दो महीने तक ज़िंदगी और मौत के बीच संघर्ष करती नीरा दिल की धड़कन बंद हो जाने से हमेशा के लिए शांत हो गई।
नीरा के निधन की खबर सुनते ही मोहित की आँखों में रुका हुआ सैलाब उमड़ पड़ा। फूट- फूटकर वह रो पड़ा। उसकी आँखों के सामने दो महीने पूर्व का मंजर घूम गया, जब उसने नीरा को पलंग के पास औंधे मुँह बेहोश पड़े देखा था। मोहित ने उसे होश में लाने का प्रयास किया, लेकिन व्यर्थ।
आज भी याद था, जिस समय नीरा गिरी थी, उस समय वह बाथरूम में था। बच्चे निश्चिंतता से सो रहे थे। नीरा की घुटी हुई एक आवाज़ और गिरने की आवाज़ सुनकर वह घबराकर बाहर निकला था। बेटे प्रखर की नींद भी कुछ गिरने की आवाज़ से खुल गई थी।
आननफानन में पड़ोस के कुछ लोगों की मदद से नीरा को कार में लिटाया गया। इंसानियत के नाते कुछ लोग भी साथ गए। बेटे प्रखर को घर और बहन वर्तिका का ध्यान रखने को कहा और अस्पताल की और रवाना हो गए।
सिर में चोट लगने के कारण नीरा कोमा में चली गई। उसके कोमा में जाते ही मोहित की ज़िंदगी रुक-सी गई। परिवार के नाम पर मोहित का अपना कहने वाला कोई नहीं था। नीरा के परिवार में भी ले देकर एक शराबी पिता था, जिससे तंग आकर उसने बहुत पहले ही घर छोड़ दिया था।
नीरा से उसकी पहली मुलाकात एक दुकान में हुई थी। वह एक सेल्स गर्ल थी। उसके बात करने के अंदाज़ से मोहित बहुत ही प्रभावित हुआ था। उसके बाद अकसर मुलाकातें होने लगी, जिसकी परिणीति विवाह होने पर हुई। विवाह के बाद नीरा ने काम छोड़ दिया था।
नीरा और मोहित अपनी ज़िंदगी में बहुत ही खुश थे। शादी के दस साल बाद भी उनमें कोई भी बड़ा विवाद नहीं हुआ था। छोटी मोटी नोकझोंक अवश्य हुई थी। उनकी खुशी से भरी क्यारी में दो फूल भी खिले। प्रखर और वर्तिका। जिनकी उम्र इस समय आठ साल और पाँच वर्ष थी। अचानक इस हादसे से उनकी हँसती-खेलती ज़िंदगी मुरझा गई। बच्चे तो गुमसुम ही हो गए थे।
पत्नी नीरा के कोमा में चले जाने पर मोहित के ऊपर बच्चों की ज़िम्मेदारी भी आ गई। वह बच्चों के लिए माता-पिता दोनों बन गया। उसने नौकरी से इस्तीफा दे दिया क्योंकि घर के साथ-साथ पत्नी के सही होने तक अस्पताल में भी चक्कर काटने थे। इससे नौकरी निभानी मुश्किल लग रही थी।
मोहित ने बहुत सोच विचार के बाद नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और घर पर ही काम करना शुरू कर दिया। घर और अस्पताल के बीच चक्करघिन्नी की तरह घूमते-घूमते उसे दो महीने बीत गए। लेकिन नीरा की हालत में ज़रा भी फर्क नहीं पड़ा, फिर भी मन में एक आस थी, नीरा के सही होने की। आज वह भी टूट गई।
तभी नर्स ने उसे झिंझोड़ते हुए कहा, धैर्य रखिए। जो होना था, हो गया। शायद भगवान को यही मंजूर था। अब आप सारी कार्रवाई पूरी कर शव को घर ले जाने का इंतजाम कीजिए, कहकर नर्स चली गई।
