रिश्ता इंसानियत का – ममता गुप्ता 

अरे!! दीपा जी तुम्हे पता है या नही अपनी सोसायटी में जो कामवाली बाई सरला आती हैं ना… सुना है वह कोरोना पॉजिटिव है…..।। मैने तो जैसे ही सुना वैसे ही उसे काम पर से निकाल दिया..न जाने कितनो को बीमार करती…!बेचारी पता नही मरेगी या जियेगी आखिर उसको कोई अपना हैं भी तो नही…!!

पास ही में रहने वाली शीला जी ने बताया।

यह सुनकर दीपा को धक्का लगा…औऱ शीला जी जैसे लोगों की सोच पर गुस्सा भी आ रहा था…इंसान है लेकिन इंसानियत नाम की चीज नही है…

दीपा  सरलाबाई के बारे में सोचने लगी…सरला बाई बहुत ही सीधी और सरल स्वभाव की महिला हैं…कम उम्र में ही घर वालों ने अधेड़ उम्र के व्यक्ति के साथ शादी कर दी…औऱ बेचारी असमय से पहले ही विधवा हो गई..दो बच्चें हैं..घर घर मे चौका बर्तन करके अपना और अपने बच्चो का पेट पालती हैं…सरला बाई का दीपा से दीदी कहकर बोलती थी।।

दीदी दीदी कहते कहते मुँह का थूक नही सूखता था…औऱ हमेशा एक्स्ट्रा काम भी कर दिया करती थी…कभी भी मना नही करती..बल्कि यही कहती कि अगर काम करके चलूंगी तो तुम मुझे याद तो करोगी दीदी… कितनी ही बातें है सरला बाई की जो दीपा को उसके चिंता में याद आ रही थी…!! आखिर सरला बाई के बिन उसके बच्चों का क्या होगा..भगवान करे सरला बाई को कुछ न हो…

दीपा ने चिंतित होकर सरला बाई को फोन किया…

हैलो सरला कैसी है तेरी तबियत।। औऱ तूने मुझे बताया भी नही की तुझे कोरोना हो गया है…दीपा ने चिंतित स्वर में कहा।।

दीदी बस हल्का सा बुखार हुआ था..दिखाने गई तो डॉक्टर ने जांच लिखी औऱ कोरोना बता दिया…आप घबराइए मत दीदी..सरला बाई ने कहा

घबराऊँ कैसे नही…दीदी भी मानती हैं औऱ मुझे बताया भी नही की तू बीमार…इस महामारी की वजह से तेरा काम पर आना भी बन्द हैं…तो तूने मुझे यह बताना उचित भी नही समझा आखिर क्यो? लगता है बस तू मन रखने के लिए दीदी कहती लेकिन दिल से कभी दीदी माना नही।।

दीपा ने कहा।।

तेरे बच्चे कहा पर है…औऱ खाना पीना.. रहना सहना की व्यवस्था सब कैसे औऱ कहा है…?

दीपा सच मे सरला बाई के लिए बहुत ही चिंतित थी।।


 

सरला बाई कुछ कह नही पाई… आखिर क्या कहे…बच्चे औऱ घर की स्थिती के बारे में।। बस….दीदी दिल से ही दीदी माना हैं.. लेकिन…

सरला की चुप्पी से दीपा समझ गई कि..थी उसे मदद की जरूरत है..।

सरला ने फोन काट दिया… औऱ मन ही मन सोचने लगी…कैसे कहूं कि मुझे आपकी मदद चाहिए…आपके इतने अहसानों के नीचे दबी हूँ कि अब हिम्मत नही होती है… कुछ भी मांगने की यह सोचकर कि कैसे आपका अहसान चुका पाऊंगी… मेरे लिए इतना ही काफी हैं कि आपने मुझे सोसायटी के औऱ लोगो की तरह काम से नही निकाला औऱ ऐसे मुश्किल समय मे बिन काम के पगार भी दे रही हो…एक नोकरानी के लिए कौन इतना करता है… अब हिम्मत नही है मदद मांगने की…जो होगा देखा जायेगा… सरला बाई मन ही कहने लगी।।

उधर दीपा परेशान थी…सरला बाई की चुप्पी से समझ गई थी कि…सरला को मदद की सख्त जरूरत है…मुश्किल समय मे यह नही देखा जाता कि कौन मालिक हैं औऱ कौन नोकर…दीपा खुद ही खुद से न जाने क्या क्या बाते किये जा रही थी…उसको परेशान देख उसके पति सुरेश ने पूछा…

अरे!!क्या बात है.. क्यों इतनी परेशान हो…मुझे बताओ। सुरेश ने कहा।।

सरला बाई को कोरोना हो गया है… एक ही सांस में कह डाला..दीपा ने ।।

यह सुनकर सुरेश भी चिंतित हुआ… कब ,कैसे ,कितने दिन हुए…न जाने कितने ही सवाल कर डाले।।

