तुमसे न हो सकेगा –  विभा गुप्ता : Short Stories in Hindi

    ” बधाई हो निशिकांत जी, लक्ष्मी आई है आपके घर में।आप नाना बन गये हैं।” कहते हुए नर्स ने एक नवजात शिशु को निशिकांत जी की गोद में दे दिया।बच्ची के नन्हें-नन्हें हाथों को स्पर्श करते ही उनका वात्सल्य आँसू बनकर उनकी आँखों से छलकने लगा।बच्ची की आँखें देखकर उन्हें लगा जैसे रूही ही उनकी गोद में हो।

    हाँ.., ये रूही ही तो है और पल-भर में वे पच्चीस बरस पीछे चले गयें।तब निशिकांत जी एक सरकारी मुलाज़िम थें।उनकी पत्नी प्रमिला ने उन्हें बताया कि वो माँ बनने वाली है,सुनकर वे खुशी-से फूले न समाये थें।फिर अगले ही पल प्रमिला ने ऐलान कर दिया कि वह बच्चे का बोझ उठाना नहीं चाहती।

आज ही वह डाॅक्टर के पास जाकर…।तब उन्होंने और उनकी माँ ने उसे बहुत समझाया कि बच्चा ही तो वह फूल होता है जिसकी खुशबू से परिवार का आँगन महकता है।तब प्रमिला ने एक प्यारी-सी बच्ची को जन्म दिया जिसे देखकर तो उनका जी ही नहीं भरता था और तभी उन्होंने उसे रूही कहकर पुकारना शुरु कर दिया था।

       लेकिन रूही के प्रति प्रमिला का उदासीन रवैया उन्हें बहुत खलता था।आज़ाद ख्यालों वाली प्रमिला न तो रूही को गोद में उठाती और न ही उसे दूध पिलाना चाहती।कई बार तो वह रूही को रोती छोड़कर ही बाहर घूमने चली जाती थी।

उनकी माँ से यह सब देखा न गया और एक दिन उन्होंने प्रमिला को बोल दिया, ” यही सब करना था तो इसे जनम क्यों दिया?” वो भी तैश में आ गई और जवाब दे दिया, ” आपके कहने पर ही तो जनम दिया था।ये आपकी सिरदर्द है ,मेरी नहीं ।” कहकर वह अगले ही दिन निशिकांत और रूही को छोड़कर चली गई।

           छह महीने की उस मासूम को दादी की गोद का सहारा मिला और तभी से निशिकांत ऑफ़िस में फ़ाइलें और घर में अपनी बेटी को पढ़ने लगे थें।रात को बेटी की नैपी बदलना और समय पर उसे दूध देना वो बिल्कुल भी नहीं भूलते थें।उसे टाॅनिक पिलाने और टीके दिलवाने की पूरी टाइमटेबल उन्होंने दीवार पर लगा रखी थी।

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माँ ने उनसे कई बार कहा कि बेटा,यह सब तुझसे नहीं हो सकेगा।बच्चा पालना मर्दों के बस का काम नहीं है।तू फिर से शादी कर ले।तब हँसते हुए उन्होंने जवाब दिया था,” बाबूजी के जाने के बाद आपने भी तो अकेले ही मुझे पाला था ना।आप एक बेटे का पालन -पोषण कर सकती हैं तो मैं क्यों नहीं?” और उनकी माँ निरुत्तर हो गईं थी।

        रूही पापा के साथ स्कूल जाती और दादी के साथ वापस आती।स्कूल में सबकी मम्मी को जब वह देखती तो दादी से पूछती कि मेरी मम्मी कहाँ है? तब उसकी दादी ” अपने पापा से पूछ” कहकर पल्ला झाड़ लेती।

       एक बार रूही को बुखार हो गया।उसका शरीर अग्नि की तरह दहक रहा था।बेटी की पीड़ा देखकर निशिकांत जी तड़प उठे थें।माँ के लाख मना करने के बावजूद वे रात भर रूही के माथे पर ठंडे पानी की पट्टियाँ बदलते रहें थें।उस दिन रूही ने पहली बार अपने पापा की आँखों में आँसू देखे थें।

      माँ के देहांत के बाद फिर से मित्र-हितैषियों ने उन्हें कहना शुरु कर दिया, ” निशिकांत, अब तो माँजी भी नहीं रही,बेटी बड़ी हो रही है।उसे संस्कार-परंपराएं, रीति-रिवाज, सही-गलत भी तो सिखाना होगा और ये सब तो तुमसे तो न हो सकेगा।

हमारी बात मान लो, विवाह कर ही लो।रूही को भी माँ मिल जाएगी।” तब उन्होंने कहा,” देवी माँ की पूजा-अर्चना तो एक पुरुष ही करते हैं।जब उन्हें सारे विधि-विधानों की जानकारी हो सकती है तो मुझे क्यों नहीं।”

       आठवीं कक्षा में जब रूही को भाषण-प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार मिला था तो उसकी अध्यापिका ने उससे कहा,” ‘ मेरी माँ ‘ विषय पर तुमने बहुत अच्छी स्पीच दी है।सच में ,तुम्हारी माँ …।” 

 ” नो मैम, मेरी माँ नहीं हैं। मेरे पापा ही मेरी माँ हैं।मैंने जो पापा को करते देखा है ,वही बोला है।आवाज़ मेरी थी लेकिन शब्द मेरे पापा के थें।” टीचर को बीच में ही टोकते हुए रूही बोली तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ कि कोई पुरुष इतना संवेदनशील और परवाह करने वाला भी हो सकता है।

