आभा!! हाँ, यही नाम था उसका। जिसकी तारीफ़ में, मैं कलमें पढ़ा करता था।
बारिश के मौसम की तरह शीतल, शांत तो बिल्कुल भी नही। उसी मौसम की तेज़ हवाओं सी चंचल, मदमस्त और अनन्य ऊर्जा से परिपूर्ण। मन के भावों को कभी समेटती कभी बिखेरती। पढ़ीलिखी, समझदार परंतु फिर भी सरल। सौम्यता की खान, सादे से कपड़ों में भी एक छोटी बिंदी, हल्के गुलाबी लिपग्लॉस से वो जो छटा छोड़ती, तो कई दिनों तक छवि आँखों के सामने नाचती रहती।
जब भी याद आती है दिल बाग़बाग़ हो उठता है। हर्षातिरेक से सिसकियाँ थमने का नाम नही लेतीं। पर ये किसी से कह नही सकता। कोई नही जिसको ये बता सकूँ। एक ज्वारभाटा सा मेरे मनमस्तिष्क, अंगअंग में हिलोरे लेता रहता है। उसके दुपट्टे का वो छू जाना भर, ऐसी उमंग ला देता था कि सुनहरे जीवन के सपने उजागर होने लगते हैं।
“लोग बेवज़ह उदासी का सबब पूछेंगे,
बात निकलेगी तो फ़िर दूर तलक जाएगी।”
आज के चलन में जहाँ रोज़ ही नए नए सामानों का आर्डर करती , अपनी पत्नी, बेटी और बेटे के बिल का भुगतान जो मैं करता हूँ। काश!! मेरा भी आर्डर मुझे डिलीवर हो जाता। मैं भी उन नर्म ज़ुल्फों की छाँव में बैठ पाता। है तो सबकुछ मेरे पास पर जिस जीवन के सपने मैंने उसके साथ देखे थे, वो जी पाता तो कैसा होता?? ख़ैर!! इसको जाने देता हूँ।
मुद्दा यह नही कि क्या नही मिला। जो मिला है वो भी क्या सबको नसीब होता है?? ऐसी बातों का ताना शायद सभी को कभी न कभी मिल ही जाता है। जहाँ पतियों के पुराने जवानी के किस्से सामने आए वहीं पुरुषों को उनकी पत्नियाँ तरह तरह के तमगे देना शुरू कर देतीं हैं। अब तो जैसे भुलभटके ही वो याद आती है। यादों ने भी साथ छोड़ना शुरू कर दिया है।
इन बीस सालों का सफ़र बहुत खूबरसूरत था। मेरा हमसफ़र ज़हीन, बच्चे खुशमिजाज, काबिल हैं। कोई तंगी नही। नाम, इज़्ज़त, शोहरत सब है। अपने जीवन को खूब गर्मजोशी से जिया मैंने। दीनदुनिया सभी के मज़े लिए हैं। कहीं लेशमात्र कोई कमी नही। कोई त्याग, संघर्ष या कोम्प्रोमाईज़ वाली सिचुएशन नही थी।
अब सवाल यह है, कि क्या मेरा प्यार झूठा था?? जिस प्यार की तामील नही हुई क्या उसका मैंने अपने मनोरंजन के लिए केवल इस्तेमाल किया है?? आज जो है वो भी उम्दा है तो वो जिसका साथ छूट गया उसका ना होना यह नही बताता कि वह सिर्फ़ एक timepass थी मेरा??
मौलिक और स्वरचित
कंचन शुक्ला- अहमदाबाद