उपहार (भाग-3) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi

दोनों की सीट अगल-बगल हो गई। दक्षिणा और मुकुल ने जब कार्य शुरू किया तो सबसे अधिक परेशानी उन्हें हुई जो रिश्वत देकर गलत सुविधा पाने के आदी हो चुके थे। रिश्वत के प्रलोभनों के दाने फेक जाने लगे।  शीघ्र ही सबको समझ में आ गया कि यदि उनके द्वारा प्रस्तुत किये गए सभी कागजात सही है तो उनका काम नियमानुसार स्वत: हो जायेगा।

उन्हें किसी प्रकार की रिश्वत या सिफारिश  की आवश्यकता नहीं है जबकि गलत होने पर वह कितना भी प्रयत्न कर ले दक्षिणा मैडम उनका काम नहीं होने देंगी । शुरू में सबको काफी परेशानी हुई लेकिन बाद में सभी लोग इस व्यवस्था की प्रशंसा करने लगे –  विशेष रूप से छात्र, घरेलू महिलाये और कम आय वाले लोग क्योंकि कर्ज की राशि कम होने के कारण वे लोग अधिक रिश्वत नहीं दे पाते थे और उनका काम नहीं हो पता था।

दक्षिण खुद तो बहुत मेहनती थी ही उसके साथ मुकुल को भी बहुत काम करना पड़ता था। मुकुल ने कभी इतना काम नहीं किया था। लगातार आठ – दस घंटे काम करने के बाद वह घर पहुॅच कर बिल्कुल पस्त हो जाता था ।अहिल्या से कहता – ”  यार, यह दक्षिणा तो मुझे काम करा कराकर मार ही डालेगी। न खुद चैन लेती है न लेने देती है।”

जिन गरीब लोगों की बहुत सी पुरानी फाइलों को अनावश्यक  कारण बताकर निरस्त कर दिया गया था उन्हें दोबारा निकाल कर दक्षिणा ने उन्हें भी बुलाया और उन्हें कर्ज दिलवा दिया। साथ उन्हें ने यह भी समझाया कि वे यदि निश्चित समय के अंदर कर्ज चुका देंगे तो उन्हें पूरा कर्ज नहीं देना पड़ेगा उन्हें काफी छूट मिलेगी। वे सब खुश होकर दोनों को बहुत आशीर्वाद देते।

धीरे-धीरे दोनों ने मिलकर पहले का इकट्ठा काम समाप्त कर लिया और अब सामान्य ढर्रे पर कार्य की गाड़ी चलने लगी।

अब दोनों में बराबर बात होने लगी – ” अब काफी दिन हो गये। अब अपने बीच से यह ” आप” और ” जी ” को विदा कर दीजिये। “

” मैं प्रयत्न करूॅगी लेकिन आपको इस औपचारिकता का पालन करने की बाध्यता नहीं है बल्कि आप मेरा नाम लेकर बुलायेंगे तो मुझे बहुत खुशी होगी।” मुकुल तो जैसे प्रतीक्षा ही कर रहा था इस बात का।

उस दिन के बाद से दक्षिणा ने मुकुल के नाम में ” जी ” लगाना कम कर दिया।

एक दिन पता नहीं क्यों,दक्षिणा कहने लगी – ” मुकुल जीवन की पहेली भी कितनी विचित्र है जो हम पाना चाहते हैं वह सदैव हमारे पहुॅच और सामर्थ्य से दूर रहता है और जो हमें मिल जाता है कभी-कभी उसे एक पल भी सहन करना मुश्किल होता है। काश! हम सबको इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त होता।”

मुकुल हॅस पड़ा – ” एक ही व्यक्ति को मिला था यह वरदान लेकिन उसने इतिहास का महानतम अपराध कहो या पाप अपनी ऑखों के सामने घटते हुये देखा लेकिन मरना नहीं चाहा। कुलवधू के वस्त्रहरण से नीच दृश्य क्या होगा क्यों नहीं किया उस समय मृत्यु का आवाहन? अर्जुन के बाणों से भी बिद्ध होकर भी जीवन की लालसा नहीं मिटी? शरशैय्या में पड़े रहकर अपने ही वंश का विनाश बूढी ऑखों से देखने के स्थान पर क्यों नहीं मृत्यु स्वीकार की।कहना आसान है लेकिन मरना कोई नहीं चाहता।”

”  मैं मरना चाहती हूॅ।” दक्षिणा का ठंडा स्वर।

” अभी तो अच्छी भली थीं अचानक अबनॉर्मल कैसे हो गई हैं? दौरे वगैरह पड़ते हैं क्या तुम्हें?”  इस बात पर मुकुल के साथ दक्षिणा भी हॅस दी।

मुकुल की समझ में नहीं आ रहा था कि किशोर अवस्था की आयु वाली यह हलचल उसके हृदय को क्यों बेचैन करती रहती है ? आज तक अहिल्या को छोड़कर अन्य किसी स्त्री के प्रति ऐसे भावों ने कभी उसके हृदय का स्पर्श नहीं किया था ।अहिल्या ही उसका पहला और आखिरी प्यार है। बेहद प्यार करता है वह उसे।‌ सुख और प्यार में उसका दाम्पत्य भीगा रहता है ‌। सात साल के बेटे कुंदन और चार साल की  बिटिया मणि में प्राण बसते हैं उसके।  अपने परिवार के प्रति प्यार और परवाह में अभी भी कोई कमी नहीं है। 

फिर दक्षिणा ने उसके मन की शान्ति कैसे हर ली?  ख्यालों और सपनों में छा गई है वह।  प्यार का घुमड़ता हुआ सागर जैसे दक्षिणा को अपने में समेट लेना चाहता है हमेशा के लिये। एक अजीब सा नशा उसकी ऑखों में डेरा जमा कर बैठ गया।  साथ ही एक भय भी मन को आन्दोलित करने लगा – कहीं अहिल्या के समक्ष सब स्पष्ट न हो जाये।  कहीं सब कुछ जानकर  अहिल्या का विश्वास और दिल दोनों ना टूट जाये। यदि ऐसा हुआ तब क्या वह हमेशा के लिए अपनी ही नजरों में नहीं गिर जाएगा?  क्या यह अनैतिक नहीं है?

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उपहार (भाग-4) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi

बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

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