“इतना आश्चर्य से न देखो रिक्की।तुमने ही तो कहा था कि तृप्ति को कुछ पता नहीं चलना चाहिए।बस तुम्हारी दोस्त के लिए झूठ बोला है।” शेखर ने कहा।
“तृप्ति बहुत लक्की है शेखर।तुम्हारा प्यार उसके साथ है।हर कोई इतना लक्की नहीं होता।” एक ठंडी सी आह भरकर रिक्की बोली।
शेखर उसके चेहरे पर छाई बेचैनी को महसूस कर रहा था।कमरे में सन्नाटा छा गया।शेखर जाना चाहता था लेकिन अपने किए पर शर्मिंदगी का बोझ उसके कदमों को कमजोर कर रहा था।
बाहर बारिश शुरू हो चुकी थी।
और अंदर तुफान चल रहा था जिसने सन्नाटे को ओढ़कर माहौल को उदासियों में भर दिया था।
तभी सन्नाटे में रिक्की के मोबाइल ने शोर मचाना शुरू कर दिया।वह अपना फोन उठा लेती है लेकिन स्क्रीन पर दिखते नंबर को देख फोन को झटक कर फेंक देती है।फोन की रिंग उसके अंदर न जाने कौन सा डर भर रही थी कि अपने घुटनों को मोड़कर वह खुद को समेटने लगी।
लगातार बजते फोन और रिक्की की बदहवासी शेखर के मन में अनेक सवाल खड़े करनी लगी।
वह रिक्की के नजदीक नीचे ही बैठ गया।फोन बंद हो चुका था लेकिन रिक्की अपने चेहरे को हथेलियों से छिपाए ऐसे ही बैठी रही।
“रिक्की… रिक्की!” शेखर ने उसके कंधे को धीरे से हिलाया।
रिक्की चौंक कर शेखर को देखती है फिर मोबाइल पर नजर डालती है।
“तुम ठीक हो?” शेखर ने पूछा।
“वो…मैं..वो…तुम जाओ…जाओ…मैं…।” रिक्की हड़बड़ाते हुए बोली।
“मैं कहीं नहीं जा रहा हूँ।तुम बताओ मुझे क्या बात है… किसका फोन था?” शेखर ने कहा।
इतना सुनते ही रिक्की फूट फूट कर रोने लगी।
शेखर उसे अपनी बाँहों में भींच लेता है और उसके सिर को सहलाने लगता है।रिक्की लगातार रो रही थी जैसे किसी दर्द को अपने अंदर से बाहर फेंक देना चाहती हो।
—————————-
लाल साड़ी में सजी तृप्ति आइने के सामने खड़ी खुद को निहार रही थी।एक नजर शेखर की तस्वीर पर डाल कर तृप्ति मुस्कुराते हुए बोली,
“आज की रात सब तुम्हारी मर्जी से होगा शेखर।तुम्हें इतना प्यार दूंगी कि कभी मेरे अलावा किसी और का ख्याल मन में भी नहीं ला पाओगे… हाँ हाँ जानती हूँ आप बेहद शरीफ़ हैं लेकिन चुडैलों का क्या!” इतना कह तृप्ति अपनी लिपस्टिक ठीक करके रसोई में जाकर खाना बनाने में जुट जाती है।प्याज काटते हुए
तभी जोर से डोरबेल बजती है।तृप्ति अपने हाथ टॉवल से साफ कर दरवाजे की ओर दौड़ती है।
दरवाजे पर मालती खड़ी थी।
मालती को देख तृप्ति चहक पड़ती है,
“अरे मालती दीदी… आओ अंदर आओ न।” तृप्ति दरवाजे से हटते हुए बोली।
“अंदर की छोड।पहले यह पकड़… और बता गिफ्ट कैसा है?” मालती ने कहा।
तृप्ति उत्सुकता से बॉक्स का ढक्कन खोलती है।बॉक्स में पिंक कलर की सुंदर सी साड़ी थी।
“वाह दीदी बहुत सुंदर साड़ी है।आप पर बहुत जंचेगी।” तृप्ति बोली।
“मुझ पर नहीं।तुम पर जंचेगी।तेरे लिए है पगली।शादी की सालगिरह मुबारक हो।” इतना कहकर मालती तृप्ति को गले लगा लेती है।
“आपको याद है!” तृप्ति ने आश्चर्य से कहा।
