जिंदगी सुख कम और दुख ज्यादा देती है – मंजू ओमर  : Moral stories in hindi

आज संजय की मृत्यु हो गई थी वहां से आकर मन बहुत उदास था । संजय मेरे पति के दोस्त थे बहुत ज्यादा प्रगाढ़ता थी आपस में बिल्कुल घर जैसे संबंध थे हम दोनों के परिवार में। हमारी और संजय की शादी भी साथ साथ चार महीने के अंतर पर हुई थी । दोनों के जीवन में बच्चों का आगमन भी साथ साथ ही हुआ। मेरी पहली बेटी हुई तो संजय की पत्नी शोभना को भी बेटी हुई। फिर डेढ़ साल बाद दूसरे बच्चे के आगमन का पता लगा। संजय और शोभना को बेटे की बहुत चाहत थी , संजय के घर में बेटियों की संख्या ज्यादा और बेटों की कम थी छै बहने थी संजय की और संजय दो भाई । शोभना तो सिर्फ चार बहनें ही थी भाई नहीं था । संजय मुझसे हमेशा कहते आपको दूसरी बेटी होगी और शोभना को बेटा होगा ।मैं कहती संजय भाई साहब ये तो ऊपर वाले की मर्जी है क्या कर सकते हैं। लेकिन मुझे दूसरी बार बेटा हुआ और शोभना को बेटी हुई ।मेरा तो परिवार पूरा हो गया था तो हमने आगे बच्चों का सोचा नहीं लेकिन शोभना ने फिर तीसरा चांस लिया और फिर चौथा भी लेकिन हर बार बेटी हुई और चार चार बेटियां हो गई।

                    बेटे की चाह पूरी न होने पर संजय के मन में थोड़ी खींज थी लेकिन क्या कर सकते हैं। लेकिन जब औलाद घर कै आंगन में खेलने लगे तो मोह हो ही जाता है।

                 संजय की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी ।चार चार बच्चों की पढ़ाई लिखाई और परवरिश काफी मंहगी पड़ती थी जिसको संजय पूरा करने में असमर्थ रहते थे। घर की जरुरतें पूरी करने के लिए प्राइवेट नौकरी के साथ थोड़ा ओवर टाइम भी करना पड़ता था।जिसका संजय की सेहत पर गहरा असर पड़ रहा था। बीमारियों के शुरुआती दौर में तो ज्यादा दिक्कत नहीं आती लेकिन बीमारियों को अगर नजरंदाज किया  जाए तो फिर वो विकराल रूप ले लेती है ।

                    बच्चियां धीरे धीरे बड़ी हो रही थी अब उनके ब्याह की चिंता सताने लगी । कैसे होगी शादी दहेज के लिए पैसा कहां से लाएं।आज के समाज में ऐसा कोई भलमानस मिल भी जाता है जो दहेज की लालसा न रखता हो लेकिन बाकी तो सबकुछ आपको खर्च करना ही पड़ेगा । कहते हैं न कि ढूंढने से तो भगवान भी मिल जाता है ।

                 संजय की बड़ी बेटी दिव्या ग्रेजुएशन करने के बाद एक आर्मी डिपार्टमेंट ल स्टोर में नौकरी कर ली । आर्मी का एक नौजवान गौरव अक्सर उस डिपार्टमेंट ल स्टोर पर आता था उसको पहली नजर में ही दिव्या अच्छी लग गई थी ।अब वो बार-बार स्टोर पर आने लगा कहते हैं न जो चीज आपको दिल से अच्छी लग जाती है उसको बार बार देखने की इच्छा होती है।

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               फिर एक दिन गौरव ने स्टोर के मालिक से दिव्या के घर का पता लिया और उसके घर पहुंच गया।गौरव ने संजय और शोभना के सामने दिव्या से शादी करने की मंशा जाहिर की । संजय और शोभना थोड़ा सकपकाए इतना बड़ा अफसर हम क्या है उसके सामने ।गौरव संजय और शोभना की हिचकिचाहट को भांप गया । झिझक को दूर करते हुए गौरव ने कहा मैं बिना दहेज के शादी करूंगा । मंदिर में भगवान के सामने शादी करेंगे और मैं एक पार्टी दूंगा जिसमें आपको कुछ खर्च करना नहीं पड़ेगा आप परेशान न हों । इसतरह बड़ी बेटी की शादी हो गई। कहते हैं न बेटियां अपनी किस्मत का कुछ न कुछ लेकर धरती पर आती है किस्मत वाले होते हैं वो जिनके बेटीयां होती है । इसी तरह धीरे-धीरे संजय और शोभना के बेटियों का रिश्ता हो गया ।

                अस संजय और शोभना निश्चित हुए कि चलो जो कुछ भी है उसी में सुख से जीवन जियेगें जिम्मेदारी से मुक्त हो गये।

                  लेकिन संजय को शुगर , वीपी और हार्ट की की तरह की प्राब्लम ने घेर लिया था।एक दिन रात को अचानक संजय को खून की उल्टियां होने लगी रात में ही अस्पताल लेकर गए सारी जांच हुई तो पता लगा कि लीवर में भी प्राब्लम है ।एक हफ्ते इलाज चला फिर घर आए । फिर छै महीने बाद ब्रेन हेमरेज हौ गया जिससे संजय के आधे शरीर में लकवा मार गया।अब इतना पैसा तो था नहीं कि बहुत अच्छे से इलाज हो सके , डाक्टर ने दिल्ली ले जाने की सलाह दी । बेटियों नै पैसे से मदद करके संजय को दिल्ली ले गए चलो वहां तो उनका इलाज हो गया लेकिन कबतक अस्पताल में रखते घर ले आए लकवा मार देने से संजय को शोभना को बहुत प्राब्लम हो गई।अब बिचारी शोभना परेशान रहने लगी।

                  शोभना सोचने लगी बेटियों की शादी करके निश्चित हो गई थी कि चलो अब सुख से रहेंगे जो थोड़ा बहुत है उसी में खुश रहेंगे । लेकिन ईश्वर भी हमारे जीवन में सुख-दुख लिखकर भेजते हैं। इसी तरह परिस्थितियों से जूझते हुए संजय की मृत्यु हो गई। शोभना को देखकर बहुत दुख हो रहा था बिचारी अकेले रह गई।

          लेकिन जिस सुख की कल्पना में हम दुख भोग कर सुख की लालसा करते हैं जीवन में वहां पहुंचते पहुंचते हम फिर उसी दुख से घिर जाते हैं । इसी तरह जीवन का चक्र चलता रहता है ।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

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