हाथ मत लगाना मेरे बच्चों को मां जी आप तो मेरे बच्चे को खा ही गई थी। डॉक्टर के पास ना ले जाती तो पता नहीं आज मेरे बच्चे का क्या हो जाता ।कुछ तो डरो भूमिका कैसी बात कर रही हो मेरा पोता है मेरे घर का चिराग है। इतनी मिन्नतें की है भगवान से कितनी प्रार्थना की है ईश्वर से तुम्हारी गोद भरने को और तुम ऐसा कह रही हो कुछ तो भगवान से डरो।
तुम्हारे सामने भी भगवान ने औलाद दी है वह सब देख रहा है। हां हां पता है सब देख रहा है और वह भी देख रहा है जो आपने मेरे बच्चे के साथ किया भूमिका ने कहा ।अरे क्या किया मैंने यही तो कहा था कि थोड़ी सी सर्दी जुकाम है ठीक हो जाएगा इसका मतलब यह कैसे निकलता है
कि मैं बच्चों का कुछ बुरा चाहती हूं। मैं तो कुछ कहती भी नहीं हूं तुम्हें तो भी मैं बुरी बन जाती हूं। सास दमयंती जी ने भूमिका से कहा ।अभी तुमने सासे देखी कहां है सासे
कैसी होती हैं, आपको देख लिया सबको देख लिया आपसे बुरी सास भला कौन हो सकती है भूमिका बोली।
इतनी बकवास सुनकर दमयंती जी अपना सा मुंह लेकर घर आ गई। बड़ी हुलास से पोते को देखेंने बहू की मां के घर गई थी ।और वहां बहू ने दमयंती जी का तिरस्कार करके दमयंती जी को ज़लील करके रख दिया था।
दमयंती जी को ऐसा लग रहा था अपनी जीवन लीला समाप्त कर ले ।कल की आ ई बहु इस तरह से उनका अपमान कर रही है ,अपनी मां के सामने नहीं कर रही है बेटी और मां चुपचाप सुन रही है, मना नहीं कर रही है कि सास है तुम्हारी बड़ी है तुम उनसे ऐसे बात ना करो लेकिन नहीं। दमयंती की आज अपने आप को बहुत ही अपमानित महसूस कर रही थी।
उनकी आंखों से आंसू बहते जा रहे थे।पति दिनेश जी पत्नी को समझा रहे थे छोड़ो बदतमीज है बहू क्या उसकी बातों को दिल से लगाना। छोड़ो जाने दो, जाने दूं आखिर क्या किया है मैंने। आज तक किसी ने नहीं किया मेरा इतना अपमान। मैं भी तो सास ससुर और तीन-तीन जेठ जेठानियों और तीन ननदों के साथ रही हूं ।
न मैंने किसी का ऐसा अपमान किया है और न किसी ने मेरा , हां छोटी छोटी बातें तो हर घर में हो जाता करती है , लेकिन इस तरह तो कोई नहीं बोलता।
मेरा तो मन अब बहू की शक्ल देखने का भी नहीं करता । लेकिन क्या करूं वो मेरे बेटे की पत्नी और मेरे पोते की मां है। चाहकर भी मैं उससे रिश्ता खत्म नहीं कर सकती ।
दमयंती और दिनेश जी की एक ही बेटा था आदित्य पढ़ाई लिखाई के बाद नौकरी करने के बाद हर मां-बाप का एक ही सपना होता है कि अब बेटे का विवाह कर देना चाहिए ।शादी के लिए जब बेटे आदित्य से कहा तो मना करने लगा अभी नहीं अभी नहीं।
फिर कुछ दिन बाद कहने लगा मम्मी मैंने एक लड़की पसंद की उससे शादी करना चाहता हूं। लेकिन बेटा कौन है कैसी है परिवार कैसा है क्या अपनी जाति की है ।क्या मम्मी आप जात-पात के चक्कर में पड़ी हो दुनिया कितनी आगे निकल गई है और आप जाति देख रही है ।फिर भी बेटा परिवार वगैरा तो देखना पड़ता है ना ,लेकिन लड़की मुझे पसंद है। बेटा कुछ सुनने को तैयार ही ना था।
तब दमयंती और दिनेश जी ने एक बार लड़की से मुलाकात की और हां कर दी मना करने की कोई गुंजाइश ही नहीं थी। जब लड़की और लड़का एक दूसरे को पसंद करते हैं तो फिर मां-बाप कैसे मना कर सकते हैं यह उनकी मजबूरी हो जाती है। बेटे की बात मानना ।लड़की ठीक थी अच्छी थी
