नेहा के एलएलबी पूरी होते होते उसकी शादी गाँव के एक छोटे से घर में सुमित्रा देवी के बड़े बेटे अरुण से हो गई। अब घर में अरुण, उनका छोटा भाई रवि, बहन ज्योति, सुमित्रा जी और बहू नेहा रहती। सुमित्रा देवी को अपनी परंपराओं पर गर्व था, और वे अक्सर नेहा को ताने मारतीं, “पढ़ी-लिखी लड़कियाँ घर की शांति छीन लेती हैं।
वे बस अपनी चलाती हैं और परिवार में एकता नहीं रहने देतीं।” नेहा, जो शहर की एक पढ़ी-लिखी लड़की थी, सास की बातें चुपचाप सुनती रहती और सोचती कि कैसे वह उनके मन की गलतफहमी दूर कर सके।
एक बार गाँव की एक काकी सुमित्रा जी से मिलने पहुंची। उन्होंने नेहा को आवाज देते हुए कहा, “बहु! काकी आई है, पानी तो ले आ।” नेहा अपनी शादी में लाए हुए सुन्दर कांच के सेट में से दो गिलास निकाल कर उसमें पानी ले गयी।
कांच का ग्लास देखते ही सुमित्रा जी फट पडी और बोली-“काकी घर की सदस्य जैसी है… इन्हें कांच के ग्लास में क्यूँ पानी दे रही हो। नेहा इतना सुनते ही सोचने लगी इसमें गलत क्या है आखिर तब तक सुमित्रा जी बेहद कडवे लहजे में बोली “वाह बहु! बहुत पढ़ी तुम तो।”
इतना कहने भर मे काकी और सुमित्रा जी व्यंग्यात्मक हसी हसने लगी।
नेहा वहां खड़ी न रह सकी और अपमान का घूंट पीकर कमरे में आ गई।
अब तो आए दिन ऐसे ही छोटी छोटी बातों पर सुमित्रा जी नेहा को पढ़ी-लिखी होने का ताना मारती रहती।
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एक दिन गाँव में एक बड़ा विवाद हो गया। गाँव के कुछ लोग सुमित्रा देवी के परिवार की जमीन को हड़पने की कोशिश कर रहे थे। मामला पंचायत में पहुँचा, लेकिन बात बढ़कर कानूनी पेचीदगी तक पहुँच गई। सुमित्रा देवी परेशान हो गईं। उन्हें नहीं पता था कि इस समस्या से कैसे निपटा जाए।
तभी नेहा ने कहा, “माँजी, आप चिंता मत कीजिए। मैंने कानून की पढ़ाई की है, और मुझे पता है कि हमें क्या करना चाहिए।” सुमित्रा देवी को विश्वास नहीं हुआ कि उनकी बहू मदद कर सकती है, लेकिन और कोई चारा भी नहीं था। नेहा ने सारे दस्तावेज़ तैयार किए, वकील से बातचीत की और पंचायत में अपनी बात रखी। उसकी समझदारी और कानूनी ज्ञान ने पंचायत को यह समझाने में मदद की कि जमीन पर सुमित्रा देवी का ही हक है।
जब पंचायत का फैसला उनके पक्ष में आया, तो सुमित्रा देवी की आँखों में आंसू थे। उन्होंने नेहा को गले लगाते हुए कहा, “नेहा, मैं गलत थी। मैंने हमेशा तुम्हारे पढ़े-लिखे होने पर शक किया, लेकिन आज तुम्हारी वजह से हमारा परिवार बच गया। पढ़ाई सच में जीवन में काम आती है।”
उस दिन के बाद से सुमित्रा देवी नेहा की इज्जत करने लगीं और अपने विचारों में बदलाव लाईं। उन्होंने समझा कि पढ़ी-लिखी लड़कियाँ भी परिवार में एकता और शांति ला सकती हैं, और मुश्किल वक्त में सहारा भी बन सकती हैं। कहते कहते सुमित्रा जी की आँखों में आंसू आ गए। मुस्कराते हुए नेहा उनके आंसू पोछने लगी
और कहा माँ….पढ़ाई-लिखाई कभी बेकार नहीं जाती। जो ज्ञान हम प्राप्त करते हैं, वह हमें और हमारे आसपास के लोगों को मुश्किल समय में राह दिखा सकते है। आज उसे अपना हुआ हर अपमान वरदान लग रहा था।
स्वरचित एवं मौलिक
पूजा मिश्रा’धरा’
गोंडा,उत्तर प्रदेश
अपमान बना वरदान