उपहार (भाग-4) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi

” हे भगवान क्या करूॅ मैं?” लेकिन ऑफिस आते ही वह सब कुछ भूल जाता। मन के चोर को छुपाने के लिए वह अहिल्या और बच्चों से कुछ अधिक ही प्यार का प्रदर्शन करने लगा –

”   क्या बात है आजकल आप कुछ अधिक ही रोमाण्टिक होते जा रहे हैं ? इस अतिरिक्त मेहरबानी का कारण जान सकती हूॅ क्या?” अहिल्या की प्यारी सी मुस्कान।

” तुम महिलाओं को समझ पाना बड़ा मुश्किल है। अधिकतर स्त्रियों को यही शिकायत रहती है कि पति अनरोमांटिक हैं, प्यार नहीं करते और तुम्हें मेरे प्यार करने से शिकायत है।  अरे सारी जिंदगी रोमांस करने के लिए सात फेरों का प्रमाण पत्र मिला हुआ है हमें। समाज स्वीकृत  कानूनी और सामाजिक अधिकार है मेरा ।” उसे बाॅहों में भरते  हुये  खोखली हॅसी हॅस दिया वह।

उसने यह भी अनुभव कर लिया कि दक्षिणा के मन में भी उसके लिए कुछ विशिष्ट भाव हैं। आत्मीयता का कोई तार जुड़ गया था। अपनेपन का अदृश्य सेतु बन गया था उन दोनों के बीच।

वैसे तो दक्षिणा बहुत सतर्क रहती थी लेकिन फिर भी काम करते समय अनजाने में कभी हल्का सा भी हाथ का स्पर्श हो जाता है तो मानो उसका सारा दिन ही महक जाता।  दक्षिणा की नजर बचाकर वह न जाने कितनी बार अपने पागलपन में चुपके से उसकी साड़ी का पल्लू या दुपट्टे का कोना होठों से छू लेता।

मित्र के यहां पार्टी में जाने के लिए अहिल्या तैयार होकर आई तो वह देखता ही रह गया। अहिल्या हल्के से मुस्कुरा दी – ” क्या देख रहे हो? जानती हूॅ कि बहुत सुंदर लग रही हूॅ ।”

” यह साड़ी••••• मुकुल का कंठ सूख गया। यह साड़ी तो उसने दक्षिणा को पहने  देखा था। मुकुल ने आगे बढ़कर उसे अपनी बाहों में भरकर भींच  लिया। इस समय उसके ख्यालों में कोई और ही था ।

” क्या करते हो? सारा मेकअप खराब हो जाएगा।”

”  पार्टी की ऐसी तैसी ।अब कहीं नहीं जाना है मुझे। बहुत तरसाती हो तुम। आज तो मेरी प्यास बुझ जाने दो।”  उसके अधरों पर झुकते हुए वह जैसे नशे में बोल रहा था। अहिल्या खिलखिला कर हॅस पड़ी।

”  मिस्टर मुकुल, होश में आइये। रोमांस के लिए पूरी रात पड़ी है। लौटने के बाद आकर कर लीजिएगा।” मुकुल जैसे सोते से जगह यार मूड खराब करके रख दिया है अहिल्या ने हॅसते हुये कहा – ” तुम्हारा मूड भी अजीब है समय – असमय कुछ नहीं देखता।”

”  अपनी पत्नी को प्यार करने के लिए समय और  असमय क्या देखना।” मुकुल ने अपने को पूरी तरह सम्हाल लिया।

घर लौट कर कपड़े बदलते समय अहिल्या खुद ही बताने  लगी – ” यह साड़ी मैंने और दक्षिणा ने अपनी दोस्ती की यादगार के रूप में एक सी खरीदी है।”

अहिल्या ने यह भी बताया कि दक्षिणा जब भी ऑफिस से आधे दिन की छुट्टी लेती है वह अहिल्या और बच्चों के साथ होती है।

” लेकिन तुमने कभी यह बात आज तक मुझे बताई नहीं।” ” उसने मना किया था और अब भी आप  उसे पता मत लगने देना कि तुम्हें कुछ पता है।”

”  इसमें छुपाने जैसी क्या बात है?  उसे परिवार सहित अपने घर बुलाओ।  हम लोग भी उसके घर चलेंगे।”

” न वह अपने घर हमें बुलाना चाहती है और न ही मेरे घर आना चाहती है। हम जब भी मिलते हैं बाहर ही मिलते हैं। इसी बहाने हमने लखनऊ के पर्यटन स्थल भी देख लिये ।हर बार हम नई जगह मिलते हैं। वैसे मैं तो उसके साथ बोर ही हो जाती हूॅ। वह तो बच्चों के पीछे ही दौड़ती रहती है । बच्चे उससे बहुत खुश रहते हैं।”

”  तुमने उससे पूछा नहीं कि वह अपने घर हमें क्यों नहीं बुलाती है।”

” पूछा था लेकिन उसने बस इतना बताया उसकी कुछ मजबूरियाॅ हैं जिनके चक्कर में वह प्राप्त हुई खुशी के पल बर्बाद नहीं करना चाहती । फिर मैंने कभी उसके परिवार के विषय में कभी  नहीं पूछा।  बस इतना मालूम है उसके बूढ़े माता-पिता कानपुर में रहते हैं और अभी उसके बच्चे नहीं है। आगे उसने कुछ नहीं बताया‌। केवल इतना ही कहा कि इससे अधिक कभी कुछ न पूॅछना।  सच मुकुल दक्षिणा बहुत अच्छी है। एक बार मना करने के बाद मैंने कुछ नहीं पूॅछा। उसके जैसा प्यारा दोस्त मैं खोना नहीं चाहती। हम जब मिलते हैं, उसे पल का खूब आनन्द उठाते हैं। उसे समय उसको देखकर तुम विश्वास नहीं करोगे कैसे खिलखिलाते हुए बच्चों के साथ खेलती रहती है।”

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उपहार (भाग-5) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi

बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

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