वापिसी – डॉ संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : हल्की गुलाबी सर्दी आ गई थी,अक्टूबर का महीना खत्म हो गया था,शिप्रा ने कस कर  अपने ऊपर शॉल लपेटा जब बाहर वॉक करते हुए एक ठंडी हवा का झोंका उसके सारे शरीर में सिहरन सी पैदा कर रहा था।उसे याद आया,राहुल यहां होता तो कभी उसे बिना गर्म कपड़ा लिए बाहर न निकलने देता,कितना ध्यान रहता था वो उसका,हर छोटी बड़ी चीज का,मौसम बदल रहा है,तुम्हें जुकाम न हो जाए…स्कूल जा रही हो..लंच ले लिया न?रात का ट्रेन का सफर है,अकेली हो ,देखो सब इंतजाम से जाना…और न जाने क्या क्या?

मै बच्ची हूं क्या?वो झूठमूट गुस्से से कहती और राहुल बड़ी मासूमियत से कहता,ले देकर एक तुम्हीं तो हो जो मेरी जिंदगी का आधार हो,मेरी कोई दस बारह गर्ल फ्रेंड नहीं है शिप्रा,तुम्हें कुछ हो गया तो मै मर जाऊंगा।

मरे मेरे दुश्मन!वो खिलखिलाती,अगर मैं कभी मर भी गई तो भूत बनके तुम्हारे साथ रहूंगी,समझे!और वो दोनो खिलखिलाने लगते।

घर परिवार का विरोध सहकर भी उन दोनो ने विवाह किया,राहुल के घरवाले कहते,शिप्रा से लाख अच्छे रिश्ते आयेंगे उसके लिए,वो टॉप मोस्ट कंपनी में सॉफ्ट वेयर इंजीनियर था,मोटा वेतन,बंगला ,गाड़ी सब कुछ ए  वन और शिप्रा एक साधारण से स्कूल में टीचर।

लेकिन राहुल ने किसी की एक न सुनी।शिप्रा के प्यार में वो पागल था,उसे शिप्रा से बढ़कर कभी कोई न लगा।

शिप्रा ने भी उसकी इस कमजोरी का फायदा उठाना चाहा।हालांकि उसे राहुल पसंद था पर वो भावुक नहीं थी राहुल की तरह।बहुत प्रैक्टिकल,फायदा नुकसान देखकर काम करने वाली।उसने देखा,इतना हैंडसम बंदा जो बढ़िया कमाता है,उसपर दिलोजान से फिदा है तो क्या बुराई है उससे जुड़ने में…बस उससे मिलने लगी,यकीन दिलाया उसे कि मै भी तुमसे प्यार करती हूं और दोनो ने शादी कर ली।

उनकी शादी बढ़िया चल भी जाती पर राहुल  की भावुकता ये बर्दाश्त नहीं कर पाती थी कि शिप्रा उसके मां बाप,बहन भाई को बिलकुल सहन करने को तैयार नहीं थी।उसे राहुल बिलकुल अकेला चाहिए था बाकी कोई जिम्मेदारी से वो बच के भागती।

राहुल ने बहुत कोशिश की कि वो ऐसा न करे।वो दो पाटों के बीच पिसने लगा।घरवालों और शिप्रा में सामंजस्य बैठाने के चक्कर में उसका मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होने लगा था।

हद तो तब हो गई जब गुस्से में शिप्रा एक दिन घर छोड़कर चली गई अपने मायके।राहुल ने उससे मिलने की बहुत कोशिश की पर वो टस से मस न हुई।

उसकी एक ही शर्त थी,या तो घरवालों के साथ रह लो या मेरे ही। हार कर,उसके घरवालों ने उसे मना लिया कि वो बहू की बात मान ले।

बेमन से,राहुल शिप्रा को उसकी शर्त के मुताबिक लौटा लाया था।शिप्रा अपनी जीत की खुशी में मदमस्त हो गई।वो राहुल पर दिन रात प्यार लुटाती,राहुल की सैलरी भी बढ़ गई थी,उसका प्रमोशन हो गया था और शिप्रा कहती,देखा! मै तुम्हारे लिए कितनी लकी हूं,मेरे आते ही तुम अकूत लक्ष्मी के स्वामी बन रहे हो।

राहुल फीकी हंसी हंस देता।उसे शिप्रा का प्यार भी एक दिखावे के सिवा कुछ न लगता।आज मुझे मेरे मां बाप से अलग कर कितनी खुश है ये…इसका मतलब,इसका प्यार मात्र दिखावा है,इसे मेरी खुशी से तो कोई सरोकार नहीं।वो दिनोदिन घुलता जा रहा था।

इन सबसे बेखबर शिप्रा,खूब खरीदारी करती,पार्टियां करती और खुश रहती।एक दिन,राहुल ऑफिस से घर आया तो उसे बुखार था।

राहुल!तुम क्रोसिन ले लेना डियर!मेरी बहुत इंपोर्टेंट पार्टी है आज रात,सजी धजी शिप्रा जो बाहर जाने को तैयार बैठी थी,बोली।

हां…तुम जाओ…आय एम ओके।राहुल कमजोर आवाज़ में बोला।

उस दिन,राहुल कमजोरी से बेहोश हो गया और बिना कुछ खाए ऐसे ही सो गया।

लेट नाइट आई शिप्रा,थकान की वजह से उसे देख भी न पाई।अगले दिन ,राहुल का बुखार बहुत तेज था और डॉक्टर को दिखाने पर,टेस्टिंग कराने पर पता चला,राहुल को हेपेटाइटिस बी है।

ऐसी बीमारी में,पेशेंट को बहुत केयर,सहारे और मानसिक संबल की जरूरत होती है दवाई के साथ।शिप्रा खुद तो क्या करती,अब भी राहुल के परिवार वालों को नहीं बताया उसने।राहुल पल पल मौत के शिकंजे में जा रहा था,उसे शिप्रा की तंगदिली लील रही थी।वो जो भी करती ,बिलकुल मेकेनिकल होकर,उसे लगता,डॉक्टर का काम वो थोड़े ही कर सकती है,वो तो डॉक्टर ही करेंगे।

और एक दिन,राहुल, उस बीमारी का दर्द सह न सका और उसकी सांसे साथ छोड़ गई।

शिप्रा को यकीन नहीं  हुआ था,उसकी तो जैसे सारी दुनिया ही उजड़ गई।उसे महसूस हुआ पहली बार कि राहुल का उसकी जिंदगी में होना क्या मायने रखता था।वो अचानक बिलकुल अकेली हो गई थी।हालांकि,राहुल के मां बाप उसके बुलाने पर आ गए थे उसके पास पर अब शिप्रा को अपनी गलती महसूस होती।वो बहुत शर्मिंदा थी पर उसकी शर्मिंदगी राहुल को वापिस तो नहीं ला सकती थी क्योंकि वो वहां जा चुका था जहां से वापिसी नामुमकिन थी।

डॉ संगीता अग्रवाल

वैशाली,गाजियाबाद

 

 

 

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