बस 2 दिन हुए हैं… सुनो मुझे सरला बाई की मदद करनी है… दीपा ने अपने पति से कहा।।

हा जरूर करू..क्या मदद चाहिए सरला बाई को…सुरेश ने कहा।।

पता नही क्या मदद चाहिए… मैने उससे पूछा भी लेकिन कुछ बोली नही…लेकिन फिर भी हमे उसकी मदद करनी चाहिए आखिर में उसके बच्चे भी छोटे हैं, उनको खाना बनाना भी नही आता…औऱ सरला बाई खाना बना नही सकती… तो क्यों ना हम उसके दोनो बच्चो को अपने यहाँ ले आये… ताकि वह सुरक्षित भी रहेंगे… औऱ रही सरला बाई के खाने की व्यवस्था तो आप उसके घर के बाहर खाने का पैकेट रखकर आ जाया करो…वो खुद बाहर से अन्दर पैकेट ले लेगी…औऱ सरला बाई को किसी अच्छे डॉक्टर का इलाज करवायेंगे ताकि वह जल्दी ठीक हो…दीपा ने कहा।।

बात तो तुम्हारी ठीक है… बच्चों को यहाँ लाने से उसकी आधी चिंता खत्म हो जायेगी… औऱ जल्दी ठीक भी हो जाएगी..!! सुरेश ने कहा।।


दीपा ने सरला बाई को फोन किया…औऱ कहा…

हैलो सरला… तेरे दोनो बच्चों को यह लेने आ रहे हैं… तू चिंता मत कर…मै यहाँ दोनो बच्चो का खूब ख्याल रखूँगी जैसे मेरी तबियत खराब होने पर तुमने..मेरी बेटी का रखा था..।औऱ तुझे कोई भी काम करने की जरूरत नही है… क्योंकि मै तेरा ख़ाने का टिफिन रोजाना भेज दूँगी…औऱ तू बस समय पर दवा ले…औऱ साफ सफाई का ध्यान रख…औऱ मुझे बताती रहना की तेरी तबियत में सुधार हो रहा है या नही…समझी।। दीपा ने कहा।।

अरे!! दीदी ।। मै आपका यह अहसान कैसे चुकाउंगी… सच मे भगवान हो दीदी…सरला ने नम आँखो से कहा।।

अरे पागल हैं क्या…मै कोई भगवान नही हूँ.. मै तो एक सामान्य इंसान हूँ तुम्हारी तरह.बस इंसानियत निभा रही हूँ… अब तू अपना ख़्याल रख औऱ आराम कर…मै तेरे लिए कुछ फल औऱ खाने का पैकेट भेज रही हूँ… बाहर से ले लेना…औऱ बच्चों को इनके साथ भेज देना…तुझे कुछ नही होगा..मै हूँ ना तेरे साथ।।

बस जल्दी से ठीक हो फिर गपशप करेंगे..दीपा ने फोन काटते हुए कहा।।

सुरेश अपनी गाड़ी…को अच्छे से सेनेटाइज करके औऱ सरला बाई के लिए कुछ फल औऱ खाने का पैकेट लेकर निकल गया सरला बाई के घर की औऱ।।

सरला बाई के घर के बाहर ही फल औऱ खाने का पैकेट रख दिया… औऱ बच्चो को गाड़ी में बैठना से पहले उन्हें सनेटाइज किया…क्योंकि अपनी सुरक्षा अपने हाथ…!

 

बच्चे दीपा के घर पर सुरक्षित थे…कुछ दिनों में सरला बाई की तबीयत में सुधार होने लगा..दीपा की दुआ औऱ बच्चो की प्रार्थना से वो दिन भी जल्दी ही आ गया जब सरला बाई बिल्कुल ठीक हो गई… औऱ दीपा से कहा

दीदी अगर आप न होती तो शायद मैं आज जिंदा न होती.. बस बच्चों की चिंता से तनाव ज्यादा था।।मै आपका यह अहसान कभी नही भूलूंगी।। सरला ने कहा।।

इस प्रकार दीपा ने मुश्किल समय मे अपनी कामवाली बाई की मदद की…संकट की इस घड़ी में उसे अकेली हैं यह महसूस नही होने दिया..रिश्ता कुछ नही था फिर भी एक रिश्ता बन गया औऱ उस रिश्ते का नाम था इंसानियत ।।आप सभी से यही निवेदन हैं की इन मजदूरों की पगार न काटे.. औऱ हो सके तो मदद के लिए हाथ जरूर बढ़ाये..

ममता गुप्ता

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