तुम कहां चली गई??? – रंजीता अवस्थी

रीना तुम कहां चली गई? अब इन बच्चों को मैं अकेले कैसे पाल पाऊंगा? ये बच्चे किसके सहारे बड़े होंगे? मयंक दहाड़े मार मार कर रो रहा था और उसके बच्चे ये समझ ही नहीं पा रहे थे कि मां कहां चली गई और पापा इतना रो क्यों रहे हैं? शुभम रोते हुए बोला…मम्मी अभी तो हमसे बातें कर रही थीं। हमको मैगी बनाकर खिलाया और मेरी छोटी बहन शोना को दूध पिला रही थीं। अचानक उनके सर में दर्द हुआ और उन्होंने मुझसे दवाई मांगी और मैंने मां को दवाई भी दे दी थी। अपनी छोटी बहन को गोदी में लेते हुए शुभम उसको बहलाने की कोशिश करने लगा। शुभम मयंक का बेटा था जो 12—13 साल का था और उसकी बहन शोना यानि मयंक की बेटी 8 महीने की थी। अभी तो हमने बेटी के होने पर खुशियां मनाई थीं….तुम कह रही थी हमारा परिवार अब पूरा हो गया…. पर कहां रीना हमारा परिवार आज भी अधूरा है… अब तुम हमेशा के लिए हमें छोड़ कर चली गईं… मयंक रो रोकर अपनी पत्नी (रीना) से चिपट चिपट कर कह रहा था।

कोरोना ने इस हंसते खेलते परिवार को तबाह कर दिया था।वहां पर मौजूद सभी लोगों की आंखों से भी आंसू नहीं रुक रहे थे। शुभम अपने पापा से कह रहा था पापा आप परेशान मत हो, मां अभी आ जायेंगी… शोना को दूध पिलाने….मयंक अपने बच्चों को चिपटाए बस रोए जा रहा था….मयंक और रीना दोनाें ही बहुत अच्छे व्यवहार के थे। शुभम तो पूरे मोहल्ले का चहेता बच्चा था। उसकी बहन होने के बाद तो शुभम बहुत कम ही बाहर दिखता। पूरा समय अपनी मां और बहन के साथ ही देता। शुभम पढ़ने में भी बहुत तेज था। यानि कुल मिलाकर हंसता खेलता परिवार था मयंक का। मयंक की भी सरकारी नौकरी थी तो पैसों की भी कोई दिक्कत नहीं थी। पर ईश्वर किसी को खुशी क्यों नहीं देख पाता? अभी तो उन लोगों की कच्ची गृहस्थी थी। मेरा मन बार बार ईश्वर से यही शिकायत करता। मयंक का दहाड़े मारकर रोना, ऊपर से शुभम जैसा प्यारा बच्चा और एक प्यारी सी बेटी इतना बड़ा जीवन कैसे पार करेंगे?

कहते हैं ईश्वर जो भी करता है अच्छा ही करता है… इसमें क्या अच्छाई है भगवान?? दो छोटे छोटे बच्चे अपनी मां के बगैर कैसे जिएंगे?? मयंक इतना बड़ा जीवन इन छोटे छोटे बच्चों के साथ कैसे पार कर पाएगा?? यही सोचकर आंखों में आंसू आ जाते है… पर मेरे सवालों का कोई जवाब नहीं मिलता??

मेरे पारिवारिक दोस्त की असली कहानी है… ईश्वर मयंक भैया को हिम्मत दे और उनको इतनी बड़ी मुसीबत झेलनी की ताकत दे।छोटे छोटे बच्चों को उनकी मां से बिछड़कर जीने की ताकत  दे।

स्वरचित

रंजीता अवस्थी

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