“हमारा हिस्सा हमें दे दीजिए, हम अपनी व्यवस्था उसमें कर लेंगे….” प्रताप सिंह के छोटे बेटे व्योमेश ने हॉल में बैठे अपने मां बाबूजी से कहा।
“ये आज अचानक तुम्हें क्या हो गया…ये अलग हिस्से की बात कहां से आ गई….” आश्चर्य से देखते हुए प्रताप सिंह ने पूछा।
व्योमेश और उसकी पत्नी शुभी शहर में एक ही कंपनी में जॉब करते थे और सालभर पहले ही उनका विवाह हुआ था। अभी दीपावली की छुट्टियों में 3–4 दिन के लिए वो दोनो गांव आए हुए थे।
“आपको तो पता है कि हम शहर में ही जॉब करते हैं और कभी कभी त्यौहारों पर ही गांव आना होता है, शुभी को गांव में रहना वैसे भी पसंद नहीं और गांव में आगे भविष्य में रहने का भी कोई मतलब नहीं हैं क्योंकि गांव में कोई कंपनिया तो हैं
नहीं जो हम यहां रहकर जॉब करेंगे, और न ही कोई सुविधा इसलिए हम शहर में ही अपना मकान लेकर शिफ्ट होने की सोच रहे हैं इसलिए अपना हिस्सा मांग रहे हैं जिससे किसी अच्छी सी कॉलोनी में अच्छा सा मकान ले सकें….”
“लेकिन बेटा तुम्हारी इस बात का तो मतलब ये हुआ कि हम खेत बेच दें क्योंकि इस घर के हिस्से करने से तो तुम्हारे मकान की व्यवस्था होने से रही …लेकिन खेत बेचना तो बेवकूफी होगी….क्या पता भविष्य में कैसी जरूरत आ पड़े…”
“तो मैं कब कह रहा हूं कि सारा खेत और मकान बेच दो, मैं तो केवल अपना हिस्सा मांग रहा हूं और खेती में रखा ही क्या है…कभी कभी तो सारी मेहनत पर पानी ही फिर जाता है… कम से कम हमारी सेलरी पक्की तो है ….खेत में तो कभी कभी जितनी मेहनत हो जाती है उतनी वसूली भी नहीं होती….” व्योमेश ने अपना तर्क रखा
” इसका मतलब तुम पक्का इरादा करके आए हो इस बार…वैसे एक बार और सोच लो….मेरे हिसाब से तो तुम्हारा निर्णय सही नहीं है….”
“मुझे कुछ नहीं सोचना…. मैं सोचकर आया हूं….अगर तुम मेरा हिस्सा देने को तैयार हो तो मैं इस बार जाकर एक मकान के एडवांस देकर ही आयूंगा….”
“ठीक है तो फिर भाई दौज पर तुम्हारी बहन निधि भी आएगी और बड़ा भाई सोमेश भी घर पर ही होगा तब ही सबके सामने इस बात का निर्णय होगा …” कहकर प्रताप सिंह ने बात खत्म की।
भाई दौज़ पर जब सभी एकत्र हुए तब प्रतापसिंह ने सभी के सामने व्योनेश की बात बताते हुए फैसला सुनाया, “हमारी जायदाद के बराबर बराबर 4 हिस्से होंगे जिसमें तुम दोनों बेटे, मेरी बेटी और एक मेरा होगा…. जिसमें से व्योमेश तुम तो अपना हिस्सा अभी ले ही रहे हो
लेकिन बाकी के तीन हिस्से एक साथ ही है और जैसे अभी तक सोमेश और हम देखते आ रहे हैं वैसे ही चलेगा…जो बेटा हमारी अंतिम समय तक सेवा करेगा उसे हमारे मरने के बाद हमारा हिस्सा मिलेगा…और निधि के सभी व्यवहार चलन, जरूरत पड़ने पर उसकी मदद सब उसके हिस्से में से होगा
किंतु हमारे मरने के बाद अगर वो अपना हिस्सा ले तो अलग लेकर कुछ भी कर सकती है ये उसका खुद का फैसला होगा कि उसे क्या करना है अपने हिस्से का…और अगर अब भी चाहे तो अब भी ले सकती है….”
