⇒ संतान का आज्ञाकारी होना, शुभ लक्षणों और गुणों से युक्त होना भी सौभाग्य की बात होती है। अगर स्वयं गुणवान, धनी और सज्जन हों तथा संतान व्यसन तथा अपव्यय करने वाली और दुष्ट हो तो उस व्यक्ति का जीवन अत्यंत दुखमय होता है।
⇒ अगर कोई मनुष्य ऐसी विद्या जानता हो जिससे वह जीवन के लिए धन अर्जित कर सके तो वह बहुत भाग्यशाली है। वह स्वयं के बल पर अपना जीवन सुखपूर्वक चला सकता है। खुद का हुनर उसके लिए वरदान साबित हो सकता है, जिससे वह दूसरों पर आश्रित नहीं होता।
⇒ विदुर ने सुंदर रूप के साथ ही एक और बात जोड़ी है- मधुर स्वभाव यानी मधुर वाणी बोलने वाली पत्नी। अगर पत्नी अपने पति से अच्छा बर्ताव न करे, तो उस घर में आए दिन विवादों की आशंका होती है। ऐसे घर में पति-पत्नी दोनों दुखी रहते हैं। अतः रूपवती होने के साथ ही मधुर व्यवहार भी सद्गुण है।
⇒ अगर पत्नी मनपसंद हो, रूपवती हो तो विदुर ने उस मनुष्य का जीवन सुखद माना है। हालांकि सिर्फ रूप ही सबसे बड़ी उपलब्धि नहीं होती। गुणों का भी विशेष महत्व है। गुणरहित रूप सुखदायक नहीं होता।
⇒ अगर मनुष्य में गुण हों, धन भी हो लेकिन स्वास्थ्य अच्छा न हो तो उसका जीवन सुखमय नहीं माना जा सकता। निरोगी काया ही धन का सदुपयोग कर सकती है। वही सद्गुणों का जीवन में ठीक प्रकार से इस्तेमाल कर सकती है।
अगर शरीर ही स्वस्थ नहीं होगा तो मनुष्य जीवनभर रोगों से जूझता रहेगा। इस प्रकार वह न तो कल्याणकारी कार्य कर सकता है और न किसी का हित कर सकता है।
⇒ अगर किसी व्यक्ति के पास गुण हैं और जीवन जीने के लिए पर्याप्त धन भी है, तो वह मनुष्य भाग्यशाली है। जिस मनुष्य के पास धन नहीं होता, उसका जीवन बहुत कष्टपूर्ण होता है। निर्धनता अत्यंत कष्टदायक होती है। अतः विदुर ने गुणों के साथ ही धन को भी जरूरी माना है।