टूटते रिश्ते – डाॅक्टर संजु झा : Moral Stories in Hindi

इंसान की जिंदगी में प्यार का एहसास  जितना ही खुबसूरत होता है,इसके विपरीत  टूटे हुए  रिश्ते का दर्द  उतना ही कष्टप्रद और दुखदायी होता है।टूटे हुए  रिश्ते के जख्म ताउम्र नहीं भरते हैं,भले ही वक्त उस पर धूल की चादरें क्यों न चढ़ा दे!

अतीत  के दुखदायी लम्हें व्यक्ति के दिल के कोने में ज्यों के त्यों पड़े रहते हैं।उन्हें न तो वक्त मिटा पाता है और न ही भुक्तभोगी व्यक्ति ही।

कथानायिका नीलू के टूटे रिश्ते के जख्म  एक बार फिर से हरे होकर रिसने लगें।नीलू अन्तरराष्ट्रीय  दिल्ली हवाई अड्डे  पर सारी औपचारिकताएँ पूरी कर पति सुमित और बेटी परी के साथ सिक्योरिटी  लाॅज में बैठी थी।उसकी बेटी  को बैठे-बैठे ऊकताहट हो रही थी।

फ्लाइट छूटने में काफी समय था,इस कारण सुमित बेटी को इधर-उधर बहलाने ले गया।उसी समय एक व्यक्ति नीलू की बगल में आकर बैठ गया।उसकी दाढ़ी बढ़ी हुई थी।उसने ढ़ंग से कपड़े भी नहीं पहने थे।परन्तु नीलू को उस व्यक्ति से चिर-परिचित सा एहसास होता है।

उसने नजरें उठाकर उसकी ओर देखा,तो ठगी -सी रह गई ।वह उसका पुराना प्रेमी मनजीत था।कहाँ तो हमेशा सजा-सँवरा रहनेवाला मनजीत उसे ऐसी स्थिति में मिलेगा,इसकी उसने कल्पना तक नहीं की थी!

अचानक से दोनों की नजरें मिलती हैं।दोनों एक-दूसरे को पहचान लेते हैं।पहल करते हुए मनजीत  बुझे स्वर में पूछता

 है-“नीलू!कैसी हो?”

नीलू बेमन से कहती है-“ठीक हूँ।”

कुछ पल खामोशी के बाद  नीलू पूछ बैठती है-” मनजीत!अकेले अमेरिका जा रहे हो?पत्नी और बच्चे कहाँ हैं?”

मनजीत-“शादी के कुछ ही दिनों बाद  पत्नी तलाक लेकर चली गई, तो बच्चे कहाँ से होते?”

एक बार  तो नीलू के दिल में आया कि कह दे -” जैसी करनी,वैसी भरनी।”

परन्तु जब इंसान किसी से सच्ची मुहब्बत किया रहता है,तो उसे दुखी देखकर खुश तो हरगिज नहीं हो सकता है!

मनजीत उससे माफी माँगता है,परन्तु नीलू उससे कहती है-“मनजीत!जब तुम्हें माफी माँगने थी,उस समय तो तुमने मुझसे बेवफाई की।अब तुम्हारी माफी का मेरे लिए कोई मतलब नहीं रह गया है।मैं टूटे हुए रिश्ते से ऊपर उठ चुकी हूँ।पति और बेटी के साथ  मैं अपनी जिन्दगी में काफी खुश हूँ।”

तभी दूर से उसका पति सुमित आवाज देते हुए  बोर्डिंग होने का इशारा करता है।नीलू एक नजर मनजीत पर डालते हुए उठ खड़ी हो जाती है,परन्तु टूटे हुए  रिश्ते की चुभन आज कुछ तेज महसूस होने लगी थी।

मनजीत नीलू से अमेरिका का पता पूछना चाहता है,परन्तु उसकी वाणी पश्चाताप की अग्नि में झुलसकर खामोश-सी हो गई थी।सच की स्याह कंटीले तार उसके  दिल में पश्चाताप की कीलें ठोंक रहीं थीं।वह सूनी नजरों से बस नीलू को जाते हुए  देखता रह गया।

