तुम्हारे बिना यह घर है ही कहां? – मधु वशिष्ठ
Post View 377 दरवाजा खोला और मानव अपने सोफे पर आकर धम्म से बैठ गया, सोफे की धूल ,फैले हुए कपड़े, चाय के बर्तनों से भरा हुआ सिंक। आज तो खाना मंगवाने का भी मन नहीं हुआ। शायद हल्का बुखार भी था। सर ज्यादा चकरा रहा था या विचार, कहा नहीं जा सकता। सच … Continue reading तुम्हारे बिना यह घर है ही कहां? – मधु वशिष्ठ
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