शीतल आज बहुत अच्छा महसूस कर रही थी। एक सप्ताह से घर में मेहमानों का आना जाना लगा हुआ था। आज सुबह बेटा बहू भी हनीमून के लिए निकल गए। सारे मेहमान जा चुके थे। घर में केवल शीतल ओर बड़ी जेठानी रह गई थी। उसने चाय बनाई और एक कप जेठानी को देकर खुद भी वहीं बैठकर पीने लगी। घर बिल्कुल शांत था, पर अभी पूरा घर बिखरा पड़ा था। चाय पीने के बाद दोनों घर समेटने में लग गई। सप्ताह भर के खुले हुए कपड़े शीतल छोट छांट कर वाशिंग मशीन में डाल रही थी। जेठानी रसोई समेटने में लगी थी।
तभी कामवाली बाई ने शीतल को टोक दिया, “छोटी भाभी आपकी सभी साड़ियां बहुत सुंदर सुंदर हैं। इतनी अच्छी अच्छी साड़ियाँ कहाँ से खरीदती हैं आप। शीतल मुस्कुरा कर रह गई। मन ही मन सोचने लगी, खरीदती कहाँ है वो? ये सभी साड़ियां तो उसकी दोनों ननद और दोनों जेठानी की दी हुई हैं। वे सभी शीतल को बहुत मानती है। उसका ख्याल भी बहुत रखती हैं। कपड़ों की कमी तो कभी महसूस ही नहीं की। शीतल ने। वे लोग जब भी आती, शीतल के लिए बैग भर कर कपड़े लाती। ” शीतल, ये देखो, ये साड़ी तुम पर बहुत अच्छी लगेगी।
बरा एक दो बार ही पहना है मैंने। ” “अरे भाभी ये ब्लाउज तो आ जाएगा न आपको? अब इसका फेशन खतम हो गया है। पर आप घर में पहन जाइयेगा। इतने महंगे कपड़े किसी दूसरे को क्यों दें? आप तो पहन ही लेंगी।? ” अब शीतल कैसे कहें कि ऐसे भारी कामदार साड़ी और ब्लाउज क्या घर में पहन कर रहा जा सकता है? शीतल कुछ नहीं बोल पाती और वे लोग अपने सारे कपड़े साड़ी, ब्लाउज, शॉल, वेटर सब कुछ शीतल को थगा जाती। हाँ कभी कभी उन उतरे हुए। कपड़ी के साथ एकाघ नई साड़ी भी रख देती औरशीतल सब खुशी खुशी स्वीकार कर लेती।
आखिर करती भी क्या? बचपन से ही वो ऐसी ही थी। कभी भी नखरे करने की आदत नहीं थी उसे गाँ पापा अपनी पसंद से जो भी ला देते वो पहन लेती। पर हाँ शादी के पहले किसी के उत्तर कपड़े कभी नहीं पहने उसने कभी जरूरत ही नहीं पड़ी। कम ही कपड़े होते उसके पास पर सब अच्छे होते थे।
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फिर शादी हो गई। शीतल ससुराल आ गई। आकाश का अपना बिजनेस था। शीतल की जिंदगी अच्छे से गुजर रही थी। दो साल के बाद ही शीतल की गोद में नन्हा अनुराग आ गया। तभी परिवार में किसी की शादी नहीं, जराने शीतल और आकाश को ही जाना था। तब जेठानी ने अपनी कुछ अच्छी साड़ी उसे देकर कहा कि शादी में जा रही हो तो दो चार और साड़ियों रख लो। ये तुम पर अच्छी लगेगी। “शीतल ने भी सोचा, क्या हर्ज है, आखिर भागी मेरी बड़ी बहन के जैसी है। उनके कपड़े तो में पहन ही सकती हूँ।
और फिर उसके बाद जब भी कोई ऐसा मोका आता तो दोनों जेठानी अपने कपड़े शीतल को दे दिया करती। आकाश भी कभी बुरा नहीं मानते। परंतु देने के बाद वे लोग कभी वापस नहीं लेती। दोनों का मायका काफी संपन्न था। पति भी अच्छी नौकरी में थे। पर शीतल ओर आकाश का साथ ज्यादा दिनों तक न रह सका। एक दुर्घटना में आकाश को खोने के बाद शीतल बहुत कमजोर पड़ गई। उसके सामने सबसे बड़ी समस्या थी बेटे की अच्छी परवरिश ओर अच्छी शिक्षा। उसने आकाश के बिजनेस को ही चलाने की कोशिश की।
पर अकेली वह क्या करती। बहुत अच्छा तो नहीं पर इतनी आमदनी हो जाती जिसमें दोनों माँ बेटे खर्च निकल जाता। अनुराग की उच्च शिक्षा के लिए शीतल पैसे बचाती। ऐसे में अच्छे कपड़ों के लिए तो सोच ही नहीं पाती। पर आकाश की। बहनें और भाभियां उन दोनों को बहुत मानती। हर त्योहार या जन्म दिन पर वे शीतल और अनुराग के लिए कपड़े लाती। पर शीतल के लिए ज्यादातर पुरानी साड़ियां ही होती। शीतल भी खुश हो कर पहनती। देखते देखते अनुराग की पढ़ाई पूरी हो गई। उसने एक अच्छी कंपनी में नौकरी जॉइन कर ली।
अब शीतल के पास पैसों की कमी नहीं थी। अनुराग ने अपनी पहली कमाई से घर के सभी सदस्यों के लिए कपड़े लाये और साथ ही शीतल के लिए भी। उसे माँ का पुरानी साड़ी पहनना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। पर वह परिस्थिति समझता था। शीतल भी अब उनलोगों के दिये कपड़े नहीं पहनना चाहती थी, पर अब मना करे तो कैसे? शीतल कुछ कह नहीं पाती और ये सिलसिला बदस्तूर जारी था। कुछ साल और बीते। और अब अनुराग की शादी भी तय हो गई। इस बार भी सबने शीतल के लिए कपड़े लाए। शीतल ने चुपचाप रख लिए।
पर शादी वाले दिन जब उसने ननद की दी हुई पुरानी साडी पहनी तो अनुराग भड़क गया। पूरे परिवार के सामने उसने माँ को किसी की दी हुई साड़ी पहनने से मना कर दिया और उसी वक्त माँ को लेकर बाजार चला गया। अभी बारात जाने में पाँच छह घंटे की देर थी। उसने शीतल की पसंद से कुछ साड़ियां खरीद कर उसी वक्त ब्लाउज सिलने दे दिया। कुछ पैसे ज्यादा लगे पर समय पर सिल कर तैयार हो गया। घर आने के बाद अनुराग ने साफ शब्दों में सबको कह दिया कि आज के बाद से भाँ किसी की उतरन नहीं पहनेगी।
रश्मि पीयूष