ये कैसा रिश्ता है ? – स्मिता सिंह चौहान

हर लड़की की तरह मालिनी ने भी कितने सपने सँजोये थे अपने होने वाले राजकुमार की लेकिन उसे क्या पता था राजकुमार सिर्फ सपने मे अच्छे लगते  हैं असल ज़िंदगी की तो हक़ीक़त कुछ और होती है। 

धूमधाम से शादी के बाद मालिनी अपने ससुराल पहुँच चुकी थी लेकिन जैसे ही सुबह हुई 

“नहीं, मुझे ऐसा रिश्ता मंजूर नहीं है ।मैं एक बलात्कारी के साथ नहीं रह सकती। “मालिनी सभी रिश्तेदारों  के सामने, शादी की अगली सुबह बेझिझक बोल पडीं ।

सभी हतप्रभ होकर उसको देखने लगे ।”तुम क्या बोल रही हो ? भांग चढा ली है क्या सुबह सुबह ? “मनीष  आंखे मलते हुए कमरे से बाहर आया ही था कि मालिनी के शब्दों से तिलमिलाकर झुंझलाते हुए बोला।

“जैसे तुमने कल रात चढाई थी। मेरा बदन बुखार में तप रहा था ,और तुम …. । जब संबंध हम दोनों का है,तो रज़ामंदी भी होनी चाहिए । मैं तुम से दूर हटने के लिए भीख मांग रही थी,क्योंकि मेरा शरीर तैयार नहीं था। लेकिन नहीं,तुमहारे लिए तो जैसे दूसरा दिन या रात आने वाली ही नहीं थी। तुमने सुहागरात का लेबल लगाकर बलात्कार ही तो किया है मेरा, यहां तक कि मेरे प्रतिरोध पर मेरे गाल पर यह निशानी भी दी  ।”अपने सर से पल्लू हटाते हुए बोली।

“तुम अन्दर चलो ।तमाशा मत बनाओ ।”मनीष बोला

“नहीं, मैं अपने आत्म सम्मान को गिराकर तुम्हारे साथ नहीं बैठ सकती।आप पुलिस स्टेशन पहुँचो, बाकि बात वही करेंगे मिस्टर मनीष।”मालिनी ने रूखेपन से कहा ।

“पुलिस स्टेशन जायेगी,दिमाग खराब हो गया है ।अभी तेरे घरवालों को फोन करता हूँ, क्या ड्रामेबाज़ लडकी पल्ले बाँध दी मेरे ।”मनीष ने मालिनी का हाथ पकडते हुए उसका मोबाइल छीन लिया ।

“हाथ छोड़ो मेरा ।”जब तक कोई कुछ समझ पाता मालिनी हाथ छुड़ा कर बाहर की तरफ भागी।और दरवाजा बाहर से बंद कर दिया ।बेतहाशा सीढियों से बाहर की तरफ भाग गयी ।

किसी से रास्ता पूछते हुए, जैसे तैसे वह उस रास्ते से सडक तक पहुंच गयी थी।लेकिन सामने देखकर एक पल सोचने लगी ,”क्या वाकई मुझे यह करना चाहिए ।या मनीष को वक्त देना चाहिए ।”

तभी जैसे अपनी हालत ,और रात के दर्द को महसूस करते हुए  उसके दिल ने गवाही दी “अगर आज तुम रूक गयी ,तो जिंदगी भर अपने आत्म सम्मान  की बलि देती रहोगी। जब मनीष ने तुम्हारे साथ बलपूर्वक संबंध बनाना अनुचित नही समझा तो तुम अपने साथ हुए अनुचित व्यवहार  का प्रतिरोध करने में क्यो घबरा रही हो? जिस इन्सान की नजर में शरीर तुमहारी तकलीफ़ से ऊपर है क्या वह तुम्हारे आत्म सम्मान की भाषा समझ पायेगा।”अचानक मालिनी उठी और आगे की तरफ बढ गयी ।

दोस्तो, यह वाकया एक ऐसी तसवीर है,जो हिंसा में गिना ही नहीं जाता । कई बार औरत को भोग की ऐसी वस्तु समझ लिया जाता है, जैसे शादी के बाद उसके शरीर पर काबिज होते हुए किसी पुरुष को उसकी रजामंदी की आवश्यकता ही ना हो । लेकिन यहाँ पर औरतों को भी मालिनी कि इस बात को समझना आवश्यक है कि संबंध  दोनो की रजामंदी से बनते हैं, चाहे शारीरिक हो या मानसिक ।

 

आपको यह कहानी कैसी लगी? अवश्य बताइयेगा ।

आपकी दोस्त,

स्मिता सिंह चौहान

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