तुम्हारे बिना यह घर है ही कहां? –  मधु वशिष्ठ

Post Views: 4              दरवाजा खोला और मानव अपने सोफे पर आकर धम्म से बैठ गया, सोफे की धूल ,फैले हुए कपड़े, चाय के बर्तनों से भरा हुआ सिंक। आज तो खाना मंगवाने का भी मन नहीं हुआ। शायद हल्का बुखार भी था। सर ज्यादा चकरा रहा था या विचार, कहा नहीं जा सकता।             सच कहते … Continue reading तुम्हारे बिना यह घर है ही कहां? –  मधु वशिष्ठ