हो गयी ।
दोनों के घरों में शादी की तैयारी होने लगी । दोनों की शादी धूमधाम से हो गयी । सब बहुत खुश थे । धीरे धीरे समय व्यतीत होने लगा । सोनी के सास ससुर को आतुरता थी कि घर में नन्ही किलकारी गूंजे । समय निकल रहा था । सबको चिन्ता होने लगी बहुत इलाज के बाद भी कुछ संभव नहीं हुआ । एक दिन रमन और सोनी बगीचे में बैठे थे । सोनी बहुत सुस्त थी । रमन बोला मेरा गुलाब क्यों मुरझा रहा है सोनी उसके कंधे पर सिर रख कर सुबकने लगी । बहुत प्यार करने के बाद वह बोली रमन शायद मेरे भाग्य में मां बनना नहीं है। मैं मां बाबूजी को उनकी खुशी नहीं दे पा रही । रमन ने बहुत सोच विचार कर फैसला लिया । दूसरे दिन वह मां से बोला मां आज मै सबको कुछ नया उपहार दूंगा पर बताऊंगा
नहीं । वह कालिज से सोनी को लेकर एक अनाथालय पहुँचा । सोनी को आश्चर्य हुआ बहुत सुन्दर बना हुआ और बच्चों की आवाजें आ रही थी । वहाँ के सब लोग रमन को देखकर बहुत प्रसन्न थे लग रहा था जानते हों । रमन को देखकर वहाँ की संचालिका बहुत खुश हुई बोली मि.रमन आपके भाग्य से दो जुड़वां कलियाँ आयी हैं शायद कल रात को कोई दुखियारी मां बाहर पालने में छोड़ गयी । सोनी ने उनको देखा और एकदम खुश होकर प्यारी कलियों को उठा लिया । सब लिखा पढ़ी करके जब घर आये तो रमन बाहर बोला से मां जल्दी आओ आपके लिये अपकी बहू दो कलियां लाई है जो हमारे आंगन में पत्तियों की तरह रंग बिखेरेगी । मां और बाबूजी की आखों मे खुशी के आंसू आगये । सोनी को चिपटा कर मां बोली हां मेरी गुलाब की दो पत्तिया आगयी । दोनों नन्ही कली मां और दादी की गोद में चुपचाप सो रही थी ।
स्व रचित
डा. मधु आंधीवाल