Post View 216 ” वक्त अच्छा हो तो सब अपने नहीं तो सब पराये।” यह बात विशालाक्षी से अधिक इस समय कौन जान सकता है? वक्त बीतता चला जाता है, पता ही नहीं चलता। आज दस साल बाद अपने शहर लौटकर आई है विशालाक्षी। अपनी आश्रम सखी गुंजन बहुत आग्रह करके जबरदस्ती अपनी बहन ने … Continue reading वक्त – बीना शुक्ला
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