       बारहवीं की परीक्षा देने के बाद रूही ने उनसे कहा,” पापा, मुझे फैशन-डिजाइनिंग का कोर्स करना है।”

” पर तूने तो मुझे कहा था कि नौकरी करना तुझे पसंद नहीं ।”

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” हाँ..,लेकिन कोर्स तो कर लेती हूँ।कल को मेरी बेटी को ज़रूरत पड़ी तो उसकी मदद तो कर सकती हूँ।” रूही के इस भोलेपन पर वो खूब हँसें थें।

   उसके कोर्स का फ़ाइनल ईयर था, उसी समय उनके सहकर्मी विश्वनाथ आहूजा ने अपने बेटे अंकित के लिए उनसे रूही का हाथ माँग लिया।तब उन्हें एहसास हुआ कि उनकी बेटी बड़ी हो गई है।सच है, पिता के लिये तो उसकी बेटी हमेशा हाथ पकड़कर चलने वाली बच्ची ही रहती है।

      विश्वनाथ जी का बेटा दिल्ली में साॅफ़्टवेयर इंजीनियर था।उन्होंने निशिकांत जी से कहा कि बेटा आया हुआ है, आप अंकित से मिल ले और बच्चे भी एक-दूसरे की पसंद-नापसंद जान ले।

यद्यपि विश्वनाथ जी की पत्नी ने आपत्ति जताई कि माँ छोड़ कर चली तो बाप क्या ख़ाक बेटी को कुछ सिखाया होगा और तब उन्होंने गर्व-से कहा था,” निशिकांत जी अपनी बेटी को वो संस्कार दिये हैं जो क्या कोई माँ अपनी बेटी को देगी।” 

       शुभ-मुहूर्त में निशिकांत जी ने रूही का कन्यादान कर दिया।विवाह में आये उनके दफ़्तर के साथी और परिचित विवाह की तैयारी और बरात की आव-भगत देखकर दंग रह गयें थें।विदाई की बेला में रूही उनके गले लगकर ऐसे रोई कि देखने वाले भी अपने आँसू नहीं रोक पायें थें।

       विवाह के बाद पहली बार जब बेटी-दामाद उनके पास आयें तो उन्होंने अपने हाथ से बेटी की पसंद की चीज़ें बनाई थीं।

         बेटी के बिना तो उन्हें घर काट खाने को दौड़ता था।इसलिये कभी दफ़्तर में ही रुक कर फ़ाइलें पलटने लगते तो कभी मित्र के यहाँ अपना समय बिता लेते थें।घर आते तो एलबम पलट कर उसके बचपन और विवाह की तस्वीरें देखते।रूही दो दिन पर फ़ोन करके उनसे बात करती तो वे अपने आँसू रोक नहीं पाते थें।

     फिर एक दिन उनके दामाद ने उन्हें बताया कि पापा,आप ‘नाना’ बनने वाले हैं।उन्हें लगा कि अभी उड़कर बेटी के पास चले जायें।अगले ही दिन ऑफ़िस जाने से पहले उन्होंने अपने समधी-समधिन को मिठाई देकर बधाई दिया और ऑफ़िस जाकर अपने साहब को प्रीरिटायरमेंट की अर्ज़ी थमा दी।

      रूही की सास ने तो मान लिया था कि निशिकांत जी बेटी की गोद-भराई की रस्म तो करने से रहें।यह सब महिलाओं का काम है और वो ठहरे एक पुरुष।लेकिन  जब साजो-सामान के साथ निशिकांत जी उनके दरवाज़े पर पहुँचे तो वो चकित रह गईं।

समधिन से कहने लगे,” कोई कमी रह गई हो तो बता दीजिए, संकोच मत कीजियेगा।” सच है, एक पुरुष पिता भी होता है और पिता के स्नेह को माँ की ममता से कम आँकना तो सरासर अन्याय होगा।निशिकांत जी तो रूही के पापा और मम्मी,दोनों ही थें तो रस्म निभाने में भला उनसे चूक कैसे हो सकती थी।

      आज उनकी गोद में उसी रूही की….।” पापा, सभी आपको बधाई दे रहें हैं।” अंकित ने उन्हें कहा तो उनकी तन्द्रा टूटी, “हाँ-हाँ…..अभी देता हूँ ” कहते हुए उन्होंने बाँयें हाथ से बच्ची को संभाला और दाहिने हाथ को अपनी जेब में डाला।सिक्के-रुपये जितने भी थे सब निकालकर अस्पताल के स्टाफ़ में बाँट दिया और अपने दोनों हाथों से बने झूले में बच्ची को झुलाते हुए उसके साथ अपने भविष्य के सपने बुनने लगे।

                                विभा गुप्ता 

    #पुरुष                   स्वरचित 

        अक्सर ही हम पुरुष के लिये दंभी,अहंकारी, हृदयहीन जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं पंरतु यह भूल जाते हैं कि वही पुरुष भाई बनकर अपनी बहन की रक्षा करता है और पिता बनकर बेटी को डोली में बिठाकर विदा करता है।निशिकांत जी ने रूही पर अपना स्नेह लुटाकर साबित कर दिया कि वात्सल्य और ममता किसी लिंग-भेद का मोहताज नहीं होता।    

 

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