उम्मीदों का दिया बुझने मत देना

सुनीता और उसकी ननद नैना की शादी एक साथ ही हुई थी और किस्मत से दोनों एक साथ ही मां बनने वाली थी।  नैना के ससुराल में उसकी सास नहीं थी बस उसके ससुर और उसके हस्बैंड थे इसलिए नैना को नैना की मां यानी कि सुनीता की सास ने अपने पास ही बुला लिया।

सुनीता की सास ने शहर के कई  डॉक्टरों से लिंग जांच करवाने के लिए अपनी बहू और बेटी को लेकर गई लेकिन सब ने लिंग बताने से मना कर दिया और बोले माँ जी यह कानूनन अपराध है लेकिन सुनीता की सास पुरानी ख्यालों की थी  वह ऐसे मानने वाली तो थीं नहीं। अब उसके पास एक ही रास्ता था कि अपनी बहू और बेटी को किसी तांत्रिक के पास ले जाए और उन्होंने ऐसा ही किया। किसी ने बताया कि इसी शहर में एक बंगाली बाबा रहता है और वह औरत के  पेट देखकर यह बता देता है कि औरत के गर्भ में पलने वाला बच्चा लड़का है या लड़की।

फिर क्या था  सुनीता की सास ने  दोनों को लेकर उस तांत्रिक के पास पहुंच गए तांत्रिक ने अपनी भविष्यवाणी में यह बताया सुनीता की ननंद को बेटा होगा और सुनीता को बेटी पैदा होगी ।



उसके बाद तो सुनीता की जिंदगी में जैसे भूचाल ही आ गया उस दिन के बाद से सुनीता के सास ने सुनीता की देखभाल करना छोड़ दी।  वह पूरे दिन अपनी बेटी में लगी रहती थी और दिन भर सुनीता को ताने देते रहती थी पहली बार इतने सालों बाद माँ भी बनने जा रही है तो बेटी को जन्म देने जा रही है।   सुनीता अपने सास से कह दी मां जी इसमें मेरा क्या दोष है बच्चे तो भगवान के देन होते हैं। तो सुनीता के सास ने पलट कर जवाब दे दिया “भगवान कि नहीं सब तुम्हारी देन है।”  अभी भी समय है जाकर अबॉर्शन करवा लो। सुनीता बोली कुछ भी हो मैं अपने बच्चे को जन्म जरूर दूँगी। सुनीता की सास एक दिन तो सुनीता के पति महेश यानी अपने बेटे से से भी कह दिया कि बेटा अभी भी समय है जाकर बहू का अबॉर्शन करवा दो बेटी जन्म देने से तो अच्छा है मां न ही बने।  महेश बोला मां तुम यह कैसी बात कर रही हो बेटा और बेटी में क्या अंतर है आजकल दोनों बराबर होते हैं जो काम बेटे करते हैं वह सारे काम आजकल बेटियां भी करती है।

सुनीता की सास सुनीता को अक्सर ताना मारती रहती थी तुमने मेरे बेटे को भी फंसा लिया है पहले तो मेरी हर बात सुनता था अब तो हर बात में तुम्हारा पक्ष लिया करता है पता नहीं क्या पट्टी पढ़ाती रहती है।

महेश शाम को घर आता तो बहुत सारे फल खरीद कर लाता और अपनी पत्नी सुनीता से अपना ख्याल रखने के लिए कहता  था। लेकिन शाम को जैसे ही महेश फल ला कर रखता महेश की मां सारा फल उठाकर अपने बेटी के कमरे में रख देती।  सुनीता को तो मन करता था कि कई दिन अपने पति से इस बारे में बताएं कि उसे कुछ भी खाने को नहीं मिलता है सारा फल माँ जी आपके बहन के कमरे में रख देती हैं।  फिर सोचती थी सुनीता की ननंद का क्या कितना दिन रहना है थोड़े दिन बाद बेटा का जन्म होते ही वह चली जाएगी। लेकिन एक बार पति के बोल दूंगी तो जीवन भर के लिए आपस में मनमुटाव हो जाएगा लेकिन वह यह नहीं सोच रही थी कि इस समय गर्भ में पलने वाले बच्चे के लिए पोषक तत्व भरा खाना,  खाना बहुत जरूरी है सिर्फ दाल-चावल और रोटी खाने से कुछ नहीं होता।



