तिरस्कार – गुरविंदर टूटेजा

  नेहा और सुमन दोनों पक्की सहेलियाँ  थी व पास-पास रहती थी…दोनों में बहुत पटती थी…नेहा के पापा सरकारी अफसर थें और सुमन इकलौती बेटी थी… संयुक्त परिवार में रहती थी बहुत बड़ा कारोबार था व मानी हुआ परिवार था….!!!!

   नेहा के पापा का तबादला हो गया और वो चली गयी दोनों सहेलियाँ गले लगकर बहुत रोई…!!!!

   फिर दोनों नहीं मिली आज तीस साल बाद जयपुर के एक मॉल में दोनों का आमना-सामना हुआ…सुमन ने नेहा को पहचान लिया…दोनों बहुत खुश हुई…एक-दूसरे के फोन नं.व पता ले लिया…!!!!

नेहा से रहा ही नहीं जा रहा था…अगले दिन ही सुमन के घर पहुँच गयी…कोई था नहीं तो बस बैठ गयी बातें करनें…!!!!

  बातों-बातों में सुमन ने बताया कि कैसे उसके जाने के थोड़ें ही समय बाद उसके मम्मी-पापा उसे अकेला छोड़ चलें गये…धीरे-धीरे करके सब बिखर गया….सब खत्म हो गया….!!!!

  नेहा भी उत्सुक थी कि ऐसा क्या हुआ कि भरा-पूरा परिवार. ..पैसा..प्रतिष्ठा…सब कैसे खत्म हो गया…!!!!

सुमन ने बताया कि यूँ तो दादी सुबह चार बजे उठ जाती थी…पर पाठ-पूजा कभी नहीं करती थी…सुबह से रसोई की साफ-सफाई करती थी पर साथ में वो घर की बहुओं के लिये अपशब्द बोलती जाती थी…सब उन्हें समझातें थे कि इतना अच्छी बहुएँ हैं..परिवार है सुबह-सुबह भगवान का नाम लिया करों…जो आगे भी काम आयेगा…पर उन्होंने अपने आप को नहीं बदला…सबका यही कहना था कि…इसी कारण पूरा परिवार बिखर गया…!!!!

   नेहा ने कहा..सही में सुमन सुबह भगवान का नाम जरूरी हैं व घर के किसी भी सदस्य का अपशब्द बोलकर तिरस्कार नहीं करना चाहिए….क्योंकि शब्दों से बड़ा कोई तिरस्कार नहीं है…!!!!

समाप्त 

   

गुरविंदर टूटेजा

उज्जैन (म.प्र.)

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