और उसका उस समय व्यवहार भी अच्छा था। व्यवहार तो सही मायने में तभी समझ में आता है जब आप उसके साथ रहते हैं ।अपने कुछ समय व्यतीत करें ऐसी एक-दो घंटे के साथ रहने से आप उसके स्वभाव को पता कैसे लगा सकते हैं।
बस शादी हो गई हालांकि बहू बेटे को दमयंती के साथ नहीं रहना था। वह तो बाहर है जहां नौकरी पर था वही रहना था। शादी के 1 हफ्ते बाद दोनों चले गए तब तो सब ठीक-ठाक था । दमयंती जी काफी स्मार्ट थी, हर काम को बड़ी सफाई से ,
हर मुश्किल काम को बड़ी समझदारी से निपटा देती थी ।बेटा आदित्य मम्मी से काफी इंप्रेस था। वह कभी-कभी भूमिका से मम्मी की तारीफ कर दिया करता था। धीरे-धीरे समझ में दमयंती को , आने लगा भूमिका उसे नापसंद करती है उसका क्या कारण है उसे पता नहीं।
भूमिका हर समय दमयंती जी से खींची खींची रहती है ,जबकि दमयंती जी ऐसा कुछ करती नहीं थी नहीं कुछ सलाह देती और ना कोई रोक-टोक जैसे रहना हो रहो फिर कौन सा मेरे पास रहना है कुछ दिन को आना होता था। तीज
त्योहार पर बाकी तो दोनों अलग ही रहते थे।
दमयंती जी की बहू से बहुत कम बात होती थी जब दमयंती फोन करती थी बहू के पास तो कभी कभार थोड़ा सा बात कर लेती थी। नहीं तो कोई बात बहाना बनाकर फोन रख देती थी। भूमिका की तरफ से कभी फोन नहीं आता था दमयंती के पास।
एक परिवार के प्रति जो अपनापन होना चाहिए वह भूमिका में नहीं था। भले ही अभी परिवार नया नया था उसके लिए लेकिन जब अपनाने की कोशिश कीजिए तभी तो अपनापन आएगा।
ऐसे ही साल भर बीत गया इस दौरान भूमिका बस तीन-चार बार ही घर आई थी। उसमें एक-दो दिन रहकर वह अपने मायके चली जाती और वहां रहती फिर जितने दिन उसका मन होता। शादी की डेढ़ साल बाद बेटे आदित्य का एक दिन मां के पास फोन आया
की मां अब दादी बनने वाली हो, सच दमयंती जी खुशी से झूम उठी ।ईश्वर का धन्यवाद करने लगी और बेटे से कहा बहू से बात कराओ जरा बधाई दे दूं। वो भूमिका मां बात करना चाहती है बड़े अनमने मन से बात की भूमिका ने थोड़ी सी ।अब बेटा अपना ख्याल रखना जी मां जी कहकर फोन रख दिया। सावधानी बरतनी की सलाह देते हुए दमयंती जी ने भी फोन रख दिया।
ऐसे ही जब कभी कुछ हाल-चाल पूछने को बहू को फोन करती तो कभी फोन नहीं उठाती भूमिका। चलो फिर भी दमयंती जी कोशिश करती रहती दूरियां खत्म करने की और बराबर फोन करती पता नहीं क्यों मुझसे नाराजगी है कुछ समझ ही नहीं आता।
डिलीवरी के 2 महीने पहले बेटा कहने लगा मम्मी डिलीवरी यहां नहीं घर के पास अस्पताल में कराएंगे क्योंकि वहां आप लोग रहोगी। और छोटी जगह पर सब कुछ आसानी से उपलब्ध हो जाता है और भूमिका के मम्मी पापा भी पास में ही ज्यादा दूर नहीं है वहां से तो सुविधा रहेगी। ठीक है बेटा लेकिन क्या भूमिका से पूछ लिया है वह यहां रहना चाहती है।
हां मां मैं पूछ लिया है वह अपनी मम्मी के पास ही जाना चाहती थी लेकिन मैंने मना कर दिया। वही तुम्हारे साथ रहेगी और मैं भी घर से काम कर लूंगा तो देखभाल होती रहेगी। बीच-बीच में डॉक्टर के पास भी जाना पड़ेगा
