उम्र के आखिरी पड़ाव की कीमत – दिक्षा बागदरे : Moral Stories in Hindi

“वक्त बहुत महत्वपूर्ण होता है, कब वह हाथों से रेत की तरफ फिसल जाए पता ही नहीं चलता।” 

“समय अपनी गति से आगे ही बढ़ता जाता है और हम उम्र के उस पड़ाव पर आकर खड़े हो जाते हैं जहां से वापस पीछे जाना नामुमकिन होता है।”

शालिनी जी के यह शब्द सभागृह में गूंज रहे थे। जिस सभा का विषय था – “समय और उम्र।”

वह सभागृह लगभग 500 लोगों से भरा हुआ था। लगभग सभी की उम्र 50 से 70 के बीच होगी। 

अपनी उम्र के इस पड़ाव को कैसे जिया जाए इसी विषय पर चिंतन जारी था। सभी बारी-बारी से अपने विचार रख रहे थे।

वृद्धावस्था, वृद्ध आश्रम, पीढ़ी दर पीढ़ी होने वाले परिवर्तन, वैचारिक मतभेद, माता-पिता के बच्चों के प्रति कर्तव्य , जिम्मेदारी। बच्चों का माता-पिता के प्रति व्यवहार, उनके कर्तव्य और जिम्मेदारी।

सभी ऐसे कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर अपने विचार रख रहे थे। 

अब अपने विचार प्रकट कर रही थी शालिनी जी। शालिनी जी पढ़ी लिखी, समझदार और उच्च व्यक्तित्व की धनी महिला थी।

उनका वक्तव्य जारी था – कई माता-पिताओं को लगता था कि बच्चे अब उनकी कदर नहीं करते। बच्चों को अब उनकी जरूरत नहीं है। 

वहीं शालिनी के विचार इस सबसे बहुत अलग थे। अपने  इन्हीं विचारों को शालिनी जी आज सबके समक्ष रख रही थी। वह कहना चाहती थी कि लोग बदलते वक्त की नजाकत को समझें, वक्त उनसे क्या चाहता है ये जानें।

उन्हें लगता था कि बहुत से माता-पिता पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं।

अपने इसी पक्ष को वे कई उदाहरणों के माध्यम से समझा रही थी।

इस सभागृह में गरिमा और निशा दो सहेलियां भी उपस्थित थीं। दोनों की ही उम्र लगभग 55 बरस थी। गरिमा तो यहां आना ही नहीं चाहती थी। निशा जो कि उसकी बचपन की सहेली थी वही उसे यहां खींच लाई थी।

 गरिमा का मन पिछले कुछ दिनों से बहुत व्यथित था। उसके घर में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा था। उसकी बहू वाणी और बेटा राजेश दोनों ही नौकरी करते थे। उसका एक पोता और एक पोती क्रमशः 15,13 वर्ष के थे। बचपन से वह उन दोनों की देखभाल करती आ रही थी।

पहले घर में सब कुछ ठीक था। पिछले कुछ महीनों से घर का माहौल बिल्कुल ही बदल गया था। उसे यूं लगने लगा था जैसे कोई भी उसे पसंद नहीं करता। घर में बात-बात पर कलह होने लगी थी।

तभी निशा ने उसे जोर से हिलाया। गरिमा ओ गरिमा कहां खो गई।

देखो सुनो शालिनी जी कितने अच्छे से इतना कुछ समझा रही हैं। 

शालिनी जी बोल रहीं थी। ऐसा नहीं है कि आज के पीढ़ी हमें नहीं समझती। मगर हमें भी आज की पीढ़ी को समझना होगा। समय की कीमत को समझना होगा। परिवर्तन जीवन का नीयम है। हम सबको बदलते वक्त को स्वीकारना होगा।

उनके पास अगर समय नहीं है तो हम क्यों इस बात का रोना रोते रहें।

क्यों ये जताना जरूरी है हमने उन्हें कितना कीमती समय दिया है।

हम‌ ऐसा कुछ क्यों नहीं सोचते की जो समय हमारे पास अब है वो कितना  किमती है। जिसके लिए हम बरसों तरसें हैं। हमने जीवन में जितने भी समझौते किए हैं वो उस समय की मांग थी।

हमने हमारे कर्तव्य जी जान से पूरे किए। मैं यह नहीं कहती कि हर घर एक जैसा होगा। सबकी अपनी-अपनी समस्याएं हो सकती हैं।

मगर मेरे विचार से केवल समस्याओं का रोना रोकर हम अपने जीवन में खुशियां नहीं पा सकते।

आइए आज मैं आपका परिचय कराती हूं अपनी “उमंग” से। आप लोग सोच रहे होंगे कि यह “उमंग” क्या है???

तो सुनिए उमंग वह आशा है जिसे आप अपने अतीत में कहीं पीछे छोड़ आए हैं। 

उमंग उन साथियों का समूह है जो आप ही की तरह है। सभी साथी मिल पर अपनी -अपनी रुचियों के अनुसार  कुछ हुनर सीखते हैं और कुछ सिखाते हैं। खुशियां बांटते हैं।

हमारे बहुत सारे ऐसे शौक रहे होंगे जो हम तब पूरे नहीं कर पाए। वो हम अब कर सकते हैं।

जब वह यह सब बोल रही थी। गरिमा मंत्र मुग्ध हुए सुने जा रही थी। उसे लग रहा था कि जैसे कोई उसे अंधेरे से उजाले की ओर खींच रहा है। जिस राह की उसे तलाश थी वह राह उसके सामने है।

आप में से जो भी साथी इस समूह का हिस्सा बनना चाहते हैं उन सभी का स्वागत है। आप सभी से उम्मीद है कि अपने जीवन के किमती समय को आप लोग पहचानेंगे। इतना कहते हुए शालिनी जी ने अपना वक्तव्य समाप्त किया।

पूरा सभागृह तालियों की गूंज से गूंज उठा।

शालिनी जी एक सामाजिक कार्यकर्ता थी। उम्र के इस अंतिम पड़ाव पर अवसाद से घिरे लोगों को जीवन जीने की उमंग देने का कार्य वे बरसों से कर रहीं थीं।

इसी के साथ सभा समाप्त हुई।

बाकि सब का तो पता नहीं, मगर गरिमा जरूर मन में ठान चुकी थी अब वो अपने कीमती समय को उमंग के साथ जिएगी। गरीमा मन ही मन सोच रही थी सच ही तो है “बीती ताहि बिसार दे, अब आगे की सुध लें।”

आज शालिनी जी का वक्तव्य ना जाने कितनों को यह सिखा गया था की उनके जीवन का यह अंतिम पड़ाव भी बहुत कीमती है। उनके हाथों में है कि  वे इस समय को किस तरह से जीएं।

स्वरचित 

 दिक्षा बागदरे 

#कीमत

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!