उलट फेर – डॉक्टर संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

“शिप्रा!शिप्रा!बच्चे कहां हैं?”उमेश ने घर में घुसते ही चीखना शुरू कर दिया था।

“क्यों चिल्ला रहे हो उमेश?दोनो बच्चे घूमने अपने नानाजी के साथ गोल मार्केट तक गए हैं।”शिप्रा ने जबाव

दिया।

“घूमने?क्यों भेज दिया तुमने उन्हें उनके साथ? कहीं की चोट लग जाए तो?कितनी बार कहा है बच्चों को ऐसे

किसी के साथ बाहर मत भेजा करो पर तुम्हारे कान पर जूं नहीं रेंगती।”

“क्या हो गया है तुम्हें?”शिप्रा शॉक्ड होकर बोली,”वो मेरे पिता हैं,उन्होंने हम चार नहीं भाई को पाल पोस कर

बड़ा नहीं किया क्या?”

“वो तब की बात थी,लेकिन अब?”उमेश बोला।

“अब क्या??बोलो..अब क्या?” शिप्रा हाइपर होने लगी…”अभी पिछले हफ्ते तुमने रिया की पिटाई कर दी थी

जब वो अपनी सहेलियों संग साइकिल चलाना सीख रही थी,उससे पहले शौर्य को डांटा था जब उसने कराटे

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“जब तुम्हें सब पता है और याद भी है तो ये दुस्साहस क्यों?उमेश ढिठाई से कहता रहा,मुझे अपने बच्चों को

झांसी की रानी या तात्या टोपे नहीं बनाना,समझी!!वो जैसे हैं वैसे ही अच्छे हैं।”

“लेकिन ऐसे तो वो डरपोक बन जाएंगे…”शिप्रा परेशान होते बोली,आजकल जो समय के साथ कदम

मिलाकर नहीं चलता,समय उसे पीछे छोड़ देता है,बच्चे आत्म निर्भर कैसे बनेंगे फिर?”

“मैं हूं न..”उमेश गर्व से बोला,”मेरे होते उन्हें किसी बात से क्या डरना?”

“और उसके बाद?”धीमी आवाज में शिप्रा बोली।

उमेश ने उसे सुन लिया…”तौबा! कैसी औरत है,अपने ही पति के बाद की कल्पना कर रही है…राम!राम!”

“ये क्या बात हुई?” शिप्रा बड़बड़ाई बहुत धीरे से,वो बहुत परेशान थी अपने पति की इस आदत से,”ये बच्चों को

सचमुच इतना प्यार करते हैं या कोई और वजह हैं इनके इस व्यवहार की ??कहीं ये ,ये तो नहीं चाहते कि बच्चे

इनके मोहताज बने रहें सारी जिंदगी और इनपर निर्भर ही रहें?”

“छी..छी…कैसा उलट पुलट सोच रही हूं मैं इनके बारे में?”शिप्रा शर्मिंदा हुई अपनी छोटी सोच पर,”आखिर

पिता हैं,ऐसा कैसे सोचेंगे अपनी ही औलाद के लिए,भगवान!मुझे माफ करना आप!”

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एक बार शिप्रा,बाजार से कुछ जरूरी सब्जी, दाल चावल लेने गई,कुछ रुपए बच रहे थे तो वो दोनो बच्चों के

लिए एक एक छोटा सा गिफ्ट खरीद लाई क्योंकि उनकी बर्थ डे नजदीक आ रही थी,उमेश को जब ये पता

चला वो उसपर बहुत नाराज़ हुआ कि ये कूड़ा उठा लाने की क्या जरूरत थी जब वो खुद इतना किफायती

और टिकाऊ सामान लाता है तो…

सामान्यतः उमेश ही खरीदारी करता,उसे शिप्रा का बाजार से सामान लाना पसंद न था,क्योंकि उसे अहंकार

था कि वो ही बढ़िया चीज खरीद सकता है,कोई दूसरा नहीं।

फिर कुछ ही दिनों में ऐसा हुआ जिसने ये सिद्ध कर दिया कि उमेश जो कुछ भी कहता और करता

है,सोची,समझी साजिश के तहत ही करता है,हुआ ये कि शिप्रा के मम्मी पापा,फिर आए उनके घर रहने कुछ

