शांता बाई आज जल्दी ही काम से घर आ गई थी, उसे आज रोहतास के साथ बाजार जाना था। रोहतास के आते ही वह अपनी बचत के रुपए साड़ी के पल्लू में बांध बाजार को चल दी। एक बड़ी दुकान को देख रोहतास से बोली,” अजी क्यों न जहां से साड़ी लेई ले। हां हां कहते दोनों दुकान में घुस गए।
दुकानदार ने ढेरों साड़ियां दिखाई किंतु कुछ उन्हें पसंद न आए तो कुछ की कीमत ज्यादा।
अब दुकानदार भी थक चुका था।वह बोला,” माई साड़ी लेनी है या यूं ही वक्त बिताने आई हो।पैसे भी है क्या इतने?
अपनी साड़ी के पल्लू को दबाते हुए शांता बाई बोली,” है बेटा… मगर इतने भी नाही… तोहार साड़ी बहुते महंगी है। तो माई क्यों टाईम खोटी कर रही है,” दुकानदार बोला। किसी छोटी मोटी दुकान से लेई लो जाकर।
वो बोली बेटा, मालिक लोग की बिटिया की सादी है हल्की साड़ी केइसन दे देई। तुम जरा दिखना में अच्छी लगे और थोड़ी कीमत ठीक हो ,बो दिखाई देइयो।
तभी उसे एक साड़ी पसंद आ गई जो 2000 रूपए की थी। साड़ी को देख शांता खुश हो गई।अगले ही पल वह सोच में पड़ गई कहां मालिक लोग और कहां उसकी ये मामूली साड़ी। घर आकर वह रोहतास से बोली,” लिछमी के बापू । मन में भय सा है कि मैम साहिब और बिटिया साड़ी को देखे के इहां ही पटक देई। अरे चिंता ना करी ।
शांता बाई अगले दिन साड़ी ले मालिक के घर आ गई। सब रिश्तेदार को बढ़िया से बढ़िया साड़ी पहने देखा ….।
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उसे देख शुभ्रा बोली,” अरे शांता आज देर कैसे कर दी। चल अब जल्दी से इधर आ। जी मैम साहब ,कहते शांता बाई अपनी लाई साड़ी को रसोई में काम करती शीला को संभला शुभ्रा के साथ आयुषी के कमरे की ओर चल दी।
आयुषी का कमरा मेहमानों के लाए कपड़ो लत्तों से और तोहफों से भरा पड़ा था। उन कीमती तोहफों के आगे शांता बाई को अपनी लाई साड़ी तो बहुत हल्की लग रही थी। वह मन ही मन खुद को कोसने लगी कि काश मेहमानों के आने से पहले ही वह आयुषी बिटिया को साड़ी दे देती। अब सब के बीच साड़ी को लेकर उसकी कितनी बेइज्जती होगी। पर वह करती भी क्या जब से बिटिया की शादी फिक्स हुई तब से उसे मैम साहब के घर देर तक रुकना पड़ता था।
सब काम खत्म कर वह अपनी लाई साड़ी को सबके सामने हिचकते हुए देते हुए बोली,” मैम साहब । बिटिया के लिए लाई हूं। ज्यादा कीमती तो नही , मगर……कह वह रुक गई ।
तभी शुभ्रा की भाभी हंसते हुए बोली,” अरे शांता बाई। अब हमारी लाडली क्या तुम्हारी साड़ी पहनेगी ? उसने शांताबाई की साड़ी को हिकारत से देखते हुए कहा। उसकी बात से कुछ मेहमान हंस पड़े।
तभी शुभ्रा बोली,” भाभी। उपहार की कीमत नही देने वाले का दिल देखा जाता है। लाइए शांता बाई। दीजिए आपकी लाई ये साड़ी बहुत कीमती है। क्योंकि इसमें आपका प्यार और ढेरों आशीष भी हैं।
तभी आयुषी भी उस साड़ी को हाथ में लेते हुए बोली,” आप सही कह रहे हो मम्मी।शांता मौसी के हाथों ही मैं पली बढ़ी हूं और मौसी आपकी ये साड़ी मेरे लिए अनमोल है । मैं इसे जरूर पहनूंगी। ऐसा कह उसने साड़ी को अपने सीने से लगा लिया। शांता बाई की आंखे खुशी से भर गई ।
पूनम भारद्वाज