अभी आधा घंटा ही हुआ था टैक्सी को रवाना हुए जिसमें रोहन,शिवि, दोनों बच्चे रोहित एवं शुभि के साथ बैंगलोर के लिए निकले थे। उनके जाते ही घर में मौत का सा सन्नाटा पसर गया। मनोहर जी एवं विभा जी अकेले रह गए।विभा जी का तो रो रोकर बुरा हाल था। उनकी हिचकियां थीं कि थमने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं। मनोहर जी ऊपर से शांत एवं गम्भीर मुद्रा में थे किन्तु विचारों का वंवडर उनके अंदर भी चल रहा था।अब तक की परिस्थितियों का मंथन कर वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि विभा ने स्वयं ही अपनी चहकती महकती बगीया वीरान कर दी थी।
इधर विभा जी रोते रोते विगत की पगडंडीयों पर चल पड़ीं। एक एक दृश्य उनके मानस पटल पर उभर कर विगत दिनों को याद दिला रहा था।
उनकी शादी के बाद जब पांच साल तक उनकी गोद नहीं भरी तब उन्होंने डाक्टरों के यहां चक्कर लगाने शुरू किये।चेक अप में सब कुछ सामान्य था। दोनों में ही कोई समस्या नहीं थी ।अब उन्होंने मन्दिरों में, पंडितों के यहां ढोक लगानी शुरू की।पता नहीं कहां-कहां मन्नत मांगी और आखिर उनकी मुराद पूरी हुई उन्हें रोहन पुत्र रूप में प्राप्त हो गया।
दोनों को मानो खुशीयों का खजाना मिल गया।वे खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। मनोयोग पूर्वक उसके लालन-पालन में खो गए। उसकी बाल सुलभ बातें उन्हें हंसा-हंसा कर लोटपोट कर देतीं। अभी रोहन तीन बर्ष का ही हुआ था कि उन्हें दूसरे बच्चे की आहट सुनाई दी।समय पर पुत्री रूप में जूली मिली।अब तो वे अपनी खुशहाल महकती फुलवारी को देख देख कर प्रसन्न होते रहते।
कब समय बीत गया पता ही नहीं चला। दोनों बच्चे पढ़ लिख गए एवं नौकरी पा गए।अब उन्हें उनकी शादी की चिन्ता हुई। रोहित के मना करने के बाद उन्होंने पहले जूली की शादी कर दी और वह अपने परिवार में सैटल हो गई।अब उन्होंने रोहित के लिए भी लड़की देखनी शुरू की और उनकी खोज शिवि पर आकर रुकी । वह पढ़ी-लिखी, संस्कारी एवं सुन्दर कन्या थी। पहली नजर में ही सबको भा गई सो देर न करते हुए शिवि को जल्दी ही बहू बनाकर ले आईं।
शिवि में पारिवारिक संस्कार कूट-कूट कर भरे थे सो वह परिवार में जल्द ही घुल-मिल गई।विभा जी एवं मनोहर जी की तरफ से भी कोई रोक टोक नहीं थी। आराम से पूरी स्वतंत्रता के साथ उसे खाने-पीने ,मन माफिक रहने, ड्रेसेज पहनने की अनुमति थी ,पर शिवि ने कभी इस आजादी का नाजायज़ फायदा नहीं उठाया। उसे अच्छी तरह समझ थी
इस कहानी को भी पढ़ें:
कि कब कहां किस तरह का व्यवहार करना है।सो बहुत ही अच्छे ताल-मेल के साथ परिवार रह रहा था।अब तक वह दो बच्चों की मां भी बन गई थी। दादा-दादी बन मनोहर जी एवं विभा जी को असीम सुख की प्राप्ति हो गई।वे बच्चों का पूरा ध्यान रखते। उनके साथ खेल मानो स्वयं बच्चे बन जाते।
इस हंसते खेलते परिवार को नजर लग गई बुआ जी की।हुआ यों कि कि एक दिन मनोहर जी की दूर रिश्ते की बहन उनके यहां आईं और हप्ते भर रहीं।वे स्वयं तलाकशुदा थीं और उनकी अपने बेटे -बहू से भी नहीं बनती थी सो अकेली अलग रहतीं थीं। उन्हें मनोहर जी के यहां का सौहार्दपूर्ण वातावरण रास नहीं आया और उसमें उन्होंने बड़ी ही कुटिलता पूर्वक बिखराव की चिंगारी लगा दी और रवाना हो गईं। विभा जी के कान में पता नहीं क्या मंत्र फूंका कि विभा जी एक दम टिपिकल भारतीय सास बन गईं परिवार में सभी उनके इस बदले व्यवहार से परेशान हो गए कि यकायक इन्हें क्या हो गया। जबकि मंत्र वे शिवि के कान में भी फूंक कर गईं थीं पर उसने उनकी बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया और अपना व्यवहार यथावत बनाए रही।
