“टूटते रिश्ते जुड़ने लगे” – उमा वर्मा : Moral Stories in Hindi

।हमारे घर में इतनी अधिक मेल मिलाप थी कि लोगों को मिसाल दी जाती थी कि देखो,फलाँ के घर कितना अच्छा परिवार है, कितनी मेल मिलाप है ।पर अचानक न जाने किसकी नजर लग गई कि सबकुछ गड़बड़ हो गया ।समीर दो भाई और दो बहन थे।सम्मिलित परिवार में सबकी रसोई एक ही थी।

जब मेरी शादी हुई तो एक ननद कुंवारी थी एक बड़ी बहन की शादी हो गई थी ।वह अपने ससुराल में सुखी जीवन बिता रही थी ।मायके में फालतू बातों से उनका कुछ लेना देना नहीं रहता था।मैं छोटी बहु थी।अतः रसोई मै संभालती और बाहर का काम बड़ी भाभी जो मेरी जेठानी थी वह देखती थी।

घर में किसी चीज की कमी नहीं थी।नौकर चाकर भी सेवा में प्रस्तुत रहते।हाँ घर थोड़ा अस्त व्यस्त रहता ।मुझे सलीके से रहना पसंद था और भाभी इन बातों पर ध्यान नहीं देती थी।सुबह बिस्तर ऐसा लगता कि जैसे युद्ध का मैदान हो।चादर तकिया का कोई ओर छोर नहीं रहता ।मै अक्सर सब ठीक कर देती लेकिन थोड़ी देर बाद फिर वही तमाशा होता ।एक दिन भाभी ने कहा कि तुम इतना मत करो।यहाँ सब ऐसे ही रहते हैं ।

फिर मै सिर्फ अपने कमरे को ठीक कर लेती ।बहरहाल जिंदगी ठीक चल रही थी ।दोनों भाई बहन में बहुत लगाव था ।हम एक साथ खाना खाते, घूमने जाते, अपनापन बहुत था तो मुझे छोटी होने के कारण कपड़े भी जरा ज्यादा ही अच्छा मिलता ।मै खुश थी।भाभी अक्सर पूछती ” तुम्हे मायके की याद तो नहीं आती?” नहीं भाभी मै बहुत खुश नसीब हूँ कि आप मेरे साथ हैं ” ।फिर समीर की नौकरी दूसरे शहर में लग गई ।

और मै भी उनके साथ शहर आ गई ।इसी दौरान मै दो बच्चों की माँ भी बन गई थी ।परिवार में आना जाना लगा रहता ।समीर के भैया भाभी और उनके बच्चे भी हमारे शहर में आ गये ।गांव में माँ बाबूजी रह गये थे ।कभी कभी वह लोग भी हमारे पास रहने आ जाते।भैया भी कपड़े का बिजनेस चला रहे थे ।दुकान बढ़िया चल रहा था ।दस किलोमीटर दूर पर भैया भाभी थे ।लेकिन हर हफ्ते हमलोग उनके यहाँ पहुँच जाते ।

पर्व त्योहार पर हमसब एक साथ खाना खाते ।समीर की भाभी मुझे अपनी छोटी बहन जैसी मानती थी ।धीरे-धीरे हमारे बच्चे बढ़ते गये ।भैया के दोनों बच्चे भी पढ़ाई पूरी करके नौकरी पर चले गये ।मेरे दोनों बेटे अपनी पढ़ाई में आगे बढ़ने लगे।जीवन में पैसे की जरूरत बढ़ती गई ।समीर ने माँ बाबूजी से सलाह ले कर गांव वाली जमीन बेचने की बात कही ।उनहोंने कहा कि जैसा तुम लोग उचित समझो।

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आखिर अब गांव में कोई रहने तो जायगा नहीं ।फिर मेरे बेटे के इंजीनियरिंग की पढ़ाईकरने के लिए  पैसे की जरूरत पड़ी तो समीर गांव चले गए ।जमीन बेचने के लिए ।लेकिन वहां जाकर पता चला कि भैया ने वह जमीन पहले ही बेच दिया है ।कागज पर हेराफेरी हो गया था ।समीर को बहुत दुख हुआ ।समीर खाली हाथ लौट आये ।मन बहुत दुखी था ।

