“जिंदगी की यही रीत है हार के बाद ही जीत है” दूर कहीं बज रहे इस गाने के बोल मानो राजीव की ही दास्तां बयां कर रहे थे।…आज एक अरसे बाद सुबह की लालिमा, नीला आसमां और पक्षियों की कूक से राजीव के दिल में एक हूक सी उठी और उसने अपना चेहरा सामने लगे आईने में देखा तो खुद को पहचान ही नहीं पाया…
जिस चेहरे की हंसी से पूरा घर गुलज़ार रहा करता था आज उसी के कारण सब अपने में ही सिमटे रहते की कहीं राजीव को किसी की बात का बुरा ना लग जाये, भरे पूरे घर में वीरानियत छाई रहती, सब लोग जैसे मशीन की तरह भावविहीन हो गए थे। राजीव ने अपनी बैसाखी का सहारा लिया और बरामदे में रखी कुर्सी पर बैठ एक साल पहले के उसी दर्दनाक हादसे की गहरी खाई में उतर गया जब ऑफिस से घर आते हुए भयंकर दुर्घटना का शिकार होकर अपना एक पैर गंवा बैठा था…
घर का सबसे बड़ा बेटा राजीव अपने पिता के साथ खेती बाड़ी में भी सहायता करता था… पिता पर कई लोगों का क़र्ज़ था जिसे राजीव अपनी नौकरी में से थोड़े थोड़े पैसे जोड़ कर उतार रहा था… राजीव खुद भी दो बच्चो का पिता था और एक छोटे भाई की पढ़ाई की जिम्मेवारी भी राजीव के ही ऊपर थी….
सब कुछ ठीक चल रहा था की अचानक इस हादसे से राजीव और उसके परिवार वालों पर दुखो का पहाड़ ही टूट पड़ा… बीमारी में तो पूरा पैसा लगा ही साथ ही नौकरी भी चली गई।।…..राजीव बिस्तर पर पड़े पड़े बहुत ज़्यादा चिड़चिड़ा हो गया था, कुछ ना कर पाने के मलाल में अपनी पत्नी को पूरा दिन अपशब्द बोलता रहता, खाना पीना भी बस नाममात्र को लेता जिससे उसका शरीर बहुत कमजोर हो गया ।… बूढ़े पिता पर घर की जिम्मेवारी देख उसका दिल रोता पर कोई हल ना देख, उसका मन मर जाने का करने लगा था।
हर तरफ से हताश और निराश हो चुके राजीव को एक रात सिसकियों की आवाज़ ने चौका दिया उसने अपनी बैसाखी का सहारा लिया और आवाज़ वाली दिशा में गया तो देखा उसकी पत्नी एक कौने में बैठी सिसक रही थी, आज राजीव को गुस्सा नहीं आया उसने अपनी पत्नी को पास आने को कहा और एक लंबे समय बाद उसे देख डर सा गया…. उफ्फ!!! सूख कर कंकाल जैसी ये औरत, जिसकी खूबसूरती के चर्चे थे आज कैसी हो गई है….
“सरला”… राजीव ने आज बहुत समय बाद गले लगाकर नाम पुकारा तो सरला अपने पति से लिपट कर रोने लगी … “ये क्या हाल कर लिया है आपने”…. सरला रोते रोते बोली…. अरे सुख और दुख तो आते जाते है पर इस तरह हिम्मत हारना कोई हल तो नहीं है ना… आप ने अपने दुख को इतना महत्व दे दिया की सुख की झीनी सी किरण भी आपको नहीं दिख रही…..
“तो मैं क्या करू सरला तुम ही कुछ बताओ” राजीव ने हताशा भरे शब्दों में कहा… साथ ही उसका जमीर भी उसे परिवार के प्रति बरती गई लापरवाही पर #धिक्कार रहा था।
सरला प्रेम से बोली… सबसे पहले खुद को बेचारा और कमजोर समझना छोड़ दो, जो बिगड़ गया उसे कैसे ठीक किया जाए अब ये सोचो… आत्मविश्वास होगा तो आप काम भी करेंगे और चल फिर भी सकेंगे बस ये निराशा और दुःख का चोला उतार कर फेंक दो और ईश्वर का स्मरण करते हुए कल से एक नई शुरुआत कीजिए … सरला की बातो से राजीव में जोश सा भर गया और फिर पूरी रात उसने सोच सोच कर गुजार दी…..
अगली सुबह सचमुच बिल्कुल अलग थी,..राजीव ने अपने पिता और छोटे भाई की मदद से बैठक के दो कमरों में परचून की दुकान खोल ली जिससे उसकी जीविका का समाधान भी हल हो गया और व्यस्त रहने से अपने दुःख से भी उबर गया। अब घर में पहले जैसी रौनक वापस लौट आयी थी…..
राजीव ने बहुत ही प्रेम और आदर से अपनी पत्नी सरला को देखा और उस ईश्वर का हाथ जोड़कर धन्यवाद किया।।।।
स्वरचित, मौलिक रचना
# धिक्कार
कविता भड़ाना