“वक्त का तराज़ू ” – कविता भड़ाना

“प्रिया की जब आंखें खुली तो उसने खुद को अस्पताल के बेड पर पाया। उसके हाथ को थामे पास बैठे सुधांशु को देख प्रिया के होंठ फड़फड़ाए और धीरे से बोली “पानी”..

सुधांशु ने प्रिया को पानी पिलाया और डाक्टर को बुलाने चला गया। प्रिया की आंखों के सामने पिछली रात की घटना चलचित्र की भांति चलने लगी की कैसे उसने कल रात को अपने हाथ की नस काटकर आत्महत्या करनी चाही थी….और यादों में गोते खाने लगी….

शहर के जाने माने परिवार की बहु है प्रिया….अपनी सुन्दरता के कारण किसी को कुछ ना समझने वाली प्रिया को कुरूपता से नफरत है।

पति सुधांशु तो जैसे जान छिड़कते हैं अपनी बीवी पर.. दो बच्चो की मां है प्रिया पर उम्र का लेशमात्र भी नामोनिशान नहीं था।

रुपए पैसे की भी कोई कमी थी नहीं, इन्ही सब वजहों से प्रिया बहुत घमंडी हो गई थी और उसे बस यही लगता था की “वक्त” उसी का है। सुधांशु और प्रिया कई संस्थाओं से जुड़े हुए थे।

एक बार तेजाब पीड़ितों के आश्रम के उदघाटन में प्रिया और सुधांशु को मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया गया। अपने भाषण के दौरान मंच से ही प्रिया ने देखा की नीचे कुर्सियों पर अग्रिम कतार में तेजाब पीड़ित लोग बैठे हुए है। 

उन सब के खूबसूरत चेहरे किसी की मानसिक विकृति की वजह से अब कुरूप हो चुके थे। जाने क्यों प्रिया को असहजता सी होने लगी थी। किसी तरह अपना भाषण समाप्त करके जब प्रिया मंच से नीचे उतरने लगी तो कुछ पीड़िताओं ने प्रिया के साथ सेल्फी लेनी चाही पर प्रिया ने घृणता से मुंह फेर लिया और उनकी तरफ देखे बिना ही वहा से निकल गई। 



ये बात साथ आए सुधांशु को बहुत बुरी लगी उन्होंने प्रिया को समझाया भी की लोग सूरत से अधिक सीरत को महत्व देते है, दुर्घटना के कारण इन लोगो के चेहरे ऐसे हो गए है, ये वक्त के सताए हुए लोग है, तुम्हारे साथ सेल्फी लेने से उन्हीं क्षणिक खुशी मिल जाती पर तुम्हारे इस व्यवहार से उन्हे कितना दुख पहुंचा होगा, क्या ये सोचा तुमने?….

ये लोग कितनी मानसिक और शारीरिक वेदना से गुजरते है हम लोग सोच भी नही सकते, इतना सब सुनने के बाद भी प्रिया ने पलटवार करते हुए कहा की मेरी जिंदगी में किसी भी तरह की कुरूपता के लिए कोई स्थान नहीं है और कहकर गुस्से में निकल गई…. 

सुधांशु ने फिर खुद उन सब पीड़ितो के साथ समय बिताया,

उनकी दुख परेशानी सुनी और अपनी तरफ से हरसंभव मदद का वादा किया और एक अच्छी रकम अपनी तरफ से संस्था को देकर सब से विदा ली।



इस घटना के महीने भर बाद ही एक सड़क दुर्घटना हो गई जिसमे सुधांशु को तो मामूली चोटे आई लेकिन प्रिया का चेहरा पत्थरो से टकराकर एक तरफ से बुरी तरह कुचल गया था जिससे उसका आधा चेहरा खराब हो गया था।

सर्जरी के बाद भी कुछ गहरे निशान और दाग अब हमेशा के लिए रह गए। अपनी सुंदरता पर अहंकार करने वाली और दूसरों को सिर्फ सुंदरता के पैमाने में तोलने वाली प्रिया को वक्त ने सबक सिखा दिया था। 

आत्मग्लानि और दुख की वजह से ही प्रिया ने हाथ की नस काटकर अपनी जान देनी चाही थी पर समय पर अस्पताल पहुंचाने से उसकी जान तो बच गई लेकिन अब जीवन भर उसे इसी रंग रूप के साथ जीना होगा, ये सोच सोच कर ही उसके आंसू थामने का नाम नहीं ले रहे थे।

आज प्रिया को तेजाब पीड़ितों का दुख दिल से महसूस हो रहा था।

सच ही कहा गया है की वक्त हर किसी का हिसाब किताब रखता है और वक्त आने पर सूद समेत वापस भी कर देता है।…

स्वरचित काल्पनिक रचना

# वक्त

कविता भड़ाना

 

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