hindi stories with moral : मनीष दो वर्ष तुम्हारी पत्नी रही हूँ, पत्नी होने का स्थान तो तुम छीन ही रहे हो,अब कम से कम मेरे आत्म सम्मान, मेरी खुद्दारी पर तो चोट मत करो।प्लीज।
अरे माधुरी मेरा ऐसा कोई इरादा नही था।देखो हम सहमति से अलग हो रहे हैं तो मेरा भी तो कुछ फर्ज बनता है। मैं 20 लाख रुपये तुम्हारे एकाउंट में ट्रांसफर कर दूंगा और हिंजवाड़ी वाला फ्लेट भी तुम्हारा।वैसे कभी भी कोई और समस्या आये तो मुझे बेझिझक बता देना।
कितने महान और उदार हो तुम मनीष,अपनी पत्नी को जिससे तुमने प्रेम विवाह मात्र दो वर्ष पूर्व ही किया था,उसे किसी अन्य की खातिर तिलांजलि दे रहे हो,पर उसको कोई जीवन मे परेशानी ना आये इसलिये उसकी जरूरतों का ध्यान भी रखने का प्रपंच रच रहे हो।इसलिये ना जिससे मैं कहीं तलाक लेने में बाधक न बन जाऊं?अरे मिस्टर मनीष मैं थूकती हूँ तुम्हारी धन संपत्ति पर।करा लेना तलाक के कागजात मैं साइन कर दूंगी।यह रकम और फ्लेट रखो अपने पास हो सकता है फिर दो साल बाद तुम्हे फिर किसी को ऑफर करना पड़े।
बड़े बाप का बेटा मनीष,हैंडसम पर्सनालिटी, मधुर व्यवहार,मिलनसार प्रवृत्ति किसी को भी आकर्षित करने में समर्थ थी।दूसरी ओर सामान्य से परिवार की माधुरी,खूबसूरत सौम्य सादगी से भरपूर,शिक्षा में अव्वल,उसका व्यक्तित्व भी किसी आकर्षण से कम नही था।कॉलेज फंक्शन में मनीष और माधुरी का एक साथ सहभागी होना दोनो का करीबी परिचय होने का कारण बन गया।दोनो फंक्शन समाप्त होने पर भी अक्सर मिलने लगे।मनीष ने कभी अपने अमीर होने का अहसास तक नही होने दिया।
इस प्रकार मनीष कब माधुरी के दिल मे समा गया उसे भी पता ही नही चला।अब मनीष कभी भी माधुरी के घर भी आ जाता और बहुत ही सामान्य रूप में उसके माता पिता से भी मिलता।माधुरी के माता पिता भी मनीष को पसंद करने लगे।यही कारण था जब मनीष ने माधुरी का हाथ उसके माता पिता से मांगा तो वे तो निहाल हो गये, भला इतना अच्छा दामाद घर बैठे मिल जायेगा, इसकी कल्पना तक उन्होंने नही की थी।माधुरी तो शर्म से मुँह छिपा अंदर भाग गयी।
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अब ऐसा भी नही कि यह सहमति मात्र मनीष,माधुरी और उसके माता पिता तक ही थी,इस शादी के लिये मनीष के माता पिता भी रजामंद थे।दोनो ओर के परिवारो की सहमति से मनीष और माधुरी की शादी सम्पन्न हो गयी।दोनो हंसी खुशी मारिसस हनीमून के लिये भी गये।घर मे किसी चीज का अभाव था ही नही।मनीष ने अपने पिता के कारोबार में हाथ बटाना प्रारम्भ कर दिया था।सब कुछ ठीक चल रहा था।
एक दिन माधुरी को झटका लगा जब उसने अपनी सास को कहते सुना शुक्र करो मनीष के पापा माधुरी के घरवालों को मनीष के बारे में कुछ पता नही चला।कहते कहते वो चुप हो गयी,उन्होंने माधुरी को देख लिया था।माधुरी ने खूब सोचा कि कुछ तो बात है जो मुझसे छिपाई जा रही है,पर क्या?यह पता नहीं चला।मनीष अपने कारोबार के सिलसिले में कई कई दिन के लिये बाहर जाता रहता था।अब कुछ अधिक हो गया था।मनीष के पिता कहते भी कि जाना जरूरी नही है, फिर भी मनीष जाता।माधुरी को अटपटा सा लगता पर वह क्या कहती?
यूँ ही दो वर्ष बीत गये, और विस्फोट हो गया,सबकुछ सामने आ गया।एक रात मनीष ने माधुरी का हाथ अपने हाथ मे लेकर कह दिया कि वह तुमसे तलाक चाहता है,वह रीमा को चाहने लगा है।पर माधुरी तुम चिंता बिल्कुल मत करना मैं बीस लाख तुम्हारे एकाउंट में ट्रांसफर कर दूंगा और फ्लेट भी तुम्हारा।
धक से रह गयी माधुरी,बड़े लोगो की बड़ी बातें भी वो दो वर्ष में भी नही सीख पायी थी।परत उतरती जा रही थी,लड़कियां फसाना मनीष का शगल था,जिद होती थी।तभी तो माधुरी को प्राप्त करने को उसने उससे शादी तक कर डाली थी।उसके माता पिता को अपने बेटे के कारनामो और आदत का पता था,फिर भी उन्होंने माधुरी को चारे के रूप में स्वीकार कर लिया था,शायद उनका बेटा सुधर जायेगा।
माधुरी को सोच सोच कर ही घिन्न आने लगी थी,उसका क्या कुसूर था,उसने तो प्यार किया था। जब मनीष माधुरी के सामने तलाक का प्रस्ताव रख रहा था,तब माधुरी अपने मां बनने की खुशखबरी मनीष को सर्वप्रथम देने वाली थी।उसने अपने आपको संभाला और अपने भविष्य के विषय मे निर्णय कर लिया।
प्रातःकाल उठकर माधुरी ने एक सूटकेस में अपने कुछ कपड़े रखे और मनीष के माता पिता के चरण छू कर विदा मांगी वो रो रहे थे,पर माधुरी बिल्कुल सपाट थी,वो क्षमा मांग रहे थे,माधुरी कह रही थी,बाबूजी आप भाग्यशाली हैं जो आपके बेटी नही है,यदि होती और आपको मनीष जैसा दामाद मिल जाता तो—-?
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जवाब – विनय कुमार मिश्रा
मनीष के माता पिता माधुरी से बार बार माफी की गुहार करते रहे,माधुरी एक झटके से पलट कर मनीष के कमरे में पहुंची और बोली मिस्टर मनीष मैं तुम्हे आजाद करती हूं साथ ही माफ भी करती हूं आखिर तुम मेरे दो वर्ष पति रहे हो और मेरे होने वाले बच्चे के पिता भी हो।मनीष अवाक हो माधुरी को देखता रह गया,वह कुछ बोलता उससे पहले ही माधुरी घर से बाहर जा चुकी थी।
नयी राह की खोज में जहां उसे कोई मनीष ना मिले और वह अपने होने वाले बच्चे को अपने जैसे संस्कार दे सके।
बालेश्वर गुप्ता, पुणे
मौलिक एवम अप्रकाशित।
Is story ka second part bhi hona chahiye
Second part
Ha sahi kha aapne