“क्यों याद नहीं होगी?चल अब मैं चलती हूँ।मुझे जरा माँ के घर तक जाना है।” मालती अपना पल्लू ठीक करते हुए बोली।
“रूको न दीदी।चाय तो पी लो!” तृप्ति मालती की हथेलियों को पकड़कर बोली।
“तेरे बगल में ही रहती हूं।कल पी लूंगी चाय…चल अब चलती हूँ।” मालती सीढियां उतरने लगती है।तृप्ति उसके ओझल होते ही दरवाजा बंद कर दोबारा रसोई में अपने काम में लग जाती है।
—————————–
रिक्की शेखर की गोद में सिर टिकाए सुबक रही थी और शेखर उसके सिर पर हाथ फेरते तसल्ली दे रहा था।
“तुम मुझसे अपना दर्द शेयर कर सकती हो रिक्की।हो सकता है तुम्हारे मन के दर्द को कुछ कम कर सकूं।कह दो न रिक्की!” शेखर ने उसके चेहरे को ऊपर उठाकर कहा।
रिक्की अपनी आँखे शेखर की आँखों में टिका देती है।रोने के कारण उसकी आँखें लाल हो गई थी।थोड़ी लाली उसकी नाक पर भी उतर आई थी।शेखर उसकी हालत देखकर दुखी हो जाता है।वह रिक्की के माथे को चूम लेता है।
रिक्की की आँखों से दो बूंदें शेखर के सीने पर गिर जाती हैं जिनके खारेपन से शेखर तड़प उठता है।रिक्की को सहारा देकर उठाता है और बिस्तर पर लिटा देता है।रिक्की उसकी हथेलियों को अपने चेहरे से लगाकर आँखें बंद कर लेती है।शेखर उसके करीब ही बैठ जाता है।
“कभी कभी मन करता है कि मैं सुसाइड कर लूँ…खत्म कर लूँ इस बेरौनक गलीच सी जिंदगी को।हिम्मत…. बस हिम्मत नहीं कर पा रही हूं लेकिन एक दिन मैं…सच में।”
“पागल हो क्या? क्या बेवकूफी भरी बात कर रही हो!खबरदार यह ख्याल भी अपने मन में नहीं लाना।” शेखर रिक्की की बात काटते हुए बोला।
“जिसकी जिंदगी में प्यार नहीं उसे ढोने से क्या फायदा?तुम नहीं समझोगे कि अकेले रहना कितना कठिन है।” रिक्की बोली।
“प्यार तलाशने से मिलता है।दिल की खिड़कियों को खोलकर अपने प्यार को तलाशो।” शेखर ने कहा।
“मैं इतनी खुशकिस्मत नहीं… खैर…तुम जाओ।मैंने पहले ही तुम्हारा काफी समय खराब कर दिया है।”
“ऐसी कोई बात नहीं।तृप्ति की दोस्त हो तुम।तुम्हें इस हाल में अकेले नहीं छोड़ सकता।मैं पहले ही एक गलती कर चुका हूँ अब दूसरी नहीं करुंगा।” शेखर ने कहा।
“उस बात को भूल जाओ शेखर… तुम्हारी कोई गलती नहीं थी।मैं ही…माफी मुझे मांगनी चाहिए।” रिक्की हल्के से मुस्कुरा कर बोली।
“अच्छा सब छोड़ो… कॉफी नहीं पिलाओगी!देखो बाहर बारिश हो रही है।” शेखर बात पलटते हुए बोला।
“हाँ अरे सच में… आइ लव रेन….मुझे बारिश में भीगना पसंद है।” रिक्की बच्चों की तरह मचल कर टेरिस गार्डन में जाकर खड़ी हो जाती है।बारिश की बूंदों में भीगती रिक्की के चेहरे पर दुख क्षण भर में गायब हो चुका था।
वह शेखर का हाथ खींचकर बाहर ले आती है।
थोडी नानुकुर के बाद शेखर भी उसके साथ बारिश का आनंद लेने लगता है।
आसमान की ओर देखते शेखर की ओर देख रिक्की कुटिलता से मुस्कराने लगती है।
अगला भाग
तू इस तरह मेरी जिन्दगी में शामिल है (भाग -9)- दिव्या शर्मा : Moral stories in hindi
दिव्या शर्मा