दो माह पूर्व ही अवनि ब्याहकर ससुराल आई थी। जाॅब में होने के कारण वह घर गृहस्थी के कार्यो में अधिक अभ्यस्त नहीं थी। इस कारण, सास कान्ता देवी और छोटी ननद महक को उसका मजाक बनाने का अक्सर मौका मिल जाया करता था। अवनि अपनी कमजोरियाँ जानती थी, इसलिए कुछ कह नहीं पाती थी बस, मन मसोस कर रह जाती थी।
इस बार, शादी के बाद उसका पहला रक्षाबंधन पर्व आने वाला था। आज मायके ले जाने के लिए उसके पापा आने वाले थे।
वह सुबह से ही खुशी-खुशी रसोई में जुटी हुई थी। सासुजी और ननद भी काम में उसका साथ दे रही थी।
सासुजी ने बातों-बातों में कहा “अवनि, मैंने तुमसे कहा था कि अपनी मम्मी से पूछ लेना कि इस बार राखी बाँधते हुए तुम्हें क्या-क्या सामान लगेगा, तुमने पूछ लिया?”
“जी, मम्मी जी सब पता कर लिया है।”
“तो क्या-क्या लेना है और कितने पैसे सामान लाने के लिए दें, बता दो ।” सासुजी के शब्द स्नेह से परिपूर्ण थे।
“जी मैं मेरे भाई के लिए अच्छी राखी, नारियल और मिठाई के अलावा उपहार में देने के लिए ब्रान्डेड घड़ी, वीडियो गेम और बढ़िया कपडे़ लेने की सोच रही हूँ। इन सबके लिए पैसों की जरूरत नहीं है…मम्मी जी, मेरे पास हैं।”
“अरे नहीं, यह तो ससुराल का ही लगता है।” सासु जी ने मुस्कराते हुए कहा।
तभी महक बीच में बोल उठी-“भाभी आप आपके भाई के लिए घड़ी, वीडियों गेम क्यों ले रही है? इसकी जगह दो जोड़ कपडे़ दे दीजिए। वो तो मंदबुद्धि है। उसके लिए ये सब चीजें कोई काम में नहीं आएगी।”
महक की बात से सन्नाटा छा गया। अवनि तो ऐसे हो गई जैसे काटो तो खून नहीं। वह कुछ मायूस हुई फिर बोली “दीदी, मेरा भाई मंदबुद्धि नहीं है, वह आॅटिज़्म से पीड़ित है। उसकी इस बीमारी से हम दोनों भाई-बहन का रिश्ता तो नहीं बदल जाता। चाहे उसे घड़ी देखना न आती हो, वीडियों गेम भी नहीं खेल पाता हो। पर मुझें विश्वास है कि वह कभी न कभी नाॅर्मल बच्चों जैसा खेल पाएगा और घड़ी भी देख सकेगा। मैं हर साल रक्षासूत्र भी उसके ठीक होने की कामना और उसकी भगवान सदा रक्षा करें इसलिए बाँधती हूँ। मैं जानती हूँ कि वह आम भाईयों जैसा, मेरी रक्षा का दायित्व नहीं उठा सकता। लेकिन मैं तो उसका उठा सकती हूँ ना। शायद आप यह सब नहीं समझ पाएँगी।”
सासुजी समझ गई कि महक की बात ने अवनि को गहरी चोट पहुँचाई है। उन्होंने बात को संभालते हुए कहा “अवनि, तुम सही कह रही हो जरूरी नहीं कि राखी बाँधने के बाद भाई ही बहन की रक्षा करें। कुछ बहनें भी अपने भाई की रक्षा करने में सक्षम हो सकती है। तुम पढ़ी-लिखी समझदार हो, तुम अपने दायित्व निभाकर उसकी रक्षा करना।”
“जी मम्मी जी”, और वह उनके गले लग गई। वह खुशी के आँसू नहीं रोक पाई।
महक को अपनी गलती का अहसास हो गया था, उसने कहा “आइ एम सो साॅरी भाभी।”….. “मैं ख्याल नहीं रख पाई। मुझें बोलने से पहले सोचना चाहिए था।”
सासुजी अंदर गईं।
उन्होंने अलमारी से रुपए निकाले।
बाहर आईं ।
“लो अवनि, यह रुपये हैं। सबकुछ बढ़िया से बढ़िया लेना।” उन्होंने उसके कंधे पर हाथ रख, बड़े प्यार से रुपए थमा दिए।
अवनि का चेहरा फूलों सा खिल उठा।
तभी डोरबेल बजी।
उसने दरवाजा खोला।
उसके सामने पापा खडे़ थे।
उसका चेहरा खुशी से दमक गया।
वे अपनी बेटी के चेहरे की चमक देख संतुष्टि से भर गए।
भोजन से निवृत्त होने के बाद उसके जाने की तैयारी शुरू हो गई।
उसने जाते समय सासु जी, ससुर जी के पैर छुए और महक को लिफाफा देते हुए कहा “दीदी, आप राखी पर अपना मनपसंद सूट, मेरी ओर से जरूर ले लेना और वही पहनकर अपने भैया को राखी बाँधना। फिर मुझे ढेर सारे पिक भेजना। मैं स्टेटस पर लगाऊँगी।”
दोनों ने एक-दूसरे का स्नेह से हाथ थाम लिया।
“भाभी, आप भी भेजना और हम दोनों ही स्टेटस पर लगाएंगे।”
कहते हुए ढेर सारा प्यार भाभी ननद के शब्दों में उतर आया था। दोनों अब पक्की सहेलियों वाले प्रेम से सरोबार हो चुकी थी।
सपना सी.पी. साहू “स्वप्निल”
इंदौर (म.प्र.)
सुंदर रिश्तों की सुंदर कहानी