तिरस्कार – कल्पना मिश्रा

Post View 152 काफी अंतराल बाद मैं अपने बचपन के दोस्त नीरज के घर आया तो लॉन में ही उसके दादा जी मिल गये। वह बड़े प्रेम से एक घायल चिड़िया के पंखों पर दवा लगा रहे थे। मुझे देखते ही वह खुश हो गए “अरे बेटा.. तुम अचानक कैसे? आओ,आओ! देखो तो कितनी घायल … Continue reading तिरस्कार – कल्पना मिश्रा