वक्त करता जो वफ़ा –  सुषमा यादव

शुभा जब जब बाहर धूप सेंकने अपने आंगन में बैठती,तब तब उसके पड़ोस में रहने वाले दो बुजुर्ग पति पत्नी आपस में खूब प्रेम से हंसते बतियाते रहते।

दोनों खूब देर तक धूप में बैठते,पति अपनी पत्नी को अखबार से समाचार पढ़ कर प्रतिदिन सुनाते, कुछ हास्य व्यंग भरी खबरें भी सुनाते,जिसे सुनकर दोनों खूब खिलखिला कर हंसते। दोनों दोपहर में एक दूसरे को मनुहार करते हुए खाना खिलाते।

शुभा उनकी आपस में किलोलें करती बातें सुनकर अन्तर्वेदना से मर्माहत हो जाती, वो अकेली ही रहती थी,

उसकी आंखों से आंसू बहने लगते और होंठों पर यही गीत होता,,

“” वक्त करता जो वफ़ा आप हमारे साथ होते।

हम भी औरों की तरह आपके प्यारे होते।” 

वह हमेशा की तरह उसी दुःख के सागर में डूबने, उतराने लगी।

एक दिन पति देव के साथ वो अपने इसी बरामदे में बैठी थी,देव ने बड़े प्यार से उसका हाथ अपने हाथ में लेकर कहा,,शुभा,हम दोनों के अथक प्रयास से आज़ दोनों बेटियां अपने अपने मुकाम पर पहुंच गई हैं , ये हमारा मकान भी पूरी तरह से तैयार हो गया है, बढ़िया बगीचा तुमने लगा दिया है। आज जिंदगी में बहुत सुकून और शांति है। आज हमारे जिंदगी का मकसद पूरा हो गया है,। शुभा बड़े ही प्यार से अपने नये घर और पति देव को देखते हुए बोली,, सही कहा आपने, हमने बहुत परेशानियां और दुःख झेले हैं,

पर आज प्रभु कृपा से सब कुछ ठीक हो गया है,अब हम रिटायर्ड होने के बाद अपने गांव चलेंगे और खूब तीर्थ यात्रा भी करेंगे।




देव खुश होते हुए बोले, हां, हां बिल्कुल,, और साथ में तुम्हें सरपंच के चुनाव में भी खड़ा करूंगा,

शुभा खिलखिलाते हुए बोली,आप भी ना, हमेशा राजनीति की ही बातें करते हैं।

इधर पति पत्नी भविष्य के सुखद ताने बाने में उलझे हुए थे और उधर ,””बेरहम वक्त उन दोनों पर अट्टहास कर रहा था, साथ ही काल भी मुस्कुराते हुए वक्त का साथ दे रहा था,””

वो दोनों इन सबसे अनजान अपनी ही दुनिया में मस्त हो गये थे।

कुछ ही दिनों बाद छोटी बेटी बहुत सख्त बीमार हो गई , रीढ़ की हड्डी में समस्या आ जाने के कारण बिस्तर पर आ गई,सभी डॉक्टर्स ने जबाव दे दिया,यह ऐसी ही रहेगी,देव अपनी बेटी को अपनी जान से ज्यादा प्यार करते थे, बेटी का कैरियर चौपट हो रहा था , वह डिप्रेशन में जा रही थी।

शुभा और देव का रो रोकर बुरा हाल हो रहा था।

देव ने उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर में महामृत्युंजय जप का अनुष्ठान किया,बेटी के सलामती के लिए,, संकल्प में महाकाल भगवान् से प्रार्थना करते हुए कहा, भगवान, मैं अपनी बेटी के जीवन के बदले अपनी जान आपको सौंपता हूं, अपनी जिंदगी आपके चरणों में समर्पित करता हूं,।

***इधर महाकाल मंदिर में जप का अनुष्ठान पूरा होने पर

 आहुति दी जा रही थी,उधर देव के प्राणों की

पूर्णाहुति से जप,हवन का अनुष्ठान संपन्न हो गया,

बेटी बिना किसी इलाज के ठीक हो गई और पापा को मिलने हंसते हंसते फ्लाईट से आई,पर पापा तो बेजान जमीन पर पड़े थे। चारों तरफ लोग खड़े थे,

लोगों ने पत्थर बनी बेटी से कहा, अपने पापा के अंतिम

 दर्शन कर लो और प्रणाम करके उन्हें विदा करो। वो अभी जी भर कर देख भी नहीं पाई कि सब देव को उठा कर चल दिए उनकी अंतिम यात्रा को मुकम्मल करने के लिए।।

पीछे से वक्त भी मायूस और दुःखी हो कर सुख, दुःख में एक समान रहने की नसीहत देते हुए कह रहा था,

“” वक्त के हैं दिन और रात,

वक्त की हर शै गुलाम,

आदमी को चाहिए कि वक्त से डर कर रहे।

नाम जाने कब वक्त का बदले मिजाज।।।।””

सुषमा यादव, प्रतापगढ़, उ, प्र

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित 

# वक्त

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!