टूटने से जुड़ने तक – शिप्पी नारंग : Moral stories in hindi

“सुनो मीतू आज पैकिंग कर लेना कल सुबह निकल लेंगे। अभी मैं भैया के साथ जा रहा हूं।” ससुराल में आए आकाश ने अपनी पत्नी  स्मिता से कहा। अपने साले मुदित के साथ आकाश बाहर निकल ही रहा था कि सासू मां वीना जी की आवाज़ आई “आकाश बेटा ऐसा है तुम पहले जाकर अपने लिए एक घर देख लो तभी स्मिता जायेगी वो अब तुम्हारे मम्मी पापा के साथ नही रहेगी।” आकाश और मुदित के कदम जैसे वहीं जम गए। कुछ समय लगा समझने में और संभलने में और बात को समझते ही आकाश की मुखमुद्रा कठोर हो गई।

“क्यों उसे मेरे मम्मी पापा का साथ रहने में क्या तकलीफ़ हो गई है। आज तक तो उसने मुझसे ऐसा कुछ कहा नहीं।” आकाश ने गंभीर स्वर में पूछा । “तुमसे नहीं कहा तो मुझ से तो कहा है, सारा दिन वहां काम करती रहती है तुम्हारी मम्मी तो नौकरी पर चली जाती है, पीछे से पूरा घर संभालना और फिर चार बातें भी सुनना। बेचारी देखो कितनी कमजोर हो गई है और….” बात को बीच से काटते हुए आकाश ने आश्चर्य से पूछा “खाना बनाना… मीतू को चाय भी बनानी आती है..?

मम्मी शाम को जब ऑफिस से आती है तो पापा जी चाय बनाते हैं यह तो कमरे से बाहर निकलती भी नहीं है तब निकलती है जब मम्मी आवाज लगती है कि आ जाओ चाय पी लो और आप कहते हो खाना बनाती है…”  “तो वह झूठ बोल रही है…?”  वीना जी ने आवाज़ में तेजी लाते हुए पूछा । “बिल्कुल… सफेद झूठ बोल रही है । 10 महीने हो गए हैं हमारी शादी को मुझे आज तक एक कप चाय तो इसके हाथ की मिली नहीं तो मम्मी पापा की तो बात ही छोड़िए । मम्मी सुबह ब्रेकफास्ट और दोपहर का खाना बना कर जाती है ।

रात का खाना बनाने के लिए कुक रखी हुई है । बाकी सब कामों के लिए भी मेड रखी हुई है तो फिर और क्या रह जाता है। बाकी हम लोग आज तक चुप थे कि कोई बात नहीं धीरे धीरे समझ जायेगी पर मुझे नहीं पता था कि हमारा चुप रहना ही हमारी गलती है । यहां मैं पांच दिन से हूं और भाभी को भी देख रहा हूं स्कूल से पढ़ा कर 3:00 बजे घर आती है चपाती बनती है और आप सबको गरम-गरम खिलाती है,  शाम के खाने की तैयारी भी करती है साथ में अपनी आन्या को भी देखती है और आप दोनों मां बेटी सारा दिन बैठकर गप्पे मारती रहती हो जो बेटी यहां काम नहीं करती, 

अपनी भाभी के दर्द को नहीं समझती.. वह ससुराल में सारा काम करती है हद  ही हो गई भई मजाक की…” आकाश ने व्यंग्य करते हुए कहा । “यह जो भाभी के तुम गुण गा रहे  हो ना वह सिर्फ दिखावा कर रही है तुम आए हो ना इसलिए, वरना सुबह मैं ही लंच पैक करके देती हूं ब्रेकफास्ट टेबल पर बना कर रखती हूं, शाम को खाना भी मैं ही बनाती हूं यह तो महारानी की तरह रहती है,  पूछ लो सामने खड़ी है ।”सासू मां वीना जी ने बहु दिव्या की तरफ देखते हुए कहा । बहू दिव्या व बेटे मुदित की नजरे मिली दिव्या चुपचाप कमरे से बाहर निकल गई ।

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जाते-जाते भी आकाश ने देखा दिव्या की आंखें भरी हुई थी । अभी कुछ कहता कि ससुर अमृतपाल जी, जो  वहीं बैठे हुए थे उठकर आकाश के पास आए और कंधे पर हाथ रखते हुए बोले ..”आकाश तुम्हारी सास सही कह रही है तुम पहले घर देख लो पर एक नहीं दो घर देखना अब मुदित और दिव्या भी अलग ही रहेंगे । स्मिता बेचारी इतना काम करती है कि थक जाती है और दिव्या कुछ भी नहीं करती तो तुम्हारी सास थक जाती है काम करके तो अच्छा है दिव्या और मुदित अलग रहने लगेंगे तो तुम्हारी सास को भी आराम हो जाएगा और स्मिता को भी आराम हो जाएगा सिर्फ दो लोगों का ही तो काम करना पड़ेगा क्यों मैं ठीक कह रहा हूं ना वीना…?” वीना जी के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी अपना पासा उल्टा पड़ता देख कर।