सारी औपचारिकताओं के बाद मोहित नीरा के शव को लेकर घर आ गया। मित्रों और पड़ोसियों की सहायता से उसकी अंतिम यात्रा का सारा बंदोबस्त किया। बच्चों को भी सँभाला।
बच्चों की खातिर मोहित ने अपनी समस्त खुशियाँ न्योछावर कर दी। उसकी जिंदगी बच्चों के इर्द-गिर्द ही घूमने लगी। चाहता तो दूसरा विवाह कर सकता था। इस बारे में मित्रों-पड़ोसियों ने भी कहा था, पर उसने विनम्रता से इंकार कर दिया था। बच्चों की खातिर वह विवाह नहीं करना चाहता था।
यूट्यूब, टीवी से देख-देखकर धीरे-धीरे उसने खाना बनाना भी सीख लिया। सुबह जल्दी उठकर मोहित प्यार से बच्चों को उठाता। तैयार करता। नाश्ता करवाता। विद्यालय के लिए भी लंच पैक करके विद्यालय भी छोड़ने और लेने जाता। विद्यालय का गृह कार्य करवाता।
पड़ोसियों ने उसे बच्चों के लिए केयर टेकर रखने को कहा, पर उसे यह मंजूर नहीं था। केयर टेकर माता-पिता की जगह थोड़े ले सकते हैं। हमारी तरह प्यार से खाना थोड़े खिला सकते हैं।
मोहित ने उनकी हर जायज़ इच्छा को पूरा करने का अथक प्रयास किया। सप्ताह में एक बार उनका मन बहलाने के लिए घुमाने भी ले जाने लगा। बच्चे भी बहुत समझदार थे। किसी भी नाजायज फरमाइश से पिता को परेशान नहीं किया।
जिम्मेदारियों के बीच भी वह एक पल के भी नीरा को नहीं भूला। अकेले में उससे बातें करता। बच्चों के सामने अपनी बातों से कभी भी मन की उदासी जाहिर नहीं होने दी। सदैव ही एक झूठी मुसकान ओढ़कर रहता। बच्चे समझकर भी नासमझ होने का नाटक करते।
आज इस बात को बीस साल से ज्यादा का वक्त बीत चुका है। मोहित के बालों में भी सफेदी आ चुकी है। चेहरे पर भी थकान नज़र आने लगी है।प्रखर इंजीनियर बन चुका है और वर्तिका भी स्नातक कर चुकी है। यह देखकर मोहित को लगता है, उसकी तपस्या पूर्ण हुई।
वह अकसर रात के अंधियारे में नीरा से बातें करते हुए कहता है, तेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं। इनकी शादी हो जाए बस। मैं बहुत थक गया हूँ। तेरे पास आना चाहता हूँ।
आखिर वह दिन भी आ गया। प्रखर का विवाह हुआ। बहू भी घर आ गई। बहू भी बहुत अच्छी आई। संस्कारी और गुणी। बेटी का भी अच्छे घर में विवाह हो गया। बेटी की विदाई के बाद मोहित ने बेटा-बहू से कहा, बहुत थक गया हूँ। कहकर कमरे में चले गए।
बेटा बहू ने कहा, ‘”ठीक है पिताजी। आप आराम कीजिए”। नाश्ते के वक्त पिताजी के बहुत देर तक न आने पर प्रखर और बहू शुभ्रा ने उनके कमरे का दरवाज़ा खटखटाया। कोई जवाब न मिलने पर भीतर गए।
पिता को प्रखर ने हिलाया तो उनकी गरदन एक तरफ़ लुढ़क गई। पता नहीं कब वे अनंत यात्रा को निकल चुके थे, अपनी प्रिया नीरा से मिलने के लिए। प्रखर की आँखें पिता के त्याग और तपस्या के आगे नतमस्तक थीं।
अर्चना कोहली “अर्चि”
नोएडा (उत्तर प्रदेश)
मौलिक और स्वरचित