विद्या देवी आरती का थाल सजाकर अपनी बहू शांति से बोली” ले बहू अपनी बहू बेटे का आरती करके उनका स्वागत कर कितनी परीक्षा के बाद आज यह घड़ी आई है”सास की बात सुनकर शांति की आंखों से टप टप आंसू बहने लगे थे उसके पति शेखर उसका और उसके दो देवर आकाश और अनुज का कितना बड़ा अरमान था
बड़े बेटे वैभव की शादी धूमधाम से करने का… तीनों भाइयों में आपस में बहुत प्रेम था जिसके कारण शेखर ने जब वैभव के साथ विनीता का रिश्ता पक्का किया तब अपने दोनों भाइयों के लिए वैसे ही रंग के कोट पेंट सिलवाये जैसे उसने अपने लिए सिलवाए थे वे चाहते थे कि तीनों भाई शादी में एक ही तरह के कपड़े पहनकर बेटे की ससुराल जाए परंतु, इससे पहले कि वह धूमधाम से अपने बेटे का विवाह कर पाते।
एक दिन जब वह शादी का सामान लेने के लिए बाजार जाने की तैयारी रहे थे तभी अचानक उन्हें दिल का दौरा पड़ गया था तब अनुज और आकाश ने तुरंत तुम्हें अस्पताल में दाखिल करा दिया था लेकिन कई दिन तक डॉक्टर की तमाम कोशिशो के बाद भी वह उन्हें बचा नहीं सके थे उन्हें अचानक से दोबारा दिल कर दौरा पड़ गया था
जिससे हमेशा के लिए उनकी सांसे थम गई थी तब दोनों भाइयों ने अपने दिल पर पत्थर रखकर उन्हें वही सूट पहनाया जो उन्होंने शादी के लिए सिलवाया था जिसे देखकर वहां मौजूद सभी लोगों की आंखें आंसुओं से सजल हो गई थी शांति का अपने पति को ऐसी अवस्था में देखकर रो-रो कर बुरा हाल हो गया था वह रोते हुए पति का मुख देखकर बोली
“तुम्हारे बिना मैं अकेली रह गई अब मैं बेटे का विवाह कैसे करूंगी हमारे तो सारे अरमान अधूरे रह गए “तब विद्या देवी ने बड़ी मुश्किल से उसे समझाया”तू अकेली नहीं है हम सब तेरे साथ हैं जब अपनों का साथ मिलेगा तो बेटे का विवाह जरूर होगा” कहते हुए उन्होंने अपने प्यारे बेटे को रोते हुए अंतिम सफर पर विदा कर दिया था।
कुदरत ने उनके साथ बहुत बड़ा दर्दनाक खेल खेला था जिस दिन पोते की शादी होनी थी वही तिथि बेटे की तेरहवीं की तिथि बन गई तब दिल पर पत्थर रखकर विद्या देवी ने बेटे के निमित तेरह पंडितों को भोजन करा कर बेटे की 13वीं की रसम संपन्न की।
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पति के जाने के बाद शांति का मन बेहद दुखी हो गया था तब अनुज और आकाश ने उन्हें दिलासा देते हुए कहा”भाभी भैया को तो हम ला नहीं सकते लेकिन वैभव की शादी में हम कोई कसर नहीं छोड़ेंगे आप बस आदेश देना हम सारा काम खुद कर देंगे”दोनों देवरों की बात सुनकर शांति खामोशी से उन्हें निहारने लगी थी
तब अनुज और आकाश ने घर के सारे काम की जिम्मेदारी अपनी पत्नियों आभा और अर्चना को सौप दी और खुद दोबारा से कार्ड छपवाना और शादी के लिए सामान लाने जैसे सारे काम संभाल लिये जब अपनों का साथ मिला तो वैभव की शादी धूमधाम से हो गई थी जब दुल्हन के आने का वक्त हुआ तो शांति अपने मन में यह सोच कर कि मैं अभागन हूं जो विधवा हो गई दुखी मन से चुपचाप घर के अंदर जाकर एक कोने में बैठ गई थी।
जब विद्या देवी ने बहू का दुखी चेहरा देखा तो जल्दी से आरती का थाल सजा कर लाई और शांति से बेटे बहू का स्वागत करने को कहा तो शांति दुखी स्वर में बोली”मम्मी जी मैं अभागन होने के कारण यह कार्य नहीं कर सकती अब यह कार्य दोनों देवरानी करेंगी।”
“किसने कहा तू अभागन है अरे तुझसे ही तो मेरा घर रोशन है तेरी वजह से ही तो आज मैं अपने पोते का विवाह देख रही हूं चल आरती करके अपनी बहू बेटे का स्वागत कर नहीं तो मेरा बेटा नाराज हो जाएगा वह ऊपर बैठकर सब कुछ देख रहा है”शांति की बात सुनकर विद्या देवी ने कहा तो
बरबस ही खुशी से शांति देवी की आंखें भर आई थी अपनों का प्यार भरा साथ पाकर उसमें नवीन ऊर्जा का संचार हो गया था सास के हाथ से थाली लेकर खुशी खुशी वह बेटे बहू का स्वागत करने लगी थी।
# अपनों का साथ
लेखिका : बीना शर्मा