समय बितता रहा महेश को भी इस बात का बिल्कुल भी भनक नहीं रहा कि घर में क्या हो रहा है नहीं हो रहा है उसे तो लगता था कि सब कुछ ठीक ही है।  माँ जो बोलती खरीद के ला देता था लेकिन महेश की मां अपनी बेटी को खिलाती रहती थी बहू को कुछ भी नहीं देती थी बस मिलता था बहू को तो बदले में ताना।

सुनीता भगवान से अक्सर यही प्रार्थना करती थी कि भगवान उस तांत्रिक की बात झूठ कर देना अगर सच में मुझे लड़की पैदा हो गई तो मेरे सास मुझे जीने नहीं देगी।

आखिर वह दिन आ ही गया सुनीता और उसकी ननद दोनों को एक साथ ही शहर के एक मशहूर  हॉस्पिटल में भर्ती करा दिया गया था। जो ईश्वर को मंजूर होता है वही होता है और सच में ऐसा ही हुआ सुनीता की ननंद को बेटा पैदा हुआ और सुनीता को बेटी पैदा हुई।  बेटी पैदा हुई, यहां तक तो ठीक था लेकिन बेटी भी विकलांग पैदा हुई क्योंकि सुनीता ने सही तरीके से पोषक भोजन नहीं किया था इस वजह से उसकी बेटी विकलांग पैदा हुई।

जब सुनीता को यह बात पता चला तो सुनीता खूब रोने लगी और भगवान आपने बेटी भी दी तो विकलांग दे दी अब तो मेरी सास मुझे जीने नहीं देंगी।  लेकिन महेश सुनीता को बहुत प्यार करता था महेश ने सुनीता को हिम्मत दिया कोई बात नहीं सुनीता हम अपनी बेटी को बहुत पढ़ाएंगे और इतना आगे ले जाएंगे कि उसे अपनी विकलांगता को कभी कमजोरी होने का एहसास ही नहीं होगा।  अपने पति महेश की बातों से सुनीता को बहुत हिम्मत मिला और कुछ दिनों बाद सुनीता और उसकी ननंद हॉस्पिटल से घर आ गए।

अब तो सुनीता की’ सास पूरे दिन अपनी बेटी के बेटे में ही लगी रहती थी उसे थोड़ा सा भी ख्याल नहीं होता था उसी  घर में उसके खुद के बेटे की बेटी भी जन्म ली है और उसका भी सेवा करना है। जैसे-तैसे करके सुनीता अपनी बेटी का ख्याल रखती थी।  1 दिन सुनीता ने अपने पति महेश से कहा कि मुझे कुछ दिनों के लिए मेरे मायके में पहुंचा दो।



महेश भी अब  सब कुछ समझ चुका था लेकिन वह करे तो क्या करें अपनी मां से लड़ाई भी तो नहीं कर सकता था नहीं तो उसकी बहन बुरा मान जाएगी आखिर उसके ससुराल में भी तो कोई नहीं है करने वाला।  

महेश अपनी पत्नी सुनीता को उसके मायके पहुंचा दीया।  सुनीता अपने मायके जाकर अपनी मां से हर बात बता दी सुनीता की मां ने कहा जब इतना तकलीफ था तो पहले क्यों नहीं यहां पर आ गई जब फोन पर मेरी तुम्हारी बात होती थी तो तुम मुझे  कुछ नहीं बताती थी। बोलती थी सब कुछ ठीक है। बताओ पहले अगर तुम यहां आ जाती तो आज तुम्हारी बेटी कम-से-कम विकलांग तो नहीं पैदा होती। चलो लड़की हो गई उससे कुछ नहीं होता है लड़का लड़की तो सब भगवान की मर्जी है।  सुनीता रो-रो के अपनी मां से कहने लगी मां मैं तुमसे क्या क्या बताती। कहने को तो मेरा ससुराल है लेकिन कभी भी मुझे अपने ससुराल जैसा महसूस नहीं होता है कई बार तो मन किया कि महेश से सब कुछ बता दूं लेकिन फिर सोचती थी कि मां बेटे में लड़ाई हो जाएगी इस वजह से चुप हो जाती थी।  सुनीता की मां बोली तुमने यह गलत किया हर चीज की एक सीमा होती है जब पानी सर से ऊपर बहने लगे तो कुछ ना कुछ उपाय करना ही होता है और तुम ने जानबूझकर अपनी जिंदगी को खराब किया और इस बच्ची की जिंदगी भी। मैं तो दमाद जी आएंगे तो सब कुछ बताऊंगी।