अमेरिका का सफर 18-20 घंटे का था।उसकी बेटी परी अपने पापा की गोद में सो गई। सुमित भी झपकियाँ लेने लगा।विमान ने गति पकड़ ली और एक ही झटके में जमीन  छोड़कर आसमान में उड़ने लगा।कुछ ही पलों में बादल के ऊपर जाकर स्थिर हो गया,

पर नीलू का मन आज स्थिर कहाँ था!उसके शांत जीवन में एक बार फिर से मनजीत की यादों ने हलचल मचा दी थी।नीलू ने पीठ सीट पर टिकाकर पलकें मूँद ली और मन को बादलों की तरह आसमान में खुला छोड़ दिया।

जब नीलू ने बारहवीं अच्छे नंबरों से पास की थी,तब उसके छोटे शहर में अच्छी कोचिंग की व्यवस्था नहीं थी।उसके माता-पिता नीलू को अच्छी शिक्षा तो दिलाना चाहते थे,परन्तु बड़े शहर में भेजने से हिचक रहें थे।आज भी लोग बेटों को तो बेहिचक पढ़ने बाहर भेज देते हैं

,परन्तु बेटियों को बाहर पढ़ने भेजने के सौ बहाने बनाते हैं।मगर नीलू के पिता ने परिवार, समाज की दकियानूसी बातों की परवाह न करते हुए उसका दाखिला दिल्ली में इंजिनियरिंग कोचिंग में करवा दिया।नीलू को कोचिंग  हाॅस्टल में छोड़ते हुए उसके पिता ने सीख देते हुए कहा

-” बेटी!मुझे तुम पर पूरा भरोसा है।तुम अपने उज्ज्वल भविष्य पर ध्यान लगाना।इधर-उधर की बातों में मन को नहीं भटकाना।”

नीलू भी इधर-उधर की बातों का मतलब समझ गई थी।यौवन की दहलीज पर खड़ी नीलू में अभी लड़कपन बाकी था।प्यार-मुहब्बत जैसे भारी-भरकम शब्दों की तरफ उसका ध्यान नहीं था।नीलू जी-जान से पढ़ाई में जुट गई ।

उसकी मेहनत का फल उसे दिल्ली आई.आई.टी में चयन के रुप में मिला।नीलू एकाग्रचित होकर पढ़ाई करने लगी।छुट्टियों में वह माता-पिता के पास जाती।अभी भी वहाँ नसीहतों का दौर जारी रहता।

देखते-देखते नीलू 22 साल में इंजिनियर बन गई। अब उसके माता-पिता उसकी शादी करना चाहते थे,मगर नीलू का दिल अभी पढ़ाई से भरा नहीं था।वहआगे पढ़ना चाहती थी।कुछ ना-नुकुर के बाद  उसके पिता मान गए। एम.बी.ए की पढ़ाई के दौरान  बहुत से लड़के उससे आकर्षित होकर  उसके करीब आना चाहते थे,

परन्तु  उसके दिमाग में पिता की नसीहतों जड़ जमाएँ हुईं थी,इस कारण प्यार-मुहब्बत की तरफ उसका झुकाव नहीं था।

मैनेजमेंट की पढ़ाई पूरी करते ही उसकी नौकरी एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी पूणे में लग  गई  थी।एक दिन उसी के विभाग में मनजीत ने ज्वाइन किया ।मनजीत के आकर्षक व्यक्तित्व को देखते ही नीलू का दिल जोर-जोर से धड़क उठा।

इतने दिनों से जिस दिल को सँभालकर रखा था,उस दिन सारी नसीहतों भूलकर बेकाबू हो मचल रहा था।मनजीत खूबसूरत और आकर्षक था।न जाने उसकी आँखों में क्या आकर्षण था कि नीलू पहली ही नजर में सम्मोहित-सी हो गई।

मनजीत ने उसकी ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा -” हाय!मैं मनजीत हूँ।मेरा सौभाग्य  है कि आपके जैसा कलीग मुझे मिला है।”

