*वट वृक्ष* – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

     भजनों की स्वर लहरी गूंज रही थी,बधाई हो बधाई के स्वरमय गीत से सभी का हृदय स्पंदित हो रहा था।सभी, करतल ध्वनि से वातावरण को और सुर मय बना रहे थे।

        आज ही मैं अपनी ही सोसायटी निवासी नरोत्तम जी जिन्हें मैं अपने पिता तुल्य ही मानता हूं,पर हमारा परस्पर व्यवहार मित्रता जैसा है,के फ्लैट से अभी अभी आया हूँ।असल मे आज उनका 85 वा जन्म दिवस था।उनके एक ही बेटा है मनोज कुमार,जो स्वयं वरिष्ठ नागरिक श्रेणी में आते हैं।बेटे एवम उनकी पुत्र वधु अलका ने उनके जन्मदिन पर सत्यनारायण भगवान की कथा का आयोजन किया था।जिसमे लगभग 50 पुरुष व महिलाओं की उपस्थिति थी।इतेफाक से नरोत्तम जी का पोता हर्षित भी स्वीडन से अपनी पत्नी आयुषी के साथ उपस्थित रहा।

           पंडित जी द्वारा सत्यनारायण भगवान की कथा सामान्य से हटकर बड़े ही सारगर्भित रूप में सम्पन्न कराई गई।बाद में नरोत्तम जी द्वारा एक बड़ा सा केक काटा गया।उनके बगल में स्नेहशील उनकी धर्मपत्नी 80 वर्षीया मधुर जी विराजमान रही।सब उनके चरण छू कर आशीर्वाद प्राप्त कर रहे थे।मैं एक ओर खड़ा उनके चेहरे की ओर देख रहा था।आज उनके चेहरे पर अलग चमक नजर आ रही थी।यह अपनो द्वारा अपने को दिये जा रहे सम्मान का द्योतक था।

         नरोत्तम जी ने अपने जीवन का लंबा हिस्सा कानपुर में एक प्राइवेट कंपनी में साधारण नौकरी करते हुए बिताया और आजकल नोयडा में रह रहे हैं।अपनी जिजीविषा के बल पर उन्होंने अपने पुत्र और तीन पुत्रियों को उच्च शिक्षा दिलाने में कोई कोर कसर नही छोड़ी। उसी का परिणाम यह रहा कि बेटे मनोज कुमार आज भले ही रिटायर होकर भी कंसल्टेंट के रूप में बड़ी

कंपनी को अपनी सेवा दे रहे हो,पर अपने पिता के त्याग तपस्या को देखते हुए उन्होंने अपने पिता के सम्मान को सर्वोपरि रखा।अभी पिछले दिनों नरोत्तम जी दो दिनों तक दिखाई नही दिये, स्वाभाविक चिंता हुई।85 वर्ष की अवस्था मे भी उनकी चुस्ती और कार्य क्षमता वास्तव में अनुकरणीय रही है।प्रतिदिन दो तीन किलोमीटर का घूमना,शारीरिक व्यायाम करना सबको अचंभित करता।शरीर से पतले दुबले नरोत्तम जी पूरी सोसायटी में लोकप्रिय हैं।पता चला कि अस्थमा बढ़ गया है।बेटे मनोज तुरंत बड़े डॉक्टर के पास उन्हें लेकर गये।

          लगभग चार वर्ष पूर्व उनके बेटे को मनोज को हैदराबाद जॉइन करना पड़ा।नरोत्तम जी ने स्वयं ही नोयडा में रहने को प्राथमिकता दी।बुझे मन से मनोज एवम उनकी पुत्रवधु अलका हैदराबाद चले तो गये पर उनकी चिंता अपने माता पिता रहे।आखिर मनोज जी ने अपना जॉब छोड़कर नोयडा ही आने को  प्रीफर किया।

        जिस दिन मनोज हैदराबाद से वापस आये तो नरोत्तम जी अत्यधिक प्रसन्न थे,मानो नंद के द्वारे कृष्ण आ गये हो।शान्ति के साथ चेहरे के भाव उनके मन की अभिव्यक्ति प्रदर्शित कर रहे थे।इसी प्रकार की अभिव्यक्ति बिना बोले नरोत्तम जी एवम मधुर जी के चेहरे पर आज भी थी।

         घर मे उल्ल्हास का वातावरण और माता पिता का सम्मान पूरे समाज को प्रेरित कर रहा था,वट वृक्ष को सींचते रहना चाहिये,फल नही तो छाया तो सदैव मिलती ही रहेगी,परिवार प्रबोधन का सबक ले मैं अपने मित्रों के साथ उनसे आशीर्वाद ले वापस चला आया।उनके शब्द कानो में गूंज रहे थे,बेटा बेटी अपने है तो भगवान भी अपने हैं।

बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

सत्य एवं अप्रकाशित।

*#जिस घर मे बुजुर्ग हंसते मुस्कराते रहते हैं उस घर मे भगवान का वास होता है*

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