तूफानों से उबरना – *पूनम भटनागर। : Moral Stories in Hindi

बड़ी ही सराहा रात्रि थी। निमेष अंधेरे में बैठा ये सोच रहा था कि आखिर वह करें तो क्या करें।सब कुछ तबाह होने के बाद किस तरफ का रूख करें।

क्या नहीं था उसके पास , एक हंसता-खेलता परिवार। अच्छी नौकरी, घर परिवार । पर न जाने किस की नजर लग गई।

उसके आफिस में सब इकट्ठे बैठ कर खाना खाते, जैसा कि हर आफिस में अक्सर होता है। सब हंसी खुशी के माहौल में बैठते फिर सब काम में लग जाते।

एक दिन एक आदमी ने सब लोगों के साथ प्रोग्राम बनाया कि सब मिल जुल कर कहीं चले। निमेष का भी सब देखने का दिल ‌ हो उठा। वह भी सबके साथ चल पड़ा।

उस मित्र ‌ने उन्हें खिला पिला कर संतुष्ट किया, फिर वह जुए के अड्डे पर ले गया। निमेष पहले तो थोड़ा डरा, झिझका , पर आखिर वह दांव पर दांव लगाने लगा।

सभी मित्र भी इसको काफी एंजॉय करते रहे। अब कब रात आधी से ज्यादा गुज़र गयी, पता ही न चला। घर पर माता पिता, पत्नी यहां तक कि बच्चे भी इंतजार में बैचेनी थै।

क्योंकि आज से पहले निमेष नियमित समय पर घर आ जाता था।सब लोगों से झूठ बोल दिया कि मैं आफिस के काम से चला गया था।

अब अगले हफ्ते फिर प्रोग्राम बना। निमेष फिर से शामिल हो गया। घर आकर कह देता कि कोई न कोई काम पड़ गया था।

सब लोग मान जाते कि वह वाकई बहुत व्यस्त है। पत्नी इस लिए मना नहीं करती कि निमेष को माता-पिता कह ही दे देते।

एक बार बच्चों के कहने पर सबने कहीं जाने का प्रोग्राम बनाया। पर निमेष तो जूए का आदि हो चुका था। सो वह वहां चला गया।

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सब लोग इंतजार में बैठे रह गये, किसी ने खाना नहीं खाया। बच्चे रोते हुए सो गए। पर निमेष ने तो सारी हदें तोड़ता हुआ जूए के बाद औरत के पास चला गया।

आज पत्नी को भी लगा कि उस के बारे में माता पिता के ही ऊपर नहीं छोड़ना चाहिए। और उसने सुबोध जो कि निमेष का मित्र है,उस के पास फोन लगाया,

क्यों कि माता पिता के काफी समझाने पर भी वह आज फिर लेट हो गया था। सुबोध ने उसे काफी कहने पर सच्चाई बताई।

पत्नी माता-पिता को सब बताते हुए बोली कि अब वह निमेष को लेकर ही आएगी। माता पिता ने भी कहा,कि बहुत तुम्हें जो ठीक लगे ,

करो।ईधर निमेष ने सब कुछ जूए में लगा दिया। सुबह रोनी सूरत ले कर माफी मांगने लगा। पर पत्नी रोशनी के कहने पर सब उसे छोड़ कर चले गए।

रोशनी ने सुबोध की मदद से रहने ,खाने का इंतजाम किया। एक मिल में नौकरी की। निमेष दोस्त के पास रहने गया क्योंकि जूए की लत तो लग ही चुकी थी।

पर कहते हैं कि जूए में तो सब बर्बाद ही हो जाता है। जब जूए में पांडव ही सब गंवा बैठे तो निमेष क्या चीज़ था।जूए के अड्डे वालों ने भी उसे निकाल दिया।

इधर रोशनी प्रमोशन पर प्रमोशन पाती हुई, डायरेक्टर बन गई पर निमेष का भी पता रखती कि वह क्या कर रहा है।

ऐसे ही एक दिन निमेष अपनी नाकामियों के लिए खुद को ही जिम्मेदार ठहरा रहा था। उस दिन उसे अहसास हुआ कि अपने जीवन में आए इस तूफान से वह कैसे उबर पाए,

कोई साधन न होते हुए वह निष्क्रिय हो कर चहरा हाथों में लेकर फूट फूटकर रोने लगा। कोई स्थिति न होने पर उसे अंधकार ही अधंकार दिया।

रोते बिलखते वह बोलता भी जाता कि मुझ से गलती हो गई भगवान, अब कभी जूआ नहीं खेलूंगा।जब काफी समय बीत गया तो एक आवाज आई कि इस तूफान से उबरना चाहते

हो तो हमारे पास वापस आओगे। उसने कहा कि हां हां, और ऊपर देखा तो सामने पत्नी यही सब कह रही थी।

और सारा परिवार साथ में था। उसने कहा कि सब मुझे माफ़ कर दो। आगे से मैं ऐसा नहीं करूंगा।

तभी पत्नी बोली हां अगर किया तो जीवन में कभी माफी नहीं मिलेगी। वह आज असल में समझा कि तूफान के बाद उबरना किसे कहते हैं।

*पूनम भटनागर।

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