ये कैसा रिश्ता – उषा भारद्वाज : Moral Stories in Hindi

    हर वक्त उसकी आवाज कानों में गूंजती रहती थी घर पहुंचते ही वह ऐसे चिल्लाता था जैसे किसी के स्वागत का सारा जिम्मा उसका हो।

          मुझे याद आने लगा वह दिन , जब मै  कॉलेज से आकर बैठी थी उसी समय  चिंकी ने आकर कहा -दीदी देखो आज हम लोग आपके लिए कुछ लाये हैं । मैंने कहा- दिखाओ। उनके हाथ में एक बहुत ही खूबसूरत चटक पीले रंग का  पक्षी था । मैंने उसको देखा तो तोते जैसा लग रहा था , लेकिन यह कैसा तोता था । किस जाति का पक्षी था ? यह पहचान नहीं मिली। फिर खुद को टोका  अरे मनुष्यों में  इतनी जातियां हैं कि सुन सुनकर परेशान हो गई हूं। अब पशु पक्षियों में भी जाति शुरू हो गई  ,खुद को  मन ही मन एक डांट लगाई । उसका नाम मिट्ठू रखा गया ।

मैंने चिंकी से पूछा- ” इसको रखोगे कहां ?”

उसने कहा -” दीदी एक पिजड़ा जो बहुत पहले से रखा हुआ है ,मैंने और भैया ने मिलकर उसको निकाल लिया है ।

उसी में इसको रखूंगी ।”

मैं आश्वस्त हो गई । इसके बाद तो मिट्ठू की  आवाज पूरे घर में गूंजती रहती। मेरा एक काम और हो गया , सुबह-शाम उसकी कटोरी में दाना पानी रखकर कॉलेज जाती वहां से आते ही फिर उसको देखती । मुझे पशु-पक्षी सभी अच्छे लगते थे ,लेकिन अच्छे लगना और स्नेह में अंतर होता है । मिट्ठू के प्रति  मेरे मन में स्नेह उत्पन्न हो गया था । सुबह शाम उसका ख्याल रखती  उसकी आवाज न सुनाई पड़ती तो तुरंत पिंजरे के पास जाकर देखती कि शांत क्यों बैठा है ? क्योंकि वह शांत रहता ही नहीं था । अब तो सबके नाम लेना सीख गया था चिंकी बताती कि दीदी तुम्हारे आने से पहले यह चिल्लाने लगता है कि ईशू दी आओ,ईशू दीदी आओ।

छोटे भाई बहन दीदी बोलते थे । तो वह भी मुझे ईशु दीदी कहने लगा था । जब तक मैं उससे मिल नहीं लेती वह इतना चिल्लाता था जैसे घर खोपड़ी पर उठा लेगा ।

भैया कहते -” ईशू ,यह तेरा पिछले जन्म का कोई रिश्ते वाला है तुझे पहचानता है ।”

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   अचानक एकदिन मां बाथरूम में फिसल कर गिर गईं।और बेहोश हो गई ।अस्पताल ले गए जहां उनका सिटी स्कैन  हुआ । डॉक्टर ने बोला क्लॉटिंग हो गई है इसलिए इनका ऑपरेशन जरूरी है सभी परेशान हो गए।  मैं भी साथ में गई थी और उस समय  मुझे मिट्ठू का कोई ख्याल न आया । अस्पताल में हम लोग पूरे दिन रहे , शाम को मैं घर आई मिट्ठू मुझे देखकर पिंजरे में कूदने लगा। मैंने उसके कटोरी में दाना और पानी रखा और बोली मैं अस्पताल जा रही हूं क्योंकि मां का ऑपरेशन होना है। मैं उसको ऐसे बता रही थी

जैसे मेरी बात सुनकर मुझे जवाब देगा । इसके बाद में चली गई । मां का ऑपरेशन हुआ, उनको जल्दी होश नहीं आया डॉक्टर ने कहा 3 घंटे बाद अगर होश नहीं आता है तो समस्या होगी। हम सभी चिंतित थे। मैं पूरे दिन से बैठी थी भैया बोले तुम थोड़ा आराम  कर लो फिर आ जाना ।मां  आईसीयू में थी , उनके होश में आने का इंतजार कर रहे थे। मैंने बेंच पर बैठकर ही आंखें बंद कर ली। 15 मिनट की नींद भी शायद मुझे आ गई । इसके बाद तुरंत खुल गई सभी भगवान से प्रार्थना कर रहे थे और प्रार्थना स्वीकार हुई, 

सुबह 6:00 बजे मां ने आंखें खोली ।उसके बाद भैया घर चले आए मैं वहीं बैठी रही।  एक घंटे बाद भैया वापस हुए मां को देखा फिर मेरे पास आकर बैठ गए और बोले – ईशु मिट्ठू चला गया । मैंने कहा कहां?  पिंजरा खुला था क्या ? भैया ने कहा – वह इस दुनिया से चला गया । मेरी आंखें तुरंत बरस पड़ी । मैंने अपने आप को रोका नहीं तो वहीं चीख कर रोने लगती और तब मुझे याद आया कि जब मुझे नींद आयी  थी तब एक सपना आया था जिसमे मिट्ठू कह रहा था मैं जा रहा हूं । मैं बहुत भीग गया हूं ।

उसके बाद मेरी आंख खुल गई थी कि मैंने सपने को गंभीरता से नहीं लिया था और अब  सपना मुझे याद आ रहा था ।उस रात बहुत पानी बरसा था उसका पिंजरा आंगन में ही रखा रह गया था। मैं घर आई आज पिंजरे से कोई आवाज नहीं आई। मिट्ठू हमेशा के लिए सो गया था । लेकिन जाते जाते भी मुझे लगा मिट्ठू मेरी मां को जिंदगी देकर गया और मुझसे भी मिल कर गया । यह कैसा रिश्ता था ? इसका जवाब आज भी मेरे पास नहीं है।

स्वरचित-

उषा भारद्वाज

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