नीलू मनजीत की बातों से झेंप-सी गई। उसके रुप-सौन्दर्य से मनजीत की आँखें भी चौंधिया उठीं।वह नीलू को एकटक देखता ही रह गया था।

नीलू के दफ्तर में ही मनजीत काम करता था।वह नीलू से दो साल जूनियर था।वह भी मन-ही-मन नीलू को प्यार करने लगा,किन्तु जूनियर होने के कारण अपने दिल की बात जुबाँ पर नहीं ला पाता था।हाँ!कभी-कभार  मजाक करते हुए  नीलू से कह बैठता -” मुझसे शादी कर लो!”

नीलू भी मजाक करते हुए कहती -“अरे मनजीत!शादी और तुमसे?कभी नहीं!”

दोनों में हँसी-मजाक चलता रहता।

संयोगवश  नीलू और मनजीत को दफ्तर  में एक ही प्रोजेक्ट पर काम करने का अवसर मिला।अब दोनों रोज मिलते,बातें करते।धीरे -धीरे दोनों आपस में प्यार करने लगें।दोनों चुम्बक की तरह एक -दूसरे की ओर खींच रहे थे।

खुली आँखों से भविष्य का सपना देखना शुरु कर दिया,परन्तु दोनों ने अभी तक प्यार का इजहार नहीं किया था।दोनों अपने रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहते थे।

कुछ समय बाद मनजीत ने नीलू को रिश्ते पर बात करने के लिए कैफेटेरिया में बुलाया।उस दिन नीलू के पाँव जमीं पर नहीं पड़ रहे थे।उसका बेकाबू मन आसमान में उड़ते हुए बादलों की तरह कल्पना के सागर में गोते लगा रहा था।

वह अपनी बेकाबू धड़कनों को संयमित करते हुए  पहुँची।वहाँ मनजीत पहले से उसका इंतजार कर रहा था।मनजीत ने उसकी बेसब्री पर लगाम लगाते हुए कहा -“नीलू!अभी हमें रिश्तों को और समय देना चाहिए। क्यों न हम कुछ दिन लिव इन रिलेशनशिप में रहकर एक-दूसरे को समझने का प्रयास करें?”

नीलू उसकी बातों से असहमत होते हुए कहती है-” मनजीत!एक तो हमारे माता -पिता दूसरी जाति के लड़के को लेकर ही बवाल कर देंगे,दूसरी बात लिव इन रिलेशनशिप में रहने के लिए  मेरे संस्कार इजाजत नहीं देते हैं।अब हम नौकरी में अच्छी तरह सेटल्ड हैं,तो शादी क्यों नहीं कर लेते हैं?”

मनजीत  नीलू की बात मान जाता है।अब दोनों पर अपने माता-पिता को मनाने की जिम्मेदारी होती है।दोनों तय करते हैं कि अगली बार  दोनों घर जाने पर शादी की बात करेंगे।

 दफ्तर  में सभी को पता चल चुका था कि दोनों शादी करनेवाले हैं।नीलू का कलीग सुमित  मन-ही-मन नीलू को प्यार करने लगा था,परन्तु  दोनों का प्यार  देखकर  वह खुद खामोश हो गया।शादी की बात सुनकर सभी दफ्तर में दोनों से पार्टी की माँग कर रहें थे।सुमित ने अपने दिल का दर्द छुपाकर  मजाक करते हुए कहा -” नीलू!मैं भी मनजीत से बुरा नहीं हूँ।मैं मनजीत से ज्यादा तुम्हें प्यार करूँगा।”

सभी सुमित की बातों पर हँसते हुए  तालियाँ बजाने लगें।

कुछ दिनों बाद  दोनों अपने घर माता-पिता से शादी की बात करने जाते हैं।नीलू काफी हिम्मत  बटोरकर माता-पिता से मनजीत से शादी की बात करती है।पिता तो उसकी बात सुनकर खामोश हो जाते हैं,परन्तु उसकी माँ उसपर गुस्सा होते हुए कहती है-“नीलू !तुम्हें पता है कि दूसरी जाति और दूसरे  संस्कार वाले लोगों के साथ  ताल-मेल निभाना कितना कठिन होता है?”