दिनो के लिए।वो कुछ परेशान थे अपने बेटे सौरभ के व्यवहार से,जब से उसकी शादी हुई थी ,वो अपने पेरेंट्स

को उपेक्षित करने लगा था,शिप्रा और शिखा दो बहने थीं,इसलिए वो बारी बारी दोनों के पास आ

जाते,अकेला लड़का होने की वजह से ही शायद सौरभ नकचढ़ा था इतना।

उमेश को जब आभास हुआ इस बात का वो डींगे मारता शिप्रा से बोला…”इनका इकलौता लड़का था,इन्हें शुरू

से अक्ल नहीं आई कि उसे खुद पर डिपेंडेंट रखते तो आज ये नौबत नहीं आती शायद कि वो इन्हें इग्नोर कर

पाता और इन्हें लड़कियों के यहां बार बार नहीं आना पड़ता।अब समझ आया कि मैं बच्चों को क्यों सब कुछ

नहीं सीखने देता!”

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शिप्रा ये सुनकर सन्न रह गई। यानि वो जो अपने पति के बारे में सोच रही थी पहले,वो गलत नहीं था?इनकी

सोच उतनी ही ओछी है जिसका उसे शक था?ये मुझे तो टोंट कर ही रहे हैं कि तेरे मां बाप,बार बार यहां क्यों

आते हैं ,साथ ही अपनी नीचता में ये भी बता रहे हैं कि मैं क्यों बच्चों को कुछ सिखा कर आत्म निर्भर नहीं

बनाना चाहता।

“हे भगवान!ये किस आदमी के साथ मेरी तकदीर जोड़ दी तूने?”शिप्रा सिहर गई।

लेकिन उसने दिल में एक निश्चय किया तभी,मेरी तकदीर तो इस के साथ अब जुड़ ही गई है लेकिन मैं,मेरे

बच्चों को इनकी इस चाल का शिकार होने से जरूर बचाऊंगी और वो भी बड़े स्वाभाविक तरीके से।इन्हें पता

भी नहीं चलने दूंगी और काम कर लूंगी।

सबसे पहले उसने बेटे को कराटे क्लास भेजा,साथ ही बिटिया को भी।जब उमेश गुस्सा हुआ तो शिप्रा ने वो

नोटिस दिखला दिया जिसमें उनकी टीचर ने इस कोर्स को करना कंपलसरी बताया था।आजकल के ज़माने

में बच्चों की सुरक्षा के लिए ये बहुत आवश्यक था,ऐसा भी उन्होंने लिखा था।

शिप्रा ने खुद उमेश से छुप कर (जब वो ऑफिस होता,उस समय)दोनों बच्चों को ड्राइविंग सिखाई,साइकिल

और बाइक चलानी।

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बच्चों को वो ये ही बताती रही कि तुम्हारे पापा तुम्हें बहुत प्यार करते हैं,इसलिए वो तुम्हारी सुरक्षा को लेकर

बहुत डरते हैं पर तुम्हें उन्हें दिखला देना है कि तुम सब कर सकते हो।

लड़की को घर के सारे कामों में निपुण बनाया उसने,लड़के को घर बाजार के काम सिखाए,शॉपिंग से लेकर

बैंकिंग और शेयर ट्रेडिंग तक।

दोनों ही बच्चों की बढ़िया जॉब लग गई और आज वो पूरी तरह आत्म निर्भर हैं।उमेश चुपचाप सब देखता रहा,

ऊपर से वो खुश होता है पर कहीं अंदर उसके बहुत कुछ चटकता रहता है जब वो अपने हो बच्चों को इंडिपेंडेंट

काम करते देखता है।

जो भी हो,उमेश की सारी योजनाएं फेल हो गई,सुनने और पढ़ने में ये बातें अजीब लग सकती हैं पर ऐसा

होता है,लोगों की मानसिकता बहुत अलग अलग होती हैं।उमेश ने लाख चाहा अपने ही बच्चों को खुद पर

निर्भर बनाने के लिए उन्हें कुछ भी न सीखने देना पर शिप्रा की चतुराई ने सब कुछ उलट फेर कर दिया।

डॉक्टर संगीता अग्रवाल

 

वैशाली,गाजियाबाद

#मोहताज

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