इस फैसले से सोमेश और निधि ने तो कुछ नहीं कहा लेकिन व्योमेश थोड़ा नाराज हो गया क्योंकि वो जानता था कि खेत ज्यादा नहीं है और 4 हिस्सों में से जो एक हिस्सा है उससे उसके मन मुताबिक शहर में बड़ा सा घर नहीं खरीद सकते ,
” ये कैसा फैसला है, इसका मतलब तो साफ साफ है कि सारा खेत भाई का ही है, अब तुम लोग गांव छोड़कर हमारे साथ जाने को तैयार नहीं होंगे और हमारा यहां आकर रहना असम्भव है तो फिर तो आपका हिस्सा तो वैसे ही भाई को मिल जायेगा….”
“जो निर्णय मुझे सुनाना था वो मैं सुना चुका अब तुम्हे लेना है अपना हिस्सा तो ले सकते हो… इस बार आओगे तब सब लिखा पढ़ी का काम कर देंगे, सोचकर बता देना नहीं तो जैसा चल रहा है वैसे ही चलने दो….मेरे मरने के बाद इसी तरह बंटवारा कर लेना
नहीं तो जो मर्जी आए वो करना…पर मेरे जीते जी तो यही होगा….” प्रताप सिंह ने अपना अटल फैसला सुना दिया।
दूसरे दिन व्योमेश नाराज होकर अपनी पत्नी शुभी के साथ लौट आया और फिर बाद में उसने न तो उसने घर वालों से बात की और न ही अगले त्यौहारों पर घर ही गया क्योंकि वह जानता था कि जब माता पिता के मरने के बाद भी उतना तो मिलना ही है तो फिर क्यों
औपचारिकताएं निभाई जाएं….और अगर किसी का फोन आ भी जाता तब भी वह ठीक से बात नहीं करता इसलिए सबने भी धीरे धीरे उसके पास फोन करना बंद कर दिया…अब त्यौहारों पर भी उनका परिवार एक साथ नहीं होता।
2 साल ऐसे ही बीतते गए और शुभी गर्भवती हो गई जो उनके लिए खुशी की बात थी… लेकिन भगवान की मर्जी के आगे कहां किसी की चलती है तभी कोविड नामक भयंकर बीमारी महामारी के रूप में फैलने लगी, कंपनियों से कर्मचारियों की छ्टनी शुरू गई
जिसकी वजह से व्योमेश की नौकरी छूट गई और शुभी तो पहले ही अपनी कमजोरी की वजह से जॉब छोड़ चुकी थी।
शहर में हालात खराब हो चुके थे, 2 दिन बाद कर्फ्यू का ऐलान हो चुका था अतः व्योमेश ने आगे आने वाली परेशानियों को देखते हुए बहुत हिम्मत करके अपने घर फोन किया जो उसकी मां ने उठाया था,” हैलो! मां, आप दादी बनने वाली हैं…”
सरोज (व्योमेश की मां) खुश होते हुए–” अरे वाह ये तो बहुत खुशी की बात है लेकिन तू इतने बुझे हुए मन से क्यों बता रहा है, कोई परेशानी हो तो वो बता….”
“मां, आप तो जानती हो कि कोविड फैल रहा है, 1–2 दिन में कर्फ्यू भी लगने वाला है और…”दुखी स्वर में कहते हुए व्योमेश रुक गया…”
” और क्या बेटा…. तू बता मुझे और हां ज्यादा चिंता मत कर सब ठीक हो जाएगा….”
“मेरी जॉब छूट गई….”
” कोई बात नहीं….जो होना था वो तो हो गया…. अब ऐसे ज्यादा सोचने से तो कुछ होने वाला नहीं… इसलिए ज्यादा सोच मत…तुम ऐसा करो कि दोनों कल ही यहां गांव आ जाओ…”
“लेकिन मां…..”