नहीं मां उनको कुछ मत बताना वह बहुत सीधे हैं और मुझे लगता है उनको सब पता भी है लेकिन वह करे भी तो क्या करें।

सुनीता 6 महीने अपने मायके में ही रही और उसके बाद अब अपनी ससुराल चली गई थी।  लेकिन अभी भी सुनीता की ननंद यही पर थी। कुछ दिन के बाद ही सुनीता की सास की बहन यानी महेश की मौसी बच्चों को देखने आई हुई थी।  वो भी सुनीता की ननंद के लड़के को खूब प्यार करती थी और सुनीता के लड़की को तो एक बार भी छुआ तक नहीं।



एक दिन  घर के बाहर धूप में सुनीता की ननंद नैना, सुनीता की सास और सुनीता की सास की बहन बैठे हुए थे और आपस में बात कर रहे थे सुनीता की सास की बहन नैना को कह रही थी कि एक तुम्हारा बेटा है जो देखने में बिल्कुल ही राजकुमार जैसा लगता है और एक महेश की बेटी है पता नहीं उसे कौन शादी करेगा।  एक तो विकलांग भी है और ऊपर से सांवली भी। तभी नैना बोल उठी मौसी जी जैसी मां रहेगी वैसे ही तो बेटी पैदा होगी हमें तो शुरू से ही सुनीता भाभी पसंद नहीं थी लेकिन भैया को ना जाने भाभी मैं क्या दिख गया जो भाभी को पसंद कर लिए। आपको बताते चलें कि हां सुनीता बिल्कुल गोरी तो नहीं थी सांवली जरूर थी लेकिन नैन नक्श इतने कटीले थे कि कोई भी एक बार देखे तो सुनीता से प्यार हो जाए।  और फिर सुनीता एम कॉम की पढ़ाई की हुई थी। महेश भी साधारण लड़का था इस वजह से सुनीता को एक ही नजर में पसंद कर लिया उसे ज्यादा हाई-फाई लड़कियां पसंद नहीं थी।

 

समय के साथ ही सुनीता की लड़की भी बड़ी होने लगी और उसकी ननद नैना का लड़का भी बड़ा होने लगा नैना की ननंद का लड़का जब भी गर्मी की छुट्टियों में आता सुनीता के सास ऐसा करने लगती जैसे उससे खूबसूरत इस दुनिया में कोई लड़का ही ना हो। अब सुनीता की लड़की मैट्रिक में पढ़ रही थी उसे अब सब कुछ एहसास होने लगा था कि उसकी दादी उससे प्यार नहीं करती है और ना ही उसकी बुआ यहां तक कि सुनीता की सास ने अपने सारे रिश्तेदारों में भी सुनीता के बारे में बुराई कर कर के सबसे अलग कर दी थी।  सबको यह दिखा दी थी कि सुनीता बहुत बुरी बहू है। सुनीता कितना भी करती थी लेकिन कभी भी सुनीता की सास उसकी अच्छाई किसी को नहीं बताती थी।

सुनीता लेकिन अपनी बेटी से बहुत प्यार करती थी और महेश भी अपनी बेटी से बहुत प्यार करता था।  कई बार तो नैना का लड़का जानबूझकर सुनीता की लड़की का मजाक बनाता था क्योंकि एक पैर से सुनीता की लड़की विकलांग थी इस वजह से नैना का लड़का विकलांग होने की एक्टिंग करता और सुनीता की लड़की को चिढ़ाता रहता था।  आखिर कोई कब तक बर्दाश्त कर सकता है सुनीता की लड़की के अंदर भी नकारात्मक भाव घर कर चुके थे अकेले में घुटती रहती थी।



