औ …औ..औ …
अरुंधती की आँख खुली तो किसी के ओकने की आवाज़ सुनकर यकायक विचार मस्तिष्क में कौंधा ..-क्या ये श्यामली को उल्टियां हो रही है.तत्काल ही बिस्तर छोड़ वो बाहर की ओर लपकी ..बाहर जाकर देखा तो श्यामली पौधों को पानी दे रही थी.
क्यूँ रे श्यामली अभी तू उल्टी कर रही थी ?
श्यामली चौंक कर -;जी मैडम जी ,
अरुन्धती श्यामली के कुछ और पास आकर मुस्कुराई और भोंहे उठाकर शरारती अंदाज़ में बोली ,,-क्या बात है श्यामली ,कोई खुशखबरी है क्या ?
श्यामली कुछ न बोली ,,दोनों हाथों से मुंह छिपाकर ऐसे खडी हो गई मानो शर्म के मारे अभी ज़मीन में गढ़ जायेगी.
अरुंधती को बात समझते देर न लगी ,,,श्यामली ये तो बहुत ही खुशी की बात है ..अब तू सुन आज से तू कोई भारी काम नही करेगी और अपने खान पान पर पूरा ध्यान देगी.और ..और …बस…मैंने कह दिया …अरे सुन रमिया कहाँ है ..सो रहा है क्या..बुला उसको ,,मैं आज उसकी खबर लेती हूँ…अब सारे काम वही करेगा और तू सिर्फ आराम करेगी …समझी ?
अरुंधती के चेहरे पर खुशी ,चिंता और उतावलेपन का मिलाजुला भाव था.श्यामली शरमाकर वहां से दौड़ गई…अरुंधती ने हाथ को ऐसे उठाया मानों कह रही हो ,आराम से, थोडा हौले हौले चल श्यामली …ज़रा संभल कर….
शादी के बारह साल बीत चुके थे ,,,अरुंधती की ममता तृषित थी ,उसकी बगिया में कोई फूल नही खिल सका …रह रह कर अतृप्त मातृत्व सूनी कोख में टीस मारता था …सभी कोशिशें कर ली ,सभी अच्छे से अच्छे डॉक्टर,,बड़े बड़े पंडित,वैध ,तांत्रिक और ओझा ….पर विधाता शायद उसकी गोद में संतान डालना भूल गया था
अरुंधती को पौधों से बहुत ही प्यार था …वो पौधों की देखभाल ऐसे करती थी मानों वे उसके अपने बच्चे हों.या फिर कर कह सकते है कि,जो ममता ,जो वात्सल्य उसमे उबल उबल कर बाहर छलकता था ,वही स्नेह वो इन पौधों पर छिड़क कर अपनी ममता की प्यास शांत करती थी अरुंधती..
रमिया उसके यहाँ माली का काम करता था, बहुत छुटपन से वो अरुंधती के पास था,अरुंधती को उससे भी बहुत लगाव था …उसने रमिया के रहने के लिए घर के पीछे एक छोटा सा क्वार्टर बनवा दिया था …रमिया अरुंधती का बहुत ध्यान रखता था और खासकर उसकी बगिया का …उसे मालूम था कि ,इन् पौधों में मैडम जी के प्राण बसते है …अतः वो उनकी देखभाल में कोई कसर नही छोड़ता था.
पिछले साल ही रमिया गाँव से गौना करवा कर श्यामली को ले आया था …श्यामली थी तो सांवली ,पर उसके नैन नक्श गज़ब के आकर्षक थे …वो बहुत ही कम बोलती थी ,अधिकतर बातों का जवाब बस सर हिला कर देती थी.काम में बहुत ही होशियार थी,सो अरुंधती के घर के कामों में भी अब श्यामली हाथ बंटा देती थी, खाली समय में श्यामली अरुंधती से लिखना और पढ़ना भी सीखती थी.
अरुंधती के स्नेह और अपनेपन की वजह से श्यामली जल्द ही उससे बहुत ही घुलमिल गई ,और धीरे धीरे दोनों बहुत करीब आ गई ,,अपनी हर बात एक दूसरे से बांटने लगी.
तभी एक दिन अचानक श्यामली की उल्टियों की आवाज़ ने अरुंधती को चौका दिया ….श्यामली मां बनने वाली है ,इस विचार से ही अरुंधती इतनी रोमांचित हो उठी कि, उसके रोम रोम में सिहरन हो उठी मानों, उसकी स्वयं की कोख में से कोई नन्ही कोपल प्रस्फुटित होने वाली है.
शेखर ….अरुंधती अपने पति से बोली…
हाँ ..अरु …कहो क्या बात है? शेखर ने पूछा.
वो अपनी श्यामली है न, वो मां बनने वाली है…
अरे वाह.. ये तो बहुत ही खुशी की बात है…शेखर अरुंधती की और देखते हुए बोला.
हां बहुत ही खुशी की बात है..कितने वर्षों के बाद हमारे आँगन में किलकारियां गूंजेंगी … नन्हे मुन्हे बहुत ही कोमल ,रुई जैसे मुलायम ,प्यारे प्यारे छोटे से बच्चे को गोद में लेकर छाती से चिपकाने का अवसर आया है शेखर …है न मैं ठीक कह रही हूँ न…अरुंधती शेखर से बोल रही थी और शेखर जैसे किसी सोच में पडा अरुंधती के इस उतावलेपन का आंकलन कर रहा था.
