उदार –  कंचन श्रीवास्तव 

Post Views: 4 अखबार के पन्ने पलटते पलटते ,रेखा की निगाह, ‘सामने बैठे चाय बिस्कुट का रहे रवि पर गई’।तो ,देखती रह गई,ऐसा लगा मानों मुद्दतो बाद देख हो,नहीं नहीं देखती तो रोज़ ही है पर शायद आज करीब से या ये कह लो मन की आंखों से देख रही है। “चेहरे से बुढ़ापा झलकने … Continue reading उदार –  कंचन श्रीवास्तव