सेठ मनमोहन नगर के सबसे धनवान, दयावान और प्रतिष्ठित व्यक्ति थे,, लक्ष्मी की उनपर विशेष कृपा थी,, उनके द्वार से कोई भी खाली हाथ नहीं जाता था,, लोगों की दुआएं उन्हें भरपूर मिलती थी,,
वो बहुत बुद्धिमान भी थे,, पैसा कहाँ निवेश करके अधिकाधिक कमाया जा सकता है, वो बखूबी जानते थे,, काफी चल- अचल संपत्ति के मालिक थे,,
ईश्वर की कृपा से उन्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई,, उसका नाम राजीव रखा गया,, बहुत लाड़ प्यार से लालन पालन हुआ उसका,, जो भी मांगता,, तुरंत हाज़िर हो जाता अत: वह कभी पैसे को सहेजना जान ही नहीं पाया,,
एक उम्र तक ही मां बाप साथ देते हैं,, उसके बाद तो हर इंसान को अपना जीवन यापन खुद ही करना होता है,, राजीव ने कभी भी पिता की सीख पर ध्यान ही नहीं दिया,, धन को संभालना और उसमें उत्तरोत्तर वृद्धि करना आवश्यक है वरना बड़े से बड़ा खजाना भी खाली हो जाता है,,
सेठ जी की मृत्यु के उपरांत जब सारी जिम्मेदारी राजीव के कंधों पर आई तो वह संभाल नहीं पाया और शीघ्र ही चल संपत्ति खत्म होने लगी,, वह चिंतित रहने लगा,,
ऐसे समय में उसकी मुलाकात एक तांत्रिक से हुई जिसने उससे घर में गढ़ा धन होने की बात कही,, इसमें कोई आश्चर्य भी नहीं था क्यों कि उसके पिता के पास इतना धन था कि वो उसे कहीं गाढ़ के भी रख सकते थे,,
बस उसकी इसी मानसिक स्थिति का फायदा उस तांत्रिक ने उठाया और कहा कि इसके लिए उसे पूजा करनी होगी और पूजा के नाम पर काफी धन उससे ले लिया,,
अब रोज़ वो नई नई पूजा का नाटक करता और पैसे ऐंठता रहता,, जिसके पास दो वक्त की रोटी खाने के पैसे नहीं होते थे अब उसकी जेब गुलाबी नोटों से भरी रहती,, लोगों को देखकर आश्चर्य तो होता,, पर आजकल कौन किसके फटे में टांग अड़ाता है,, पर यह जरूर चर्चा का विषय बन गया था कि इसके पास पैसा आ कहाँ से रहा है,,
राजीव को उसने पूरी तरह से वश में कर लिया था और सख्त हिदायत दे रखी थी कि वह इस बात की चर्चा किसी से न करे वरना काम पूरा नहीं होगा,, वह जब भी पैसे मांगता,, राजीव को देना पड़ते,,
उसके मन में यह डर भी बिठा दिया था कि वह उसकी बात नहीं मानेगा तो बहुत बड़ा अनर्थ हो जायेगा,, जब पास की पूंजी खत्म हो गई तो बेटे ने कम्पनी से लोन ले लिया ,, पर उसका भरना भरा,, लेकिन तांत्रिक का लालच बढ़ता ही जा रहा था,, वह जितना डराता, उतना ही पैसा आता,, अब नौबत रिश्तेदारों से मांगने की आ गई,, इस तरह करीब 50-60 लाख के फेर में आ गये वो,,
असर ऐसा कि उसके किसी भी काम का विरोध करने का साहस ही नहीं रहा पूरे परिवार में,, अब तंत्र साधना के नाम पर वह सबको प्रताड़ित करने लगा,, हद तो तब हो गई जब उसने उनके पांच साल के पोते को जलती हुई सिगरेट से दाग दिया,,
अब बहू ने उसके खिलाफ़ आवाज़ उठाने का फैसला किया और अपने घरवालों से बात की,, देवर ने भी साथ दिया उसका और थाने में रिपोर्ट दर्ज़ करा दी,, इतना सब होने के बावजूद भी राजीव उसको दोषी मानने को तैयार नहीं था,, ऐसा ब्रेन वॉश किया था तांत्रिक ने उसका,,
पर कहते हैं न कि बुरे काम का नतीजा हमेशा बुरा ही होता है,, आज वह सलाखों के पीछे है,, पर यह कदम पहले ही उठा लेना था तो जो आर्थिक और मानसिक संत्रास झेला,, उससे बच जाते,,
इसी को कहते हैं,, विनाशकाले विपरीत बुद्धि,,
कमलेश राणा
ग्वालियर