बात करोना काल की थी। कोरोना अपने उग्र रूप में था। हॉस्पिटलों में जगह ही नहीं मिल रही थी। वहीं हॉस्पिटल के बाहर खड़ा राजन दिखने में तो शांत लग रहा था लेकिन अंदर ही अंदर उसे बहुत कुछ कचोट रहा था। उसके इकलौते बेटे पवन को आज सुबह से ही सांस लेने में तकलीफ हो रही थी।
कोविड पॉजिटिव की रिपोर्ट आने के बाद से ही राजन डॉक्टर के लगातार संपर्क में था आज जब डॉक्टर ने कहा बच्चे को किसी अस्पताल में दाखिल करा दो तो उसने अपनी सारी जानकारियों से सहायता मांगी। लेकिन किसी अस्पताल में भी ऑक्सीजन और बेड खाली नहीं था। अंत में उसने रमेश को फोन मिलाया।
हमेशा के जैसे रमेश के पास से जवाब आया ,हां हां!! मैं तुम्हारे बेटे का जिस अस्पताल में कहो एडमिशन करा दूंगा बस पहले मुझे पांच लाख रुपए भिजवा दो। आगे की सेटिंग मैं अपने आप कर दूंगा। सुनकर राजन को गुस्से से ज्यादा खुद पर घृणा आ रही थी। वह कितने महीनों से ऐसा ही तो कर रहा था। सिर्फ उसकी केमिस्ट की दुकान ही थी जो लॉकडाउन में भी खुली रहती थी।
इस समय उसकी कमाई कम तो नहीं हो रही थी लेकिन रमेश के साथ मिलकर वह इस अवसर का पूरा फायदा उठाना चाहता था। दुकान से बहुत सी जान बचाने वाली दवाइयां, ऑक्सीमीटर, स्टीमर, यहां तक की थर्मामीटर भी उसने दुकान से हटाकर अपने घर पर ही रख लिए थे और रमेश ही उसका सहारा बना हुआ था। उसके कहने पर उसने ऑक्सीजन के सिलेंडर भी घर पर छिपा लिए थे।
वही उसे सामान सप्लाई भी करता था और मुंहमांगे दाम पर खरीदने के लिए ग्राहक भी भेजता था। उसका कमीशन तय था। करोना काल में राजन का पूरा ध्यान सिर्फ अपने नोटों की संख्या बढ़ाने पर था। पड़ोस में करोना होने पर ऑक्सीमीटर इत्यादि की जब जरूरत पड़ी राजन की पत्नी सावित्री ने इंसानियत के नाते उन्हें राजन के स्टॉक में से बहुत सा सामान दे दिया था। जरूरत पड़ने पर
जानकारों की जिस तरह से भी बनती थी सावित्री सहायता करती थी। राजन को जब अपनी पत्नी के इस व्यवहार का पता पड़ा तो उसमें राक्षसीवृत्ति इस हद तक समा गई थी कि कि उसने सावित्री पर हाथ भी उठा लिया था और चिल्लाकर बोला इस तरह से सामान देकर तुम मेरा धंधा चौपट करवाना चाहती हो क्या? मैं सब को कहता हूं कि दुकान में सामान नहीं है और तुम यूं ही लुटा रही हो?
कॉलोनी में किसी को पता नहीं चलना चाहिए कि मैं ऑक्सीजन सिलेंडर तक रख रहा हूं। आज जब उसके दोस्त रमेश ने उससे पांच लाख रुपए लिए तो वह सरकार, समाज या अपने दोस्त को ही चाह कर भी गालियां नहीं बक सकता था क्योंकि वह भी तो ऐसा ही करता था। सच पूछो अपनी पत्नी सावित्री से भी वह आंख नहीं मिला पा रहा था।हॉस्पिटल में दवाई में, इंजेक्शन में, हर चीज में उसको लूटा जा रहा था लेकिन वह खुद भी तो उन गिद्धों का ही साथी था।बेहद बेचैन हो
वह अपने बेटे के लिए डॉक्टरों से बात कर रहा था और सावित्री परमात्मा से प्रार्थना। हालांकि राजन परेशान था फिर भी सावित्री राजन से बोली देखा मैं कहती थी ना कि वक्त से डरो, लोगों की हाय एक दिन लगेगी जरूर। तुम्हारे पास में ऑक्सीजन का दवाई का हर चीज का स्टॉक था लेकिन तुमने किसी जरूरतमंद को नहीं दिया,
मुझे तो डर है कि कहीं बत्रा भाभी जी के लड़के के जैसे मेरा बेटा भी!!!!!!!!! और फूट-फूट कर सावित्री रो रही थी और राजन चुप था।तभी सामने से उनकी पड़ोसन जानकी अपने भतीजे के साथ गुजरी और उसके अस्पताल में आने का कारण पूछा ? कारण जानने पर जानकी ने सावित्री से कहा यह मेरा भतीजा यहां पर ही डॉक्टर है
और यह तुम्हारे बेटे पवन का पूरा ख्याल रखेगा। उस समय जब मैंने तुमसे दवाई, ऑक्सीमीटर आदि सारा सामान लिया था तो वह इनके बेटे के लिए ही मांगा था तब यह बेंगलुरु के हॉस्पिटल में गए हुए थे और लॉकडाउन के कारण आ नहीं सके थे। तभी उस भतीजे डॉक्टर ने सावित्री को धन्यवाद दिया । उसने सावित्री को विश्वास दिलाया
कि हॉस्पिटल में पवन का पूरा ख्याल रखेंगे उसे ठीक करने के लिए यदि प्लाजमा थेरेपी की भी जरूरत पड़ी तो उनका वही बेटा जो कोविड से ठीक हो गया है अपना प्लाज्मा देगा।आज राजन परमात्मा को भी धन्यवाद दे रहा था कि उसे सावित्री जैसी पत्नी मिली। मन ही मन वह यह भी सोच रहा था कि अब से वह ईमानदारी से काम करेगा
और सब की सहायता करेगा। बेटे की सलामती के लिए वह भी परमात्मा से प्रार्थना कर रहा था।पाठकगण वह करोना काल नहीं अपितु अवसरों का काल था। परमात्मा की तरफ से इस समय सबको सेवा करने के बहुत अवसर मिल रहे थे।
जो चाहे जितना चाहे पुण्य लाभ ले सकता था और पैसे कमाने के भी उस समय अवसर कम नहीं थे। जरूरत की हर चीज के दाम बढ़ाए जा रहे हैं।अब कोई मानव बनता है या दानव यह खुद पर ही निर्भर है ना। अच्छा या बुरा समय सभी पर आता है इसलिए वक्त से डरना चाहिए और परमात्मा पर विश्वास करना चाहिए।
मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद, हरियाणा।
वक्त से डरो विषय के अंतर्गत लिखी गई कहानी।