“लेकिन बेकिन कुछ नहीं ….जो मैं कह रही हूं वो सुन….और सारी चिंता छोड़…..कल आजा तब बात करूंगी…. ठीक है….बहू से भी कह दे कि ज्यादा परेशान नहीं हो ….केवल अपना ध्यान रख… बाकी सब हम हैं ही….”
दूसरे दिन व्योमेश और शुभी गांव आ गए और उन्होंने अपने व्यवहार के लिए सबसे क्षमा मांगी..
” अरे पागल अपनों से कहीं क्षमा मांगी जाती है और वो भी मम्मी पापा से….मम्मी पापा कहीं बच्चों से नाराज होते हैं….अरे मुझे तो पता था कि तू शहर की चकाचौंध में गांव की अहमियत भूल गया है और समय आने पर तुझे इसका अहसास जरूर होगा
लेकिन ये समय इतनी जल्दी आ जायेगा ये नहीं पता था….खैर अब जो हुआ सो हुआ अब बहू का ध्यान रख…..यहां घर की गाय भैंसों का शुद्ध दूध, दही और खेत की ताजी फल सब्जियां हैं जो शहरों में कहां मिलती होंगी…
और सबसे बड़ी बात कि सब लोग अपने ही हैं जो हर परिस्थिति में एक दूसरे के साथ खड़े होते हैं इसलिए जो कुछ बीता उस सबको भूल जा और खुश रह….” कहते हुए प्रतापसिंह ने व्योमेश को गले लगा लिया।
व्योमेश और शुभी के आने की खबर सुनकर सुनकर उनके घर के पास ही रहने वाली काकी उनसे मिलने आ गई जिन्होंने प्रताप सिंह की भी सारी बातें सुन ली थीं।
“तभी मैं कहूं कि ये जायदाद के 4 हिस्से क्यों हो रहे हैं जबकि पहले तो मैंने ऐसा कभी नहीं देखा….सब लोग अपने बेटों में ही बराबर बराबर हिस्सा कर देते हैं….अगर तू ऐसा करता तो ये तो अपना आधा हिस्सा लेकर जरूर शहर में बस जाता…..लेकिन 4 हिस्से किए इसलिए ये भी रुक गया….” काकी ने हंसते हुए कहा।
“और क्या तो क्या मैं अपने परिवार को अपने ही आंखों के सामने बिखर जाने देता….”कहकर प्रताप सिंह भी हंस दिए।
तभी वहां निधि भी आ गई जिसका ससुराल थोड़ी ही दूर के गांव में था ” पता नहीं फिर कब आना हो इसलिए मैं भी आप सबसे मिलने चली आई वैसे भी छोटे भैया भाभी से मिले हुए काफी वक्त बीत गया था और पापा आपकी समझदारी ने परिवार के बिखरने के साथ साथ टूटते हुए रिश्तों को भी बचा लिया…
आप जो मुझे मेरा हिस्सा दे रहे थे अगर में उसे ले लेती तो किस मुंह से रक्षाबंधन और भाई दूज पर आती और अगर बड़े भैया के लिए छोड़ती तो छोटे भाई की बुरी बन जाती और अगर दोनो भाइयों को बराबर करने को बोलती तब भी छोटा अपनी व्यवस्था शहर में कर ही लेता….
वाह पापा आपने बहुत ही होशियारी से सबको प्रेमपूर्वक एक साथ जोड़े रखा….हम तो पहले समझ ही नहीं पाए थे कि आप ऐसा क्यों कर रहे हो…..”
“अब बातें ही करती रहेगी या बाकी सबसे भी मिलेगी….जा, अंदर अपनी भाभी से भी मिल ले…” कहकर प्रताप सिंह मुस्करा दिए आज उनकी समझदारी से उनका पूरा परिवार साथ था।
प्रतिभा भारद्वाज ‘प्रभा’
मथुरा (उत्तर प्रदेश)