नीलू के पिता बदलते वक्त का मिजाज  भांपते हुए  पत्नी को समझाते हुए कहते हैं – भाग्यवान! अब समय जाति-पाति से बहुत आगे बढ़ चुका है।दोनों समझदार और बालिग हैं,इस कारण स्वीकृति देने में ही  बुद्धिमानी है।”

काफी मान-मनौवल के बाद नीलू की माँ  भी मान जाती है।नीलू खुश होकर  माँ को गले लगा लेती है।

अब नीलू खुश होकर मनजीत  से पूछती है -मनजीत  !तुमने शादी की बात की? मेरे माता-पिता तो मुश्किल से तैयार हुए हैं।”

किन्तु मनजीत ठंढ़े स्वर में जबाव देते हुए कहता है-” मेरा अमेरिका का वीजा आ गया है।दफ्तर की तरफ से तीन महीने के लिए  विदेश जाना है।अमेरिका से वापस आकर शादी की बात करूँगा।”

यह सुनकर नीलू काफी मायूस होकर जाती है,किन्तु उसे अपने प्यार पर भरोसा था।

उसने मनजीत को विदेश विदा करते समय कहा था -” मनजीत!मैं तुम्हारे लौटने का इंतजार करुँगी।”

तीन महीना नीलू के लिए  तीन युग के समान प्रतीत हो रहा था।एक तो दिन-रात के चक्कर में मनजीत से बात नहीं हो पाती थी।अगर बात हो भी जाती तो बस जल्द आऊँगा कहकर फोन काट देता था।तीन महीने में सुमित नीलू के ज्यादा करीब आने की कोशिश करता।उसके उदास मन को सुमित का हँसी-मजाक सुकून पहुँचाता,परन्तु उसका दिल तो बस मनजीत के लिए  ही धड़कता था।

 विदेश से लौटने के कुछ दिनों बाद मनजीत माता-पिता से बात करने घर जाता है।नीलू उसके लौटने तथा शादी का निर्णय जानने के लिए उसका बेसब्री से इंतजार करती है।मनजीत घर से लौटकर नीलू को बताता है -” नीलू!तुम्हारी और मेरी जन्मपत्री नहीं मिल रही है,इस कारण मेरे माता-पिता शादी को तैयार नहीं हैं।”

नीलू को पहले से कुछ पूर्वाभास हो चुका था।उसने भी चिल्लाते हुए कहा -” मनजीत!इतने पढ़े-लिखे होने पर भी जन्मपत्री मिलान की झूठी कहानी बन्द करो।अगर तुम्हारी जिन्दगी में कोई है,तो स्पष्ट रूप से कहो।”

आखिरकार  स्वीकार करते हुए  मनजीत ने कहा-” हाँ!विदेश में मेरी जिन्दगी में कोई आ गई  है।इस कारण तुमसे शादी नहीं कर सकता हूँ।”

इन शब्दों को सुनकर नीलू के दिल में कुछ चटकने की आवाज आई। उसकी आँखों के आगे अंधेरा छा गया।उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो उसके हृदय की धड़कनें चलते-चलते थम -सी गईं हों।वह दफ्तर से छुट्टी लेकर  घर आ जाती है।

घर आकर  मनजीत की बेवफाई के कारण जार-जार रोती है।उसका सपना टूट चुका था।उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसके प्यार का ऐसा हश्र होगा!वह एक सप्ताह के लिए  दफ्तर से छुट्टी ले लेती है।उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अपने टूटे हुए  रिश्ते की दास्तां किसे सुनाएं?