समीर बाप दादे की जमीन बेचना नहीं चाहते थे लेकिन पैसे की जरूरत से यह कदम उठाया ।घर आकर बहुत रोये ।मैंने समझाया कि जाने दीजिए ।आपके हाथ में यश होगा तो फिर आप एक जमीन खरीद लेंगे ।आपके हाथ में बहुत ताकत है ।फिर धीरे-धीरे समीर सामान्य होने लगे।लेकिन कहा कि भाई पर बहुत विश्वास था उनहोंने धोखा दिया ।फिर गांव से माँ बाबूजी भी हमारे साथ रहने लगे।

शहर में ही हमने समीर की छोटी बहन की शादी एक अच्छे परिवार में कर दिया ।समीर ने कहा कि अब भाई से कोई समपर्क नहीं रखना है ।लेकिन मै सोच में पड़ गयी।इतना हँसता खेलता, अपनापन लिए हुए, परिवार को कैसे छोड़ दे।दुनिया क्या कहेगी ।सबलोग तो औरत को ही दोषी ठहरा देंगे ।नहीं मैं ऐसा नहीं होने दूँगी ।रिश्ते टूटने के कगार पर आ गये।जो मुझे मंजूर नहीं था ।

मै ऐसा नहीं होने दूँगी भाई भाई के मन के टकराव को माँ बाबूजी सहन नहीं कर पाये और छः महीने के अंतर से दुनिया से चले गये ।अब हमारा आना जाना कम हो गया ।फिर एक दिन मैंने समीर से कहा कि मुझे भैया के यहाँ जाना है ।समीर बोले ” तुम चली जाओ ” लेकिन मुझे तो दोनों भाई के मन के खोट को निकालना था।मैंने कहा आप मुझे लेकर चलिए ।

समीर बहुत मुश्किल से तैयार हुए।बोले ठीक है पहुंचा दूँगा पर मै घर के अंदर नहीं जाऊंगा ।मैंने कहा ठीक है ।यह परिवार जोड़ने का पहला कदम था।भरोसा था कि धीरे-धीरे सबकुछ ठीक होगा ।समीर मुझे लेकर चले ।बाइक से उतार दिया और बोले मै बाहर ही बैठता हूँ ।मै थोड़ी खुश थी।अंदर गई तो भाभी ने पूछा, समीर नहीं आये? ” हाँ आये हैं, बाहर बैठे हैं

” फिर भाभी आकर समीर को हाथ पकड़ कर अंदर ले गई ।” थोड़ी सी बात पर भाभी को छोड़ देंगे आप? समीर सर झुकाए बैठे रहे ।मै और भाभी अपनी सफलता पर मुसकुराते हुए गले मिली।खा पी कर हम घर लौट गये ।अब मैं फिर से कुछ बहाने बना कर सप्ताह में जाने लगी ।साथ में समीर भी रहते।धीरे-धीरे भाई भाई की बोल चाल शुरू हो गई ।मन का मैल धुलने लगा था ।

टूटते रिश्ते जुड़ने लगे थे।इसी बीच बेटेकी पढ़ाई पूरी हो गई ।वह भी अच्छी जगह लग गया ।उसकी पहली तनख्वाह से हमने जमीन का टुकड़ा खरीद लिया ।जिसे मेरे बेटे ने सहयोग किया और अपने पापा को समझाया कि आप चिंता मत करें पापा ।मै हूँ ना ।परिवार टूटना नहीं चाहिए ।सबसे बड़ी दौलत परिवार का आपसी तालमेल, सहयोग होता है ।बड़े पापा को कुछ जरूरत पड़ी होगी तभी जमीन बिका होगा ।

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समीर जमीन खरीद कर बहुत खुश थे।हमने जल्दी ही मकान बनाने के लिए नक्शा पास कराया ।और फिर मकान की नींव रखी ।पूजा पर भैया भाभी, उनके बच्चे सभी आये ।दोनों बहन भी शामिल हो गई थी ।हमारे रिश्ते जुड़ने की खुशी सबके चेहरे पर दिख रही थी ।पूजा समापन हो गया ।समीर अपने भाई के पैरों पर झुक गये ।भैया ने भी गले लगा लिया ।भाई भाई का अद्भुत मिलन फिर से हुआ था ।कहीं गाना बज रहा था ” हम साथ साथ हैं “

—– उमा वर्मा, नोएडा, स्वरचित, मौलिक ।

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