उन्हें बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि सारी जिंदगी चुप रहने वाले उनके पति आज इतने मुखर हो जाएंगे कि इतनी बड़ी बात बोल देंगे वो भी दामाद के सामने ।   “आप चुप रहिए…” वीना जी ने गुस्से से अभी इतना ही कहा था कि अमृतपाल जी धीर गंभीर आवाज़ में बोल उठे…”क्यों…? क्यों चुप रहूं मैं..? इतने सालों से इस घर की शांति के लिए चुप रहा । तुमने तो चुप रहना सीखा ही नहीं। कुछ कहता तो उससे पहले इस घर में  तूफान आ जाता। मेरी मां तक को तो तुमने बक्शा नही। मैं ही कायर था जो कभी आवाज ही नहीं उठा पाया पर कभी तो आंख खुलती है।

तुमने अपनी बातों से अपनी बेटी के दिमाग में भी जहर भर दिया है, उसे भी अपने जैसा बना लिया है … खुदगर्ज, कामचोर । खुद तो जिंदगी भर कुछ किया नहीं सिर्फ दूसरों पर हावी होती रही हो चाहे वो मेरी मां हो, तुम्हारी बहू और अब दामाद। क्या गुण डाले हैं तुमने अपनी बेटी में? तुम क्या समझती हो मुझे पता नहीं चलता कि  तुम दोनों मां बेटी घंटो फोन पर क्या बातें करती हो? कितना समझाता था कि बेटी के कान मत भरो, उसका घर मत खराब करो, उसे बसने दो पर तुम चिल्ला चिल्ला कर घर की सिर पर उठा लेती थी।

लेकिन अब नही । स्मिता को तो वहीं रहना पड़ेगा मिलजुल कर सब के साथ और काम भी करना पड़ेगा वरना ये सोच लो मुदित और दिव्या भी अलग रहेंगे और मैं भी उनके साथ जाऊंगा और तुम मां बेटी यहीं रहना अपने हिसाब से। वो तो तुम्हारी बहू संस्कारी परिवार से आई है सब कुछ सहती है पर तुमने क्या संस्कार दिए हैं अपनी बेटी को जैसी खुद हो वैसा उसे भी बना रही हो।” “आपको पता है आप क्या कह रहे हो ? अलग तो आकाश को होना पड़ेगा वरना तुम  समझ लो मैं क्या कर सकती हूं” वीना जी के तुरूप के इक्के फेंकने की कोशिश को नाकाम करते हुए अमृतपाल जी ने ज़ोर से चिल्ला कर कहा…”क्या करोगी…पुलिस में दहेज़ उत्पीड़न और मारपीट का झूठा केस दर्ज करवाओगी या महिला मंडल से हाय हाय करवाओगी जैसा मेरे वा मेरी मां के साथ किया था पर अब ये याद रखना

तब मैं अपनी मां के लिए मजबूर हो गया था कि 75 साल की मेरी मां जेल की सीखचों को कैसे झेलेगी..? मैने समझौता कर लिया और बुढ़ापे में उसे अलग कर दिया पर अब नहीं ।  तुमने ऐसा किया तो सबसे पहले मैं ही तुम्हारे खिलाफ गवाही दूंगा क्योंकि अब मेरी दो बाहें आकाश और मुदित हैं ।अपना घर तो नहीं बचा सका पर आकाश का घर तो बर्बाद होने नहीं दूंगा और स्मिता तुम सपने में भी ऐसे सोचना मत कि तुम्हें इस घर में गलती करने पर भी पनाह मिलेगी मैं बुजदिल था, कायर था मानता हूं पर अब इतनी ताकत तो मुझ में आ ही गई है कि अब बच्चों के साथ उनके घर बसाने में मैं उनके साथ खड़ा रहूं ।

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तुम कल ही आकाश के साथ जाओगी मैं भी साथ जाऊंगा और अब तक तुमने वहां जो गुल खिलाए हैं उनकी माफी मांगूंगा । आगे से मैं यह ना सुनी कि तुम घर को बर्बाद करने में अपनी मां से भी आगे निकली। उम्मीद है तुम व तुम्हारी मां समझ गई होंगी और दिव्या बेटा तुम्हारा भी कसूरवार हूं कि सब देखते हुए भी कुछ बोलने की हिम्मत ना कर पाया पर ‘देर आयद दुरुस्त आयद’  अब मैं तुम्हारे साथ हूंआज मुझ में इतनी हिम्मत तो आ ही गई है कि गलत को गलत कह सकूं ।” दिव्या आंखों में आंसू भर अपने ससुर के पांव पर झुक गई और वह वीना जी व स्मिता की आंखें झुकी हुई थी।  स्थिति इस तरह पलट जाएगी इसकी तो कल्पना भी उन्होंने न की थी।

शिप्पी नारंग

नई दिल्ली

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