जिद्द की कीमत – पुष्पा पाण्डेय

राखी की पढ़ाई को लेकर घर में भाई-भाभी के बीच जो विवाद हुआ उसे लेकर चंदा काफी दुखी थी। घर के मुख्य दरवाजे पर चुपचाप उदास बैठी थी।

भाभी चाहती थी कि राखी घर में ही रहकर काॅलेज की पढ़ाई करे। गाँव से शहर का काॅलेज पाँच किलोमीटर की दूरी पर था। बस तो आती-जाती ही है, पर भाई अपनी भांजी की प्रतिभा को देखकर उसे छात्रावास में रखकर बड़े शहर के काॅलेज में पढ़ना चाहता था।———–

राखी जब एक साल की थी तभी से चंदा उसे लेकर मायके आ गयी। मायके में चंदा सबकी दुलारी थी। तब संयुक्त परिवार था। चाचा, ताऊ जी सभी के बीच चंदा एकलौती बेटी थी। तब की वह मैट्रिक पास थी। सभी इसके नाज- नखरे को सर आँखों पर रखते थे।  सर्वगुण सम्पन्न कही जा सकती थी, यदि जिद्दी स्वभाव की न होती। उसकी जिद्द ही उसे भाई-भाभी का मोहताज बना दिया। जब-तक माता-पिता थे तब-तक चंदा अपनी एक वर्षीय बेटी के साथ ऐशो-आराम से मायके में रही। जिद्द को ही अहंकार कहा जाता है और अहंकारी कब-तक अपने अहंकार पर नाज कर सकता है? अहंकार ने उसे भविष्य के बारे में सोचने नहीं दिया।

समय के साथ चाचा ताऊ का परिवार अलग हो गया।

चंदा के पिता मानसिक तौर पर थोड़े कमजोर थे। अतः परिवार की मुखिया माँ ही थी। चंदा का भाई अभी छोटा था। ——

बच्चों की परवरिश में माँ की भूमिका महत्वपूर्ण है। भविष्य किसने देखा है? वक्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता। चंदा और चंदा की माँ दोनों सिर्फ वर्तमान में जिती रही। चंदा की माँ तो दस साल बाद ही गुजर गयी। अब घर की बागडोर भाभी ने सम्भाल लिया। परिवार पर अतिरिक्त बोझ उसे खलने लगा, चंदा और राखी आँख की किरकिरी बन गयी। चंदा अब अपने ससुराल भी नहीं जा सकती, क्योंकि अब बहुत देर हो चुकी थी। वक्त रहते चाहती तो नौकरी कर सकती थी, पर तब गाँव में प्रतिष्ठित घराने की औरतें नौकरी नहीं किया करती थीं।

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कभी भी चंदा को अपनी सास से बनी नहीं। शादी के एक महीने बाद से ही विवाद शुरू हो गया। बेचारा चंदा का पति माँ और पत्नी के बीच पिसता रहा और इधर चंदा जब देखो ससुराल से मायके आ बैठ जाती थी। बार-बार पति मनाकर उसे ले जाता था, लेकिन समस्या बद् से बद्तर होती गयी। इसी बीच चंदा के पाँव भारी हो गये। समय पर एक चाँद सी बेटी ने जन्म लिया। अब तो चंदा अपने सास-ससुर से अलग रहने की मांग पति से करने लगी, जो पति के लिए सम्भव नहीं था। बेटी एक साल की थी और अपनी जिद्द पर अड़ी चंदा पिता से बेटी को मिलने भी नहीं देती थी। विवाद इतना बढ़ गया कि परेशान पति फंदे से झूल गया। कितना परेशान होकर उसने यह निर्णय लिया होगा? क्या मिला चंदा को? युवा अवस्था में वैधव्य का दुख और साथ ही  समाज और परिवार की  नजरो से गिर गयी। सहानुभूति से भी वंचित रही।एक माँ ही थी, जो कल भी साथ थी और अब भी थी।

इस घटना के बाद तो चंदा मायके में रहना अपना अधिकार समझ लिया। ससुराल में सास- ससुर के अतिरिक्त एक देवर भी था। देवर घर लौटने के लिए काफी अनुनय-विनय करता रहा, लेकिन चंदा की जिद्द ने उसे ससुराल जाने नहीं दिया और चंदा ने अपने साथ-साथ राखी को भी मामा-मामी का मोहताज बना दिया।———-

अब राखी का भविष्य त्रिशंकु की तरह अधर में लटका हुआ था।———-

राखी अब इतना समझने लगी थी कि हम माँ-बेटी ही इस घर में विवाद के कारण है। वह इस घर से बाहर निकलना चाहती थी। वह जानती थी कि घर से बाहर निकल कर ही वह अपनी समस्या का समाधान ढूँढ सकती थी। माँ जैसी जिन्दगी उसे नहीं चाहिए।  वह अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी। ————–

“मामी! आप सिर्फ एक साल  मुझे पढ़ने की जिम्मेवारी उठा लीजिए। मैं शहर जाते ही छोटे-मोटे कोई भी नौकरी कर लूँगी।”

मामा ने अपनी भांजी की ये बात सुनकर निर्णय ले लिया कि राखी को शहर बड़े काॅलेज में भेजना ही है।

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राखी के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती थी और राखी लग गयी अपने भविष्य को सवाँरने में।

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कठिन परिश्रम के बाद पाँच साल बाद राखी एक बैंक में उच्च स्तरीय पद पर कार्यरत हो गयी।

स्वरचित

पुष्पा पाण्डेय

राँची,झारखंड।

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