वापसी – करुणा मलिक : Moral stories in hindi

मालू, याद तो है ना कि पापा 20 तारीख़ को इंडिया पहुँच रहे हैं । बहुत कोशिश की कि सही समय पर पहुँचे पर किसी फ़्लाइट में बिज़नेस क्लास की टिकट ही नहीं मिली । रात में दो बजे लैंड करेंगे । एक हैंड बैग ही होगा, उनके साथ इसलिए ज़्यादा टाइम नहीं लगेगा बाहर आने में । कोई बात नहीं भैया , मैं ठीक समय पर पहुँच जाऊँगी । तेरे लिए क्या भेजूँ ?

कुछ नहीं भैया, आप तो तीन महीने बाद पापा को लेने आ ही रहे हो , तब ले आना । अरे , वो तेरा खड़ूस पति बात बनाएगा । मेरा पति कोई खड़ूस नहीं है । नील तो लाखों में एक है । वैसे अगर आपकी लालची पत्नी इजाज़त दे तो बस कुछ चॉकलेट भेज देना । अक्सर मालती और मानव की प्यार भरी नोकझोंक सभी भाई- बहनों के समान चलती ही रहती थी ।

फ़ोन बंद होते ही यादों के गहरे समंदर में डूब गई । मम्मी की असमय मौत ने उससे उसका मायका ही छीन लिया था । भैया- भाभी आराम से लंदन में रह रहे थे । वह नील और सास-ससुर के साथ मस्त जीवन जी रही थी । मम्मी-पापा दोनों सुखी थे और संतुष्टि उनके चेहरे पर झलकती थी । हर शुक्रवार की शाम मालू मम्मी- पापा के पास पहुँच जाती और शनिवार को नील भी उसके पीछे पहुँच जाता फिर कभी-कभी रविवार के दिन मालू के सास- ससुर भी वहीं लंच के लिए पहुँच जाते ।

इस प्रकार जीवन हँसी- ख़ुशी के साथ बीत रहा था । आज भी मालू उस भयानक रात को याद करके सिहर उठती है जब उस वीकेंड उसने नील के साथ शिमला जाने का प्रोग्राम बना लिया । उसके सास- ससुर ने मम्मी- पापा को अपने पास बुला लिया- अरे ! जाने दो इन दोनों को शिमला । हम यहीं रहकर इतने मज़े करेंगे कि सुनकर ये दोनों यहाँ न रूकने के लिए उम्र भर पछताएँगे । उसकी सास ने तो ये बात केवल मज़ाक़ में कही थी पर किसे पता था कि उस समय उनकी जीभ पर माँ सरस्वती बैठी थी ।

सचमुच आज तक मालू और नील के मन में इस बात का मलाल है कि मम्मी के आख़िरी समय वे उनके पास नहीं थे ॥ होनी बड़ी बलवान होती है । शुक्रवार की रात मम्मी- पापा उसकी ससुराल में रुकने के बाद शनिवार की शाम को अपने घर यह कहते हुए लौट आए कि कल तो बच्चे आ ही जाएँगे मालू और नील भी घूमने फिरने में मशगूल थे ।

कुछ यह सोचकर निश्चित थे कि सब इकट्ठे हैं । चारों को अपने हिसाब से इंजाय करने दो । अचानक रात के तीन बजे रोते हुए मानव का फ़ोन आया – मालू , मम्मी को कुछ हो गया । पापा उन्हें लेकर हॉस्पिटल जा रहे हैं पर पापा को रात में गाड़ी चलाने में दिक़्क़त आती है मुझे डर लग रहा है । मालती ने आज भैया की आवाज़ में कंपन के साथ बेबसी महसूस की । पर खुद को सँभालते हुए वह बोली – भाभी को फ़ोन दो जल्दी । आप चिंता मत करो । नील अभी किसी को फ़ोन करके कुछ न कुछ इंतज़ाम कर देंगे ।

हाँ मालू , मैं भाभी । भाभी! भैया को सँभाल लो । आप लोग वहाँ अकेले हैं । यहाँ की चिंता मत करो । हम पहुँच रहे हैं मालू , बस तब तक मम्मी-पापा का ख़्याल रखना । तुरंत मालती और नील शिमला से निकल पड़े । नील ने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों की भी मदद ली । मम्मी को एम्स के आई सी यू में भी बेड मिल गया पर जिस वक़्त मालू पहुँची , उसे अपने बदहवास से पापा केवल बनियान और पाजामे में नज़र आए । उसका कलेजा मुँह को आ गया । हमेशा बन सँवर और टिप- टॉप रहने वाले पापा अपनी जीवन – संगिनी को बचाने के लिए जिस हाल में सो रहे थे, दौड़ पड़े थे । गाड़ी के रुकते ही पापा की नज़र उस पर पड़ी- मा………लू… पापा इससे आगे कुछ नहीं बोल पाए ।

एंबुलेंस में उसकी मम्मी के मृत शरीर को रखवाते हुए उसके ससुर के काँपते हाथ मालू को देखकर जुड़ गए- सॉरी बेटा , हम दो दिन तुम्हारे मम्मी- पापा की देखभाल नहीं कर पाए । सास ने आगे बढ़कर उसे गले लगाया पर मालू तो जैसे मूर्ति बन गई । वह यंत्रवत सास के साथ चल पड़ी आज नील के माता-पिता समधी नहीं बल्कि मित्र बनकर सारा इंतज़ाम कर रहे थे । मालू अपने पिता के कंधे पर सिर टिकाए टकटकी लगाए थी । वह कुछ कहना चाहता पर उसके मुँह से आवाज़ ही नहीं निकलती थी ।

मानव का इंतज़ार करना है या ……. पता नहीं, टिकट मिलेगा या नहीं? भले ही सर्दी है पर लाश को ज़्यादा देर रखना भी ठीक नहीं । तैयारी शुरू करो । अचानक मालती शेरनी की भाँति गरजी – मेरे भाई से मिले बिना मम्मी कहीं नहीं जाएँगी, इतना कहकर वह दहाड़ मारकर रोने लगी थी । शायद मानव के दिल ने उसे अनहोनी की सूचना दे दी थी ।

वह भी अगले दिन सुबह पहुँच गया । मम्मी के दाह संस्कार से लेकर तेरहवीं तक के दिनों में मालू , मालती बनकर अपने को समझा चुकी थी कि भैया पापा को अपने साथ लेकर ही जाएँगे और मम्मी के साथ उसका मायका भी समाप्त हो गया है । अब पापा दो साल बाद आ रहे हैं पर हर रोज़ भाई- भाभी और पापा के साथ घंटों वीडियो कॉल के बाद मालती यह बात समझ गई है कि मायका माँ- बाप के बाद भी रहता है बशर्ते भाई- भाभी अच्छे हो ।

करुणा मलिक

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