मां का भी दिल होता है – सुधा जैन

45 वर्ष की कादंबरी एक ऑफिस में काम करती है। सुबह से लेकर शाम तक का उनका अपना रूटीन है ,और वह काम में लगी रहती है। घर पर उनकी प्यारी सी बिटिया है, जिसका नाम नव्या है, वह कॉलेज में पढ़ रही है। मोबाइल, दोस्त फैशन, इन सब में उसके पास बिल्कुल भी समय नहीं है कि वह अपनी मां के पास थोड़ी देर बैठे, उनसे बात करें।

जबकि कादंबरी ने 7 वर्ष पहले एक हादसे में अपने पति को खोया, तभी से नव्या उनकी जिंदगी बन गई। उसकी हर सुख सुविधा का ख्याल रखना ,उसके जीवन का मकसद बन गया ।

लेकिन कभी-कभी पति के खालीपन का ऐसा एहसास उसे अंदर तक चोट पहुंचाता, और लगता कि “काश मेरे साथ कोई होता”

अपने ऑफिस में भी अपने कार्य व्यवहार से सभी का दिल जीता हुआ है। ऑफिस में नए मैनेजर आए हुए हैं। उनका नाम राजीव है। बहुत व्यवस्थित और सुलझे हुए हैं। ऑफिस के काम के सिलसिले में उनसे मुलाकात होती रहती है।

परिचय बढ़ता गया, जब उनके बारे में जाना तो पता चला ,उनकी पत्नी नहीं है। दोनों बच्चे विदेश चले गए हैं। एक दिन राजीव ने कादंबरी को केबिन में बुलाकर कहा “हमारे विचार परस्पर मिलते हैं, आप मुझे अच्छे लगते हैं, क्यों ना हम हमारे जीवन के  उत्तरार्ध का सफर मिलकर तय करें”।

कादंबरी को भी इन दिनों उनका साथ अच्छा लग रहा था, लेकिन वे अपनी बिटिया नव्या को लेकर चिंतित थी, फिर भी उन्होंने कहा” मैं एक बार इस विषय में नव्या से बात करना चाहती हूं “

शाम को अपने बिटिया के कमरे में गई ।बिटिया अपने दोस्तों से बात कर रही थी। अगले दिन कोई पार्टी का प्रोग्राम बन रहा था ।मम्मी ने दो तीन बार अपनी बात कहने की कोशिश की ,लेकिन नव्या ने उन्हें टोंक दिया और कहां की” देख नहीं रहे मम्मी मैं अपने दोस्तों से बात कर रही हूं, बस आप तो बिल्कुल नहीं समझती”।

कादंबरी उदास होकर अपने कमरे में आ गई। सुबह वह अपने घर के कामों में लगी हुई थी। तभी नव्या ने उनको कहा

” अरे मम्मी ,आपके मोबाइल पर मैसेज आ रहे हैं”

और नव्याने उन मैसेजो को देख लिया,वह गुस्से में आग बबूला होते हुए अपनी मम्मी के पास आई ,और कहां “यह राजीवअंकल से क्या चक्कर चल रहा है, शादी की बात हो रही है ,आपको शर्म आनी चाहिए ,आप तो एक मां है और मां को प्रेम करने का कोई अधिकार नहीं, मुझे तो बहुत बुरा लग रहा है ,और आप पर शर्म आ रही है ,अपने आप पर भी “


ऐसा कहते हुए वह कालेज चली गई।

कादंबरी सोचने लगी “इस बच्ची को क्या हो गया है? जैसे मैं नव्या का मन समझ रही हूं, वैसे नव्या मेरा मन क्यों नहीं समझ रही ?वह क्यों नहीं जान रही कि मैं उसकी मां के अलावा एक स्त्री भी हूं ?और मेरी भी कुछ कोमल भावनाएं हैं।”

उसकी आंखें आंसुओं से नम हो गई ,और उसने राजीव को मैसेज किया

”  हमारा साथ संभव नहीं है, क्योंकि मेरी बिटिया को मंजूर नहीं है”।

एक अजीब सी उदासी आ गई थी कादंबरी के जीवन में, और नव्या को लग रहा था, मैंने बहुत अच्छा काम किया, जो मम्मी को रोक दिया।

एक दिन नव्या जब अपनी कालेज में अपनी सहेली अनाया के साथ थी, अनाया ने बताया कि वह अपनी मम्मी की शादी कर रही है। यह सुनकर नव्या को बहुत ही आश्चर्य हुआ, और वह पूछने लगी”

यह क्या कह रही हो तुम?

अनाया बोली

” मैं सही कह रही हूं ,मेरी मम्मी को 6 साल हो गए, पापा से तलाक किए हुए। मुझे लगता है मेरी मम्मी को भी एक साथ ही चाहिए ,जिससे वह जीवन के सुख दुख साझा कर सकें, अपने जीवन को खुशी के साथ जी सके , हमारे माता-पिता का भी अपना जीवन होता है ,और बच्चों के साथ के सिवाय भी कुछ और चाहिए होता है। मैंने तो अपनी मम्मी का विज्ञापन मेट्रोमोनियल साइट पर डाला था और उनके लिए जीवनसाथीको ढूंढने में मदद की “।

यह बात सुनकर नव्या को अपनी मम्मी का उदास चेहरा याद आया, और अपनी बदसलूकी भी।

उसे बहुत बुरा भी लग रहा था। उसने सोचा ,

“आज ही जाकर मम्मी से माफी मांगती हूं। राजीव अंकल को घर पर बुलाती हूं”।

वह घर गई और अपने मम्मी से लिपट गई, और कहने लगी

” मम्मी ,मुझे माफ कर दो, मैंने आपका दिल दुखाया है ,मैंने सिर्फ आपको अपनी मम्मी ही समझा, लेकिन आप मम्मी के सिवा भी एक नारी हो ,और आपका भी दिल है, जज्बात है, भावनाएं हैं ।मुझे माफ कर दो ,”

ऐसा कह कर अपनी मम्मी को अच्छे से तैयार करने लगी। इतनी देर में ही राजीव आ गए। उनके हाथों में प्यारा सा गुलदस्ता था। नव्या के दिल और दिमाग पर जो कोहरा छाया हुआ था वह छंट गया था, और साफ ,स्वच्छ ,नीला आसमान उन तीनों के दिल हृदय को खुशी दे रहा था।

सुधा जैन

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!