महेश यह महसूस कर रहा था कि उसकी बेटी आजकल पहले की तरह खुश नहीं रहती है जरूर कुछ बात है महेश ने अकेले में अपनी बेटी से पूछा कि बेटी क्या बात है पहले तो तुम बहुत खुश रहती थी।  महेश की बेटी ने अपने पापा से सब कुछ बता दिया पापा मुझे कोई प्यार नहीं करता है मुझे नहीं रहना है यहां पर दादी भी मुझे हमेशा डांटते रहती हैं जैसे मैं इस घर की लड़की नहीं हूं।

महेश समझ गया था कि अब अगर अपनी बेटी का कैरियर बनाना है तो इस घर से दूर रखना पड़ेगा अपनी मां से दूर रहना पड़ेगा नहीं तो उसकी बेटी की जिंदगी खराब हो जाएगी एक तो पहले से ही वह विकलांग है।  महेश सोचा अपनी बेटी को इतना पढ़ाएगा कि उसकी विकलांगता अब कमी ना रहे लोग उसके हुनर से उसको पहचाने। इसके लिए महेश ने जानबूझकर अपना तबादला दिल्ली करवा दिया कि मां को भी यह एहसास ना हो कि वह घर छोड़कर जा रहा है और अपनी बेटी और अपनी पत्नी के साथ दिल्ली रहने लगा।

कहा जाता है कि भगवान इंसान के सभी दरवाजे बंद नहीं करता है अगर एक दरवाजा बंद करता है तो दूसरा दरवाजा खोल भी देता है कहने का मतलब यह है कि महेश की बेटी पढ़ने में शुरू से ही बहुत ही इंटेलिजेंट थी और यहां दिल्ली में महेश ने उसे एक अच्छे प्राइवेट स्कूल में एडमिशन करवा दिया था।  महेश की बेटी को डॉक्टर बनने का बहुत शौक था इस वजह से महेश ने अपनी बेटी को मेडिकल की कोचिंग करवाना शुरू कर दी और कुछ दिनों के बाद मेडिकल का एग्जाम क्वालीफाई किया और एक मेडिकल कॉलेज में एडमिशन हो गया।

4 साल बाद महेश की बेटी का जहां पर नैना का ससुराल था उसी शहर में एक सरकारी अस्पताल में हड्डी के डॉक्टर के रूप में नियुक्ति हो गई थी।  महेश की बेटी सब कुछ भूल चुकी थी बचपन में उसकी बुआ उसके साथ बुरा बर्ताव करती थी वह सोच रही थी कि अब शायद बुआ उसके साथ पहले जैसा बर्ताव ना करें। 1 दिन नीलिमा अपने बुआ के यहां गई।  लेकिन वहां जाने के बाद उसने महसूस किया कि बुआ के बर्ताव में कोई परिवर्तन नहीं हुआ था बल्कि उसके बुआ का बेटा भी नीलिमा के साथ सही से बात नहीं किया। नीलिमा ने सोच लिया अब वह कभी बुआ के घर नहीं आएगी।  थोड़ी देर बाद ही वह वहां से विदा होकर चली गई।



वह घर जा कर खूब रोइ और अपनी मां को फोन कर के  सब कुछ बताया उसकी मां ने कहा बेटी तुम नाराज ना हो कई लोगों का स्वभाव होता है बिच्छू की तरह वह कभी भी डंक मारना नहीं भूलते हैं लेकिन दूसरों के स्वभाव की वजह से हम अपना स्वभाव क्यों बदले।

