“जिम्मेदारी समझदार बना देती है” – अनिता गुप्ता

“दादी ! जल्दी से खाना दे दो। हमारे छत पर जाने का समय हो गया है।” विनीत और विनिता ने एक साथ कहा।

” हां बच्चों ! आ जाओ । खाना तैयार है।” दादी ने नम हुई आंखों को पोंछते हुए कहा।

” ये क्या दादी ? आप का खाना कहां है ?” दो प्लेट में खाना देखकर विनीत ने पूछा।

” तुम दोनों खाओ । मैं बाद में खाऊंगी। मुझे अभी भूख नहीं है।” दादी ने कहा।

” ठीक है। जब आप खाओगे, हम भी तब ही खा लेंगे ।” विनीत ने कहा। क्योंकि विनीत जानता था कि बाद में दादी खाना नहीं खायेगी।

सात साल का विनीत अपने मम्मी – पापा की कोविड से  आकस्मिक मृत्यु के बाद  बहुत समझदार और बड़ा हो गया था। अब परिवार में सिर्फ दादी और पांच साल की उसकी बहन विनिता और वह स्वयं ही रह गए थे। दादाजी की तो उसके जन्म से पहले ही मृत्यु हो गई थी,इसलिए उसने दादाजी को तो कभी देखा नहीं था, लेकिन दादी को जरूर दादाजी की तस्वीर हाथ में पकड़े हुए रोते देखा था। तब उसका बाल मन दादी के रोने का कारण नहीं समझ पता था।

लेकिन अचानक से मम्मी – पापा के जाने के बाद वह सब कुछ समझ गया कि दादी क्यों रोती हैं और मम्मी पापा अब कभी भी वापिस नहीं आयेंगे। उसने अपने आप ही समझ लिया कि अब दादी और छोटी बहन की जिम्मेदारी उसके ऊपर ही है।

दादी ने बता रखा था कि जो बहुत अच्छे होते हैं, उनको भगवान अपने पास बुला लेते हैं और उनको तारा बना देते हैं। जिससे वो अपने प्रकाश से दुनिया को रोशन कर सकें। इसलिए रोज तारों के निकलने पर वो अपनी बहन के साथ छत पर चला जाता था  और तारों को दिखा कर  अपनी बहन का मन बहलाने की कोशिश किया करता था।

आज भी दादी को मना कर खाना खाने और खिलाने के बाद जब बहन का हाथ पकड़ छत पर पहुंचा तो बादलों ने आसमान को ढक रखा था।


यह देख विनिता रोने लगी और बोली,

” भैया ! मुझे तो आज मम्मी – पापा की बहुत याद आ रही है। लेकिन वो तो कहीं भी नहीं दिख रहे हैं।”

” अभी दिख जायेंगे । उनको भी तो हमारी याद आ रही होगी ना। बस तुम आंख बंद कर उनको बुलाओ, तुम्हारी आवाज सुन कर जरूर आयेंगे।” विनीत ने कहा।

” वो देखो ! बादलों के पीछे से दो तारे झांक रहे हैं । ” विनीत ने अंगुली से इशारा करते हुए कहा।

” कहां हैं भैया ? मुझे तो नहीं दिखे।” विनिता ने आसमान की ओर देखते हुए कहा।

” वो तो रहे। मुझे भी दिख रहे हैं। अरे ! वो तो बादलों में फिर से छिप गए। लगता है आज अपने बच्चों के साथ छिपन छिपाई खेल रहे हैं।” पीछे से दादी ने कहा। जो आज बच्चों के पीछे छत पर ये देखने आ गईं थी कि बच्चे तारे देख कर क्या बात करते हैं।

” मुझे क्यों नहीं दिख रहे हैं , दादी ? क्या मम्मी – पापा मुझ से प्यार नहीं करते ? ” कहते हुए विनिता जोर से हिचकियां लेकर रोने लगी।

उसको रोता देख दादी ने उसे गले से लगा लिया और बोली,

” हे भगवान! अब और कितनी परीक्षाएं लेना बाकी है। मुझ पर नहीं तो इन छोटे बच्चों पर तो दया करो। आपने इन के सिर से मां पापा का साया ले लिया , हमने शिकायत नहीं की। लेकिन ये बच्चे तारों के सहारे अपने जीवन के कुछ खुशनुमा पल गुजार लेते हैं, वह तो इन्हें दे दो।”

तभी आसमान से बादलों के चादर धीरे – धीरे हटने लगी और झिलमिल करते सितारे मुस्कराते हुए बाहर आ गए।

” वो देखो ! वो रहीं मम्मी और वो रहे पापा।” विनिता ताली बजाते हुए चहकी।

दादी और विनीत भी विनिता के चेहरे पर खुशी देखकर मुस्करा दिए।

आखिर उनकी जिंदगी में ये कुछ पल ही तो जीवन के खुशनुमा पल बनकर रह गए थे।

अनिता गुप्ता

 

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