आज संजय ने बहुत दुखी होकर मम्मी की फेसबुक प्रोफाइल खोली, और उसमे पोस्ट डाली, “बहुत दुख के साथ सूचित कर रहा हूँ कि मेरी मम्मी कहानीकार कंचन देशपांडे कल स्वर्ग सिधार गयी।”
लिखने के साथ ही मोबाइल फेंक कर, बिलखने लगा। हे भगवान ये किस जन्म का बदला लिया, मैं अंत समय उनके पास भी नही था।
सुबह ही उनसे बात हुई, बड़ी खुश थी, बोल रही थी, “मेरे बहुत से नए आभासी दोस्त बने हैं, बहुत प्यारे हैं, हम हमेशा एक दूसरे के कांटेक्ट में रहते हैं, तुम आराम से वेनिस में रहो “
उनकी कई किताबें छप भी चुकी थी,ज्यादा घर के बाहर नही जाती थी, कुछ सहर्लियों से ऑनलाइन बात करके ही खुश रहती थी, पर कुछ लोग समय को नही पहचानते, घमंड में डूबे रहते हैं, उन्हें समझ मे नही आता, आप किसी को सुखद पल देंगे तो निश्चित ही वो पल उन्हें कभी न कभी वापस मिलेंगे।
हां संजय जानता था मम्मी को हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत रहती है। शाम को ही कुक ने फ़ोन किया, “भैय्या, जल्दी आओ, मैम बाथरूम में गिरी पड़ी है।”
संजय ने भारत मे अपने चचेरे भाई से कहा, “जरा देख आओ, क्या हाल है।”
और पता चला मम्मी तो गई।
भाई ने बताया, डायरी में आधे वाक़्य लिखे थे, पता नही कैसे लोग सत्तर वर्षीय बुजुर्गों से भी नाराज हो जाते हैं, किसी की खुशी देखी नही जाती, चलो कुछ पारिवारिक परेशानी होगी।
संजय को कुछ कुछ समझ आ गया था, अपनी सखी सपना से मम्मी बहुत लगाव महसूस करने लगी थी और उसने मम्मी का अनादर किया, वो सहन नही कर पाई।
भारत का फ्लाइट टिकट बुक तो करा रहा था, पर उसका दिल बहुत दुखी था।
भगवती सक्सेना गौड़