उपहार (भाग-1) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi

जब से अहिल्या दक्षिणा से मिलकर आई है मुकुल का मन बार-बार कर रहा है कि वह चुपचाप जाकर दूर से दक्षिणा को देख आये । दक्षिणा की प्यारी हॅसी उसके कानों में गूॅज रही थी, नेत्रों की तरलता साकार रूप धरकर  बाॅहें फैलाए उसके गले लगने को आतुर थीं, राज को छुपाने वाले बन्द अधर सामने नृत्य कर रहे थे।

काश एक बार उससे कुछ कह पाता ,उसे देख पाता, उसकी कुछ सुन पाता। वह जीवित मछली के कटे हुये टुकड़े की तरह तड़प रहा है। कुछ न  कर पाने की विवशता से छटपटा रहा है दक्षिणा के लिये  –

” मुझसे इतना नाराज मत हो दक्षिणा। कुछ तो बोलो – भले ही कटु हो, भर्त्सना हो। कुछ तो कहो। तुम ही बताओ क्या करूॅ मैं ? सारे प्रोजेक्ट, सारी रिपोर्टें तैयार करने में साथ दिया है तुमने, फिर आज इस मोड़ पर लाकर अकेले कैसे छोड़ दिया?”

मुकुल जब देहरादून से स्थानान्तरण होकर बैंक आफ इंडिया, लखनऊ की अलीगंज शाखा में आया तो उसका जरा भी मन नहीं लगता था‌।  काम इतना ज्यादा था कि सांस लेने की भी फुर्सत नहीं थी। बगल की सीट पर बैठे व्यक्ति से भी बात करना मुश्किल था। कुछ अपनी लखनवी नजाकत में रहते थे। उस जैसे नये व्यक्ति से उम्मीद की जाती थी

कि वह बार-बार उनकी वरिष्ठता का सम्मान करें चाहे वे अयोग्य भले ही हो। उसकी शाखा में ज्यादातर अधिक उम्र के लोग ही थे जो आपस में बात करना अधिक पसंद करते थे।  बस पहले ही दिन की मीटिंग में सबसे परिचय हुआ था।उसके बाद आते जाते केवल “अभिवादन”  और ” हाय ” ••••• ” हेलो ” ••••तक सीमित ।  सब अपने-अपने केबिन में कैद‌  शाम को फिर वही ” हाय ” ••••• ” हेलो “••••• और सब अपने अपने घर।

अहिल्या से कहा भी उसने  – ” यार, बहुत मनहूस जगह है यह। काम के बोझ के कारण हर व्यक्ति मशीन की तरह केवल भागता ही रहता है और ये अधिक उम्र वाले लोग तो हम युवाओं को कामचोर की नजर से देखा करते हैं। उनके जमाने में कम्प्यूटर नहीं था तो हम क्या करें? उस समय बैंकों में काम भी तो कम था।”

मुकुल के स्वर में खीझ सी थी। अहिल्या धीरे धीरे मुस्कुरा रही थी और मुकुल झल्ला रहा था – ” सुबह से शाम तक साथ काम करके भी किसी के सुख – दुख का पता नहीं लगता है। देहरादून बहुत याद आता है।”

अहिल्या खिलखिला कर हॅस पड़ी – ”  अभी नई जगह है इसलिए ऐसा लगता है। कुछ दिनों बाद यही ऑफिस अच्छा लगेगा। लोगों से जान पहचान हो जायेगी। मुझे तो बहुत अच्छा लगता है।”

”  आपको तो अच्छा लगेगा ही मेमसाहब, आपका मायका और ससुराल पास में जो हो गया है। कभी भी कोई आ सकता है और कभी भी आप जा सकती है।”  मुकुल ने नकली नाराजगी से घूरा।

”  और क्या मेरे तो मजे ही मजे है। ” अहिल्या ने हॅसते हुये अकड़ दिखाई।

उन्हीं दिनों बैंक ने अपनी स्थापना का पचासवां वर्ष पूरा किया। सभी शाखाओं को मिलाकर जो सांस्कृतिक कमेटी बनाई गई उसमें साहित्यिक और सांस्कृतिक अभिरुचि होने के कारण मुकुल और दक्षिणा भी सम्मिलित थे। तब उसकी दक्षिणा से दोस्ती हो गई। बहुत अच्छी लगी दक्षिणा उसे। उसके पहले केवल अभिवादन और ” हलो ” तक का आते जाते सामान्य परिचय ही था। कमेटी में और भी महिलायें और लड़कियाॅ थीं लेकिन जो सम्मान दक्षिणा का था वह किसी का नहीं था। इसका कारण था – उसका बहुत मेहनती और जिम्मेदार स्वभाव,

अधिक से अधिक दायित्व उठाने की तत्परता और लगन, किसी भी कार्य के प्रति समर्पण। उसके सरल और गरिमा पूर्ण व्यक्तित्व से दिखावा कोसों दूर था। लगातार काम करते हुये भी उसने कभी थकान या खीझ का प्रदर्शन नहीं किया। हॅसते मुस्कुराते हुये ही अपने दायित्व पूरे कर लेती।

दक्षिणा और मुकल की काम के प्रति जिम्मेदारी देखकर दूसरे लोग  लापरवाह होते जा रहे थे और धीरे धीरे सांस्कृतिक कार्यक्रम की सारी जिम्मेदारी इन्हीं दोनों पर आ गई‌। उसने अहिल्या को बताया –

” मैं तो बुरी तरह थक जाता हूॅ। समझ में नहीं आता दक्षिणा कैसे कर लेती है सब। उसके चेहरे पर न थकान दिखती है और न शिथिलता। असीम ऊर्जा का स्रोत है जैसे। न कोई बनावटीपन,न कोई दिखावा और न ही खूबसूरती का व्यर्थ प्रदर्शन। बात करने में सहज और सरल। काम के लिये जमीन पर भी बैठने में  परहेज नहीं है। न ही दिन में दस बार साड़ी की पर्तें  सम्हालनी पड़ती है उसे।”

” दूसरी महिलाएं और लड़कियां भी तो होगी। कार्यक्रम को सफल बनने की जिम्मेदारी तो सब पर है आप ही लोग क्यों इतनी मेहनत करते हैं?  अपने अधिकारियों से बोलिए।”  अहिल्या का कोमल स्वर।

”  उन्हें सब पता है और दक्षिणा ने खुद ही उन्हें आश्वस्त किया है कि उसके होते हुए किसी को चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। यही तो कारण है कि हमारी शाखा के अलावा दूसरी शाखा के लोग भी उसका बहुत सम्मान करते हैं। सबका कहना है कि दक्षिणा सब सम्हाल लेगी।” ” ठीक है तुम भी सम्मान तक ही सीमित रहना, दिल से मत लगा लेना।”

” तुमसे मिलने के पहले मिलती तो शायद सोचता भी। अब दिल से तो तुम लगी हो बेचारी दक्षिणा तो प्रवेश भी नहीं कर पायेगी।”

” अच्छा •••••बेचारी••••••।” अहिल्या ने तकिया फेंककर मुकुल को मारा तो उसकी खिलखिलाहट में अपने को शामिल करते हुए मुकुल ने उसे अपने समीप खींच लिया।

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उपहार (भाग-2) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral stories in hindi

बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

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