नीलू को दो दिनों से दफ्तर  में न देखकर  सुमित   शाम में  उसके  घर जाता है।नीलू की लाल-लाल सूजी आँखें और उसकी अस्त-व्यस्त हालत देखकर सुमित  दहल जाता है।नीलू  सुमित को चाय लाने कहकर  वाशरुम में जाकर चेहरे साफ करती है

और चाय लेकर आती है।चाय पीते हुए  नीलू सुमित  को मनजीत की बेवफाई के किस्से सुनाती है।सुमित उसे सांत्वना देते हुए  सिर पर हाथ रखता है।वह टूटी बेल की भाँति सुमित  के सीने से लग जाती है और फफककर रोती है।

कुछ देर बाद सुमित चला जाता है।एक बार फिर से नीलू मनजीत की बेवफाई के समंदर में डूब जाती है। टूटे हुए  रिश्ते के कारण उसके अंतस् में गहन सन्नाटा और अंधकार फैल चुका था।एक बार तो उसके मन में आत्महत्या तक का ख्याल आ गया था,परन्तु ऐसी विषम परिस्थिति में रोज सुमित शाम में उसके पास आता और उसके मन में जिन्दगी जीने का हौसला देता।

वक्त के साथ उसके  मन की आँधी थम चुकी थी।एक सप्ताह बाद  दफ्तर  जाने समय उसके मन में ख्याल आ रहा था कि कैसे वह.मनजीत का सामना करेगी?परन्तु मनजीत खुद अपना तबादला दूसरी जगह करा चुका था।दफ्तर में उसका मन बिल्कुल नहीं लग रहा था

।उसे खालीपन का एहसास हो रहा था।सुमित भी माँ की खराब तबीयत के कारण घर गया हुआ था।अब उसे सुमित की याद आने लगी थी कि वह कैसे उसके जख्म पर मरहम लगाने रोज घर पर आ जाता था?उसका दुख और अकेलापन बाँटने की कोशिश करता।

उसे अब एहसास होने लगा था कि सुमित ही उसे सच्चा प्यार करता था,जिसे वह समझ नहीं सकी थी।उसे  माँ की बात याद आती है जो हमेशा कहा करती थी-“बेटी!जरुरी नहीं है की प्रत्येक चीज हमारी इच्छानुसार ही हो!अगर समय की धारा रोकना संभव नहीं हो तो उसके साथ बहने में ही भलाई है।”

एक सप्ताह बाद  सुमित  लौटकर  वापस आता है।शाम में नीलू से बाहर चलने की जिद्द करता है।नीलू भी मना नहीं कर पाती है।रेस्टोरेंट में काॅफी पीते हुए सुमित गंभीर मुद्रा में पूछता है -” नीलू!अगर तुम्हें ऐतराज  न हो तो मुझसे शादी करोगी?मैं तुम्हें बहुत  प्यार करता हूँ।मनजीत की तरह कभी धोखा नहीं दूँगा।”

नीलू रेस्टोरेंट में लोगों की परवाह किए  वगैर सुमित के गले लग जाती है और कहती है -” हाँ!मैं तुमसे शादी करूँगी।तुम्हारे रूप में मैंने एक सच्चा हमदर्द और सच्चा हमसफ़र पा लिया है।”

अचानक  से विमान  में सुमित उसे झिंझोड़ते हुए  कहता है -” नीलू!आँखें खोलो।चाय पी लो।”

सुमित  की बातों से उसकी तंद्रा भंग हो चुकी थी।अचानक से ख्यालों की लड़ियाँ टूट गईं।मन में यादों के बवंडर शांत हो चुके थे। टूटे रिश्तों की चुभन  खत्म हो चुकी थी। सुमित के हाथ से चाय का कप लेते हुए  नीलू कहती है -” सुमित!तुम्हारे हाथों में आज भी प्यार की गर्माहट है!”

सुमित  मुस्कराते हुए कहता है-“नीलू मेरे प्यार की गर्माहट ताउम्र बनी रहेगी!”

उनका विमान का सफर तो खत्म हो चुका था,परन्तु जिन्दगी का खुशनुमा सफर जारी है।

समाप्त। 

लेखिका-डाॅक्टर संजु झा(स्वरचित)

# टूटते रिश्ते

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