नीलिमा अपनी मां से बात कर ही रही थी तभी उसी फोन पर हॉस्पिटल का फोन आ रहा था नीलिमा ने बोली मां तुम फोन रखो हॉस्पिटल से इमरजेंसी कॉल आ रहा है जैसे ही नीलिमा ने फोन उठाया हॉस्पिटल से सीनियर डॉक्टर का फोन था नीलिमा तुम जल्दी से हॉस्पिटल पहुँचो  एक इमरजेंसी केस आया है एक लड़के का एक्सीडेंट में पूरी तरह से पैर का हड्डी चकनाचूर हो गया है।

नीलिमा  जल्दी से अपना कार निकाला और हॉस्पिटल की तरफ चल दी। वह हॉस्पिटल पहुँचते ही इमरजेंसी वार्ड में गई जहां पर रोगी था वहां गई तो देखा  अरे यह तो मेरी बुआ का लड़का है जल्दी से अपने साथ 4 डॉक्टरों को को ऑपरेशन रूम में पहुंचने को बोल दी।

रात भर ऑपरेशन चला और ऑपरेशन कामयाब हुआ।  सुबह जब नीलमा के बुआ के लड़के को होश आया। और जब सामने नीलिमा को देखा तो बहुत शर्मिंदा हुआ जिसको वह मजाक बना रहा था आज उसी ने उसको एक नई जिंदगी दी नहीं तो वह पूरे जीवन दोबारा चल नहीं पाता।  

उसकी बुआ का लड़का शर्म से नीलिमा से नजरें नहीं मिला पा रहा था कि वह जिसे पूरी जिंदगी विकलांग कह कर मजाक बनाता रहा आज उसी लड़की ने उसे विकलांग होने से बचा लिया था।

कुछ दिनों के बाद नीलिमा के बुआ के लड़के को हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई और उसके कुछ दिनों बाद ही रक्षाबंधन आने वाला था नीलिमा के बुआ के लड़का खुद नीलिमा को अपने घर ले गया और उसकी हाथ से पहली बार राखी बंधवाया और उसने कहा कि नियम तो यह होता है कि एक भाई बहन की रक्षा करें लेकिन आज एक बहन ने भाई की जिंदगी बचा ली।  नहीं तो मैं पूरी जिंदगी बिस्तर पर ही होता। नीलिमा ने बस इतना ही कहा भाई मैंने कुछ नहीं किया है एक डॉक्टर का यह फर्ज होता है चाहे रोगी कोई भी हो उसके लिए तो वह रोगी ही होता है। और मैंने तो सिर्फ अपना फर्ज निभाया।



नीलिमा की बुआ ने भी इस बार नीलिमा को प्यार से गले लगाया और नीलिमा के बुआ के आंखों में आंसू थे और ऐसा  लग रहा था कि नीलिमा की बुआ नीलिमा से माफी मांग रही हो कि बेटी मुझे माफ कर दे पूरी जीवन मैंने तुम्हें कितना गलत सोचा।

नीलिमा ने अपनी बुआ से बस इतना ही कहा बुआ आगे कहने की जरूरत नहीं है मैं सब समझ गई हूं।  बस यह समाज को समझना जरूरी है पता नहीं क्यों लड़की को हमेशा से एक अलग चीज मानता है जबकि लड़की में भी वैसा ही खून और वही सब कुछ होता है जो एक लड़के में होता है।  बस जरूरत है लड़की को हौसला देने की आज मेरे मां बाप ने मेरा साथ दिया और मेरी विकलांगता को कभी भी कमजोरी नहीं बनने दिया और ना ही या यह एहसास होने दिया कि मैं विकलांग हूं।

आज नीलिमा को अपने मां की कही हुई बात याद आ रहा था जो बचपन से ही हमेशा उसे करती थी बेटी कभी भी अपनी उम्मीदों का  दिया को बुझने मत देना क्योंकि इसमें देर लगता है लेकिन जलता जरूर है और जब यह जलता है तो ऐसा रोशनी बिखेरता है कि उस रोशनी में सारे गम के अंधियारे दूर हो जाते हैं।  सिर्फ तुम्हारे सामने उजाले होते हैं और सब तुम्हारे होते हैं और नीलिमा को ऐसा लग रहा था कि वह उम्मीदों का दिया जल गया है सब अंधियारा दूर हो गया है।

Writer:Mukesh Kumar

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