सोलह साल, कक्षा नौ की छात्रा लवलीन को, कमरे में रोता देख मम्मी ने, तुरंत वहाँ जाना उचित नही समझा।
जैसे ही सिसकियों का सिलसिला कुछ देर में धीमा हुआ, नॉक कर वह अंदर दाखिल हुईं।
सहसा उन्हें वहाँ देख, लवलीन सतर्क हो गयी। विषय के मद्देनजर, किसी सकारात्मक वार्तालाप की आशा नही थी, उसे।
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मम्मी- क्या हुआ बेटा, लवलीन?? तुम रो क्यूँ रही हो??
लवलीन- नही नही मम्मी!! मैं!! मैं!! बिल्कुल नही!! मैं क्यों रोऊँ??
मम्मी- बेटा कोई बात है तो तुम मुझसे शेयर कर सकती हो। मैं तुम्हारी माँ हूँ। मैं समझबूझ कर सलाह भी दूँगी। सही रास्ता भी सुझा सकती हूँ।
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बड़ी ना नुकर, समझाइश, जद्दोजहद, अनुरोध- के बाद लवलीन मम्मी से साझा करने को तैयार हो गई।
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लवलीन- मम्मी, स्कूल में एक लड़का है अक्षत, जिसे मैं पिछले दो साल से पसंद करती हूँ।
पढ़नेलिखने, खेलकूद, अतिरिक्त पाठ्यचर्या में, मैं अच्छी हूँ। फिर भी वो दिव्या और रिया के साथ ही रहता है। अपने खास दोस्तों में, उन्हें, मिलवाया शामिल भी कर लिया है।
मुझसे बात ही नही करता। मैं कैसे उसे बताऊँ कि मैं उसे कितना पसंद करती हूँ???
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इतना सुना नही कि, मम्मी पर वही परंपरागत, रूढ़िवादी सोच हावी होने लगी। और वो चीखने, चिल्लाने लगीं।
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मम्मी- हे मेरे भगवान!! हे रामजी!! अब बस यही सब सुनना लिखा था। लवलीन, तुम स्कूल पढ़ने जाती हो या ये सब करने??
घरपरिवार की इज़्ज़त का क्या होगा?? किसी को बताया तो नही?? अपनी बेस्ट फ्रेंड सुहाना व रानी को तो नही कहा??
उनकी माँ, श्रीमती कपूर और शर्मा को पता चल गया, तो हम कहीं के नही रहेंगे। वे एक पल में तुम्हारे चरित्र को तारतार कर देंगी।
ये सब क्या भर गया है तुम्हारे दिमाग में??
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लवलीन आश्चर्य मिश्रित भावों से मम्मी को तकती है।सोचती है, अभी तो मम्मी, विश्वासपात्र बन समस्या का निदान करने का आश्वासन दे रही थीं। मम्मी का ये परिवर्तित स्वरूप?? कैसे बच्चे मातापिता को अपना मित्र मान अपने भाव साझा करें??
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लवलीन- मम्मी आप को क्या हो गया है?? आज के बाद आप से अपनी कोई बात साझा नही करूँगी।
मम्मी- बेटी!! मैं तेरी भलाई के लिए ये सब कह रही हूँ।
लवलीन- विश्वासपात्र बनने का नाटक कर, अपने ही बच्चे पर विश्वास नही करने में कौन सी भलाई है??
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मम्मी एकटक शून्य में निहारती हैं। उनके पास कोई जवाब नही था।
मौलिक और स्वरचित
कंचन शुक्ला- अहमदाबाद