विभा जी अब एक पारम्परिक सास बन गईं तो उन्हें अब शिवि में बुराई ही बुराई दिखाई देने लगी।बुआ जी का मंत्र बहू को दबा कर रखो नहीं तो सिर पर नाचने लगेगी ।ये क्या भाभी तुमने बहू को इतनी आज़ादी दे रखी है कि वह नंगे सिर, कुछ भी कपड़े पहने घूमती रहती है।हर चीज उसे खाने को क्यों देती हो।वह बाहर घूमने चली जाती है और तुम काम करती हो, भाभी लगाम कस कर रखो और विभा जी ने बिना सोचे-समझे बुआ जी के सुझावों पर काम करना शुरू कर दिया ।अब रोज घर में झगड़े होने लगे। शिवि भी उनकी अनावश्यक रोका टोकी से परेशान हो गई।
कई बार उसने विभा जी का अच्छा मूड देखकर उन्हें समझाने का प्रयास किया। मनोहर जी और रोहन ने भी उन्हें समझाया कि वे अपना व्यवहार बदल लें पहले की तरह सुख शांति से रहें।बुआ जी का स्वभाव तो आप जानतीं हैं न। उनकी न तो पति से बनी और न अब बेटे-बहू से बन रही है।वे तो केवल परिवार तुड़ाने का काम करतीं हैं आप क्यों उनकी बातों में आकर अपनी मानसिक शांति और सबकी शान्ति बर्बाद कर रहीं हैं पहले की तरह हिल मिल कर रहो। पहले भी तो सात साल से आप शिवि के साथ रह रहीं थीं अब एक दम क्या हो गया।
किन्तु वही ढाक के तीन पात उनकी समझ में कुछ नहीं आया और वे अपने व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं लाईं। फिर भी बेटे-बहू ने तीन साल उनके साथ ऐसे ही संघर्षपूर्ण तरीके से गुजारे।अब घर का वातावरण बहुत तनावयुक्त रहता ऐसे में बड़े होते बच्चों पर भी असर पड़ रहा था सो उन्होंने निर्णय कर अपना ट्रांसफर पूना ब्रांच से बैंगलोर ब्रांच में करा लिया इस कार्य में उन्हें पिता की अनुमति भी मिल गई थी।वे आज अपने परिवार को लेकर चले गए। विभा जी सोच रहीं थीं कि इस सबके लिए मैं ही जिम्मेदार हूं।यह सोचते ही उनकी रुलाई एक बार फिर फूट पड़ी
।तब मनोहर जी उन्हें शांत कराते बोले विभा अब चुप भी हो जाओ। तुम्हारी राह का कांटा शिवि चली गई।अब तुम अपने घर की पुनः एक छत्र मालकिन हो पहले की तरह।अब बच्चे भी चले गए कोई घर गंदा नहीं करेगा न सामान इधर-उधर बिखरेगा।अब पूर्ण शांति है इच्छानुसार रहो, क्यों रो रही हो।
इस कहानी को भी पढ़ें:
यह सुन विभा जी और जोर से रो पड़ीं। मनोहर जी के कंधे पर अपना सिर रखते बोलीं तुम भी मार लो ताना जितना मारना है।आज मैं समझ गई कि बुआ जी की बातों में आकर मैंने क्या खो दिया। अपने स्वर्णिम संसार में खुद ही विभाजन की रेखा खींच दी। अपने दिल के टुकड़ों को स्वयं ही स्वयं से दूर कर दिया ।
मनोहर जी बोले मैंने तुम्हें कितना समझाने की कोशिश की, रोहन और शिवि ने तुम्हें कितना मनाया पर तुम पर तो अलगाव का भूत सवार था।अब पछताये होत क्या जब सब कुछ बिखर गया एवं चहकती महकती बगीया को स्वयं तुमने वीरान कर दिया। किसी गीत कार ने सही ही कहा है कि
सब कुछ लुटा कर होश में आए तो क्या किया।
विभा जी सोच रहीं थीं कि हर बार घर टूटने के लिए बेटे-बहू को दोष दिया जाता है पर यह सच नहीं है कभी कभी कभी बड़े भी इस कार्य को अंजाम दे देते हैं ।
शिव कुमारी शुक्ला
24-2-25
स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित
वाक्य***हर बार घर टूटने***बेटे-बहू को दोष दिया जाता है