आज लता की शादी के 2 महीने पूरे हो गए। गरीबी के कारण उसके माता-पिता ने उसकी शादी एक ऐसे इंसान से की जिसकी पहली औरत स्वर्गवासी हो गई थी। पर उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता वह तो अपनी शादीशुदा जिंदगी से बहुत खुश है। हालांकि उसके पति की पहली बीवी से हुए दो बच्चों ने उसे खुद की संतान होने से पहले मां बना दिया। पर उसे इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ा वह दोनों बच्चों को उतना ही प्यार देती है जितना वह खुद के संतान को देती दोनों बच्चे भी लता के साथ घुलमिल गए थे।
समय बीतता गया गृहस्थी चलती गई और लता ने एक बेटे को जन्म दिया। एक औरत को और क्या चाहिए.. उसकी जिंदगी खुशहाल घोंसले की तरह थी जिसमें वे पति पत्नी और उनके तीन बच्चे रहते थे। लता का पति मैकेनिक था जो लोगों के घरों में जाकर बिजली से जुड़ी समस्याओं को दूर करता था। आर्थिक स्थिति बहुत ज्यादा अच्छी तो नहीं थी पर लता ने बहुत सुंदरता से अपनी गृहस्थी को आदर्श बना कर रखा था।
लेकिन कहते हैं ना विधाता के लिखे लेख को कोई नहीं समझ सकता लता ने जिस प्यार और हौसले से अपने छोटे से घोंसले को बनाया था अब उस पर नजर लगने वाली थी।
लता के पति का घर लौटते समय एक्सीडेंट हो गया और उसने अपना एक पैर गवा दिया। अब कमाई का कोई जरिया नहीं था घर में खाना खाने के लिए भी लाले पड़ने लगे। तीन छोटे-छोटे बच्चें भूख से मां को गुहार लगाते जिसे देख एक मां का सीना छलनी छलनी हो जाता।
लता के पति को अपनी लाचारी से घिन आने लगी तो उसने नशे का दामन पकड़ लिया बस फिर क्या था कंगाली में आटा गीला.. यही हाल हो गया लता का।
एक्सीडेंट के समय लता के माता-पिता ने लता को कुछ पैसे दिए थे खर्चे के लिए। धीरे-धीरे वह सब भी खत्म होने लगे अब लता को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें। खुद तो भूखा रहा जा सकता है पर बच्चों का क्या।
ऐसे में डूबते को तिनके का सहारा मिल जाए तो वह उस सहारे को ही पकड़ता है फिर चाहे वह तिनका उसे किस और ले जाए इस बात से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। लता ने भी अपनी इस डूबती नैया को पार लगाने के लिए एक सहारा पकड़ लिया।
उसे किसी ने बताया कि लोगों के घरों में चूल्हा चौका करके तुम अपना घर चला सकती हो तो लता ने भी दो तीन घरों में झाड़ू-पोछा का काम पकड़ लिया। घर में राशन आने लगा, पैसे आने लगे, बच्चों की छोटी मोटी जरूरतें पूरी होने लगी।
पर नशा इंसान की बुद्धि को छिण कर देता है औरत घर से बाहर जाकर काम कर रही है इस बात से लता के पति को परेशानी होने लगी वह उस पर उल्टे सीधे इल्जाम लगाता यहां तक की उसे कुलटा कहकर भी बुलाने लगा।
लता को उसके इस व्यवहार से बहुत आघात पहुंचता लेकिन क्या करती काम वह छोड़ नहीं सकती थी क्योंकि लता का पति अपाहिजता के कारण कुछ काम नहीं कर सकता था और यही कारण उसका चिड़चिड़ापन भी बढ़ा रहा था।
वह चुपचाप सब कुछ सुनते हुए सहते हुए अपने कर्तव्यों को पूरा कर रही थी। एक औरत अपनी गृहस्थी को बचाने के लिए हर वह प्रयत्न कर रही जो वह कर सकती थी।
फिर एक दिन वह हुआ जिसके बारे में लता ने कभी नहीं सोचा था।
वह काम से घर लौट कर आई तो देखा कि उसका पति बिस्तर पर नहीं था। बच्चे भी उसे कहीं नहीं दिख रहे थे वह घबराकर घर में इधर-उधर देखने लगी तब उसे वह देखने को मिला जो वह सपने में भी कल्पना नहीं कर सकती थी। जमीन में उसके तीनों बच्चे नश्वर पड़े थें और उसका पति बच्चों के सामने सिर पर हाथ रखे बैठा हुआ था।
उसने लता की तरफ देखा और कहा जिनकी वजह से तुझे बाहर जाकर काम करना पड़ रहा था वह वजह ही मैंने खत्म कर दी। लता के पति को शक का कीड़ा खा गया था। दिन भर नशे में रहने की वजह से उसने अपनी सोच और समझ दोनों खो दी थी।
लता ने जिस संकट और विपत्ति के तूफान में अब तक अपने घोंसले को बचा कर रखा था अब वह घोंसला बर्बाद हो गया था।
समाप्त
नेहा मिश्रा ‘नेहू’
एक आंख खोलने बली कहानी जो नशा के दुष्परिणामों को उजागर करता है। इतनी सुन्दर कहानी के लिए लेखक धन्यवाद के पात्र हैं।