तो वो भी आसानी से हो जाएगा। हां बेटा पूछ लेना बहू से ठीक से आजकल लड़कियां ससुराल में नहीं अपनी मायके में ही रहना चाहती है ।
वह हमारी बात हो गई है आप परेशान ना हों।
डिलीवरी के 2 महीने पहले ही बहू को लेकर आदित्य घर आ गया।सारे गिले-शिकवे छोड़कर दमयंती ने बहू का खूब अच्छे से ख्याल रखा ।उसे कोई काम ना करने देती उसको जो भी पसंद था वह बना बनाकर खाने पीने को देती रहती ।
फिर एक दिन भूमिका कहने लगी मम्मी एक फुल टाइम नौकरानी देखी है उसको यहां रख लेते हैं। दमयंती ने कहा अभी तो नौकरानी की जरूरत नहीं है खाना पीना तो मैं देख लेती हूं और काम के लिए नौकरानी लगी हुई है जब डिलीवरी हो जाएगी तब वह नौकरानी रख लेंगे।
इस बात पर नाराज होकर भूमिका ने आदित्य से जाने क्या कह दिया की मम्मी जी ने नौकरानी नहीं रखने दे रही। तो मैं मायके चली जा रही हूं और नाराज होकर बैठ गई। आदित्य मम्मी से पूछने लगा दमयंती ने कहा अभी से पूरे समय की नौकरानी रखकर क्या करूंगी बेटा उसका चाय नाश्ता खाना पीना भी करना पड़ेगा।
इस बात से भूमिका फिर दमयंती जी से नाराज हो गई ।फिलहाल डिलीवरी हो गई बेटा हुआ दमयंती जी ने और बहू की मम्मी ने मिलकर अस्पताल का सब काम निपटाया ।और जब अब बहू जब घर आ गई तो उन्होंने कहा अब बुला लो नौकरानी को तो भूमिका कहने लगी उसने कहीं और काम पकड़ लिया अब नहीं आ सकती।
फिर दमयंती जी ने ही एक मालिश करने वाली और देखभाल करने वाली रा।खी ।ऐसे ही एक दिन मालिश वाली से पूछ लिया कि बच्चा ठीक है तो कहने लगी थोड़ी सी सर्दी है तो दमयंती ने कहा की हींग पानी लगा दो और गरम तेल से मालिश कर दो ठीक हो जाएगा।
लेकिन शाम को दिनेश जी ने कहा डॉक्टर को दिखा दो बच्चे को डॉक्टर को दिखाया तो डॉक्टर बोला बच्चे को सर्दी से नाक बंद हो रही है नेबुलाइजर कर देना पड़ेगा ।दिनभर बच्चे को अस्पताल में रखना पड़ेगा।
बस इसी बात से नाराज हो गई कि पापा जी ने तो डॉक्टर के पास भेज दिया मम्मी जी तो नहीं चाहती थी मेरा बेटा ठीक हो वह तो उसे मार ही डालती यदि डॉक्टर के पास नहीं जाती तो। इसी से गुस्सा होकर भूमिका अपनी मम्मी के पास चली गई। और जब दमयंती जी उससे मिलने गई तो वह दमयंती जी का अपमान करने लगी ।
आजकल छोटी-छोटी बातों को बहू ए इतना बड़ा बना देती है कि घर का माहौल खराब हो जाता है। अब इस घटना के बाद से दमयंती जी बहू से बात नहीं करती ।नहीं बहू ने रिश्ते को सुधारने की कोशिश की ।अब बच्चा 2 साल का हो गया है और बहू आती है तो मायके में ही रहती है क्योंकि अभी बच्चा छोटा है तो अकेले घर नहीं आ सकता
तो बेटा एक आध घंटे को बहू और बच्चों को घर ले आता है मम्मी पापा से मिलवाने। बाकी बच्चे पूरे समय नानी के घर पर रहता है। इस तरह जिंदगी कट रही है दमयंती जी की। तिरस्कार को भूल नहीं पाती ।
अब तो सब कुछ छोड़ दिया है शायद अब ऐसे ही जिंदगी कट जाए। क्या किया जाए आजकल के रिश्ते बात बात में बिखर जाते हैं ।न तो छोटो को बड़ों का सम्मान करना आ रहा है न तो रिश्ते निभाने ।बस जिंदगी में कड़वाहट ही घुल रही है ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
14 जुलाई