शेखर चिंतित था ये सोचकर कि, अरुंधती की ममता उसे किस ओर ले जा रही है, इतना उतावलापन ,इतना उस बच्चे के बारे में सोचना कही अरुंधती के लिए घातक सिद्ध न हो…
पर अरुंधती तो बस बोले जा रही थी..मैंने तो श्यामली से कह दिया है ,वो कोई काम न करे सिर्फ आराम करे..और अच्छी अच्छी चीज़ें खाए ,खूब ज्यूस पिए और हाँ दूध बिना भूले दोनों समय पीना बहुत ज़रूरी है …आखिर पेट में एक नन्ही सी जान पल रही है …वो बोलती जा रही थी …शेखर उसमे वात्सल्य का बीज फूटते हुए साफ़ साफ़ देख रहा था .
अरुंधती का अधिकतर समय अब श्यामली की तीमारदारी में ही निकलता था …उसको समय से खाना खिलाना,ज्यूस पिलाना ,जबरदस्ती दूध पिलाना,समय समय डॉक्टर से चेक अप करवाना सब अरुंधती खुद करती थी .
रमिया और श्यामली तो जैसे मैडम जी के युगों युगों के लिए आभारी हो गये थे …कौन किसी के लिए इतना करता है ? वो भी घर के एक मामूली से नौकर के लिए |
उन्हें तो समझ ही नही आता था कि वे मैडम जी के इन अहसानों का बदला कैसे चुकाएंगे .सौ जन्मों में भी इतने प्यार विश्वास और अपनेपन का मूल्य नही चुकाया जा सकता ..
आखिर वो समय भी आ गया ,,जिसकी सबको प्रतीक्षा थी.. श्यामली ने एक फूल से नन्हे पुत्र को जन्म दिया ….सबसे पहले अरुंधती ने उसको गोद में लिया,उसकी आँखों से झर झर आंसू बह रहे थे ,,बच्चे को उसने अपनी छाती से चिपका रखा था ,उसे महसूस हो रहा था कि उसकी छाती से दूध की सहस्त्रों धाराएं फूट पड़ी है ,
लाइए मैडम ..बच्चे को उसकी मां को दें ..ताकि वो बच्चे को स्तनपान करवा सके…अचानक नर्स की आवाज़ से अरुंधती की तन्द्रा भंग हुई…
ह..ह..हाँ..हाँ…कहकर अरुंधती ने बच्चे को श्यामली की बगल में लिटा दिया…और जैसे किसी स्वप्न से जागने के अहसास ने जैसे उसको हिलाकर रख दिया..वो बहुत ही भारी मन से लडखडाती हुई कमरे से बाहर निकल आई…
शेखर बाहर ही खडा था ,उसे जिसका अंदेशा था वही घटित हुआ…शेखर ने अरुंधती को कमर से पकड़कर गाड़ी में बिठाया और घर ले आया…
अरुंधती शून्य में थी…कुछ बोली नही…शेखर ने भी कोई बात नही छेड़ी…क्योकि वो भलीभांति जानता था कि ,इस समय अरुंधती के मन में चल रहा है…
तीन दिन गुज़र गये …अरुंधती ने स्वयं को संभाल लिया था…वो रोज़ श्यामली से मिलने हस्पताल जाती..कुछ देर बच्चे के साथ खेलती प्यार करती और घर आ जाती …
कल श्यामली हस्पताल से घर आने वाली थी…अरुंधती ने स्वयं रमिया के यहाँ सारी व्यवस्थाएं करवाई ताकि श्यामली और बच्चे को कोई परेशानी न हो…
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उआं ….उआं ….उआं …ये आवाज़ कानों में पड़ते ही अरुंधती की नींद खुली…
अरे ; तो क्या श्यामली घर आ गई? अरुंधती बिस्तर से लगभग भागती हुई उठी…और तीर की गति से बाहर निकली …लपक कर रमिया के घर की तरफ दौड़ी..
अरे यहाँ तो ताला पडा है …फिर श्यामली कहाँ…कही घर में तो नही…वो अपने दरवाज़े की और लपकी..किन्तु उसे फिर बाहर से ही बच्चे के रोने की आवाज़ सुनाई दी….वो बाहर निकल कर बैचेनी से इधर उधर नज़रें दौडाने लगी… तभी उसे बगिया में कुछ हरकत सी महसूस हुआ ..वो तुरंत उस ओर दौड़ी…पास जाकर देखा तो वहां फूलों के बीच श्यामली का बच्चा लेटा हुआ था…ऐसा लग रहा था मानों ,अभी अभी एक नन्हा सा नया नया फूल खिला है ,,,अरुंधती ने उसको देखते ही गोद में उठा लिया और बोली ,ये रमिया और श्यामली क्या पागल हो गए है जो इस नन्ही से जान को यूँ ज़मीन पर लिटा दिया…वो पलटकर आवाज़ देने ही वाली थी कि, बच्चे के हाथ में एक कागज़ का टुकड़ा देखकर रुक गई…और उस कागज़ के पुर्जे को पढने लगी…
“मैडम जी ये आपकी बगिया का फूल है …हम तो माली थे …हमनें बीज लगाया था,, परन्तु इस बीज को प्यार और ममता से सींचा आपने,, और इस फूल पर सिर्फ और सिर्फ आपका अधिकार है…
आपकी
“श्यामली “
अरुंधती काँप रही थी ,उसकी आँखें अविरल बह रही थी …बच्चे को छाती से कसकर चिपटाकर मानो वो पूरे वेग से चिल्लाई …शेखर ….देखो मैं बंजर नही हूँ ….ये देखो फूल खिला है, मेरी बगिया का फूल ..उसकी गोद में मुस्कुरा रहा था, एक माली की स्वामिभक्ति और त्याग का सुंदर फूल।
नम्रता सरन “सोना”